देखें क्या है आज खाने में ,
सोचकर वो रसोई में घुसा,
और बल्ब जलाने के लिए उठे हाथो के बोझ के साथ ही उसे याद आया ,
बिजली का बिल भरना था ,
अब पिताजी की डांट .. चलो खा लेगा,
पर
समस्या अब भी वहीँ है,
कुछ हफ्ता भर ही हुआ होगा
जोश में आकर नौकरी छोड़ दी थी
बॉस की लताड़ खाकर ,,
आजकल धक्के खा रहा है ,
बसों के ,
पेट्रोल महंगा है बिना जॉब फ़ालतू लोड पड़ेगा,
इसलिए धूप में गश खा रहा है ,
ये जायके तो अब जिंदगी के मायने से हैं
सो कोई समस्या नहीं ,
पचाना मुश्किल था तो कल
उसकी प्रेमिका की झाड ,
आखिर तुम्हे ही कोई जॉब क्यों नहीं मिलती
और मिलती हे तो चलती नहीं,
बल्ब जला,
और उस आभा में स्टील के दमकते बर्तनों से याद आया ,
माँ का वो कलाम ,
दो बर्तन घर में कभी लाया नहीं और हुकुम चलाने लगा है,
बाहर गालियाँ खाना तो उसकी आदत सी है ,
कोई समस्या नहीं सब पच जाता है ,
पर घर पे गम खाना मुश्किल है,
आखिर बात तो सही ही है ,
कितने पुराने से हैं ये बर्तन ,
कुछ तो माँ के दहेज़ के ही रहे होंगे ,
वो सुनता हे फिर एक आवाज ,
माँ की ,
नौकरी मिली .. नहीं .. अच्छा खाना खा लेना ,
"नहीं माँ ! पेट भरा है , बहुत खा लिया आज । "
अ से