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Oct 16, 2013

देखें क्या है आज खाने में ...



देखें क्या है आज खाने में ,
सोचकर वो रसोई में घुसा,
और बल्ब जलाने के लिए उठे हाथो के बोझ के साथ ही उसे याद आया ,
बिजली का बिल भरना था ,
अब पिताजी की डांट .. चलो खा लेगा,
पर
समस्या अब भी वहीँ है,
कुछ हफ्ता भर ही हुआ होगा
जोश में आकर नौकरी छोड़ दी थी
बॉस की लताड़ खाकर ,,
आजकल धक्के खा रहा है ,
बसों के ,
पेट्रोल महंगा है बिना जॉब फ़ालतू लोड पड़ेगा,
इसलिए धूप में गश खा रहा है ,
ये जायके तो अब जिंदगी के मायने से हैं
सो कोई समस्या नहीं ,
पचाना मुश्किल था तो कल
उसकी प्रेमिका की झाड ,
आखिर तुम्हे ही कोई जॉब क्यों नहीं मिलती
और मिलती हे तो चलती नहीं,
बल्ब जला,
और उस आभा में स्टील के दमकते बर्तनों से याद आया ,
माँ का वो कलाम ,
दो बर्तन घर में कभी लाया नहीं और हुकुम चलाने लगा है,
बाहर गालियाँ खाना तो उसकी आदत सी है ,
कोई समस्या नहीं सब पच जाता है ,
पर घर पे गम खाना मुश्किल है,
आखिर बात तो सही ही है ,
कितने पुराने से हैं ये बर्तन ,
कुछ तो माँ के दहेज़ के ही रहे होंगे ,
वो सुनता हे फिर एक आवाज ,
माँ की ,
नौकरी मिली .. नहीं .. अच्छा खाना खा लेना ,
"नहीं माँ ! पेट भरा है , बहुत खा लिया आज । "

अ से 
" देखो तुम्हारा पैदल मर रहा है , "
एक मुस्कराहट के साथ सफ़ेद मोहरों वाले ने कहा ॥

" अरे पैदल तो होते ही हैं दांव पर लगाने के लिए ,
तुम अपनी चाल खेलो ,
फिर देखते हैं अबकी बार बाजी किसके हाथ लगती है , "
रात्रिकालीन सफ़ेद मोहरों वाले ने कहा ॥
और अट्टाहासों के बीच प्यादे की चीख कहीं दब गयी ॥
कल उसने कुछ 15-20 लोगों की झाड़ खाई,
मालिक के दो झापड़ ,
एक पुलिसिये का डंडा ,
रास्ते पर एक कार की हलकी सी टक्कर ,
घर के दरवाजे पर एक ठोकर,
और दो रोटियाँ ॥

कुछ 12 साल का रहा होगा वो ढाबे पर काम करने वाला लड़का ,
आखिर भूख कहाँ देखती है कोई स्वाद ॥
माना न ही कोई वर्किंग आवर्स तय किये हैं , न ही कोई सेलेरी ,
पर तुम काम में आलस कैसे कर सकती हो , कैसे भूल गयी ,
कहाँ खर्च कर दिए इतने , दो दिन पहले ही तो दिए थे ॥

सुबह की चाय , उठने के समय पर हो ,
न ठंडी न देर से ,
नाश्ता पिछले दिन से अलग हो ,
राशन बाद में देखा जाएगा ,
हाथ का कटना छिलना चलता है ,
पर बर्तन साफ़ रखना कल ग्लास पर विम लगा था , और पानी छान के भरा करो ,
और मेरी वो पेंट , वो कहाँ रख देती हो ,
और इस पर इस्तरी क्यों नहीं हुयी , क्या करती हो दिनभर ॥

नहीं , बच्चों की पिटाई पर रोना मत रोओ , तुम्ही ने बिगाड़े हैं ,
यूँ थरथरा क्यों रही हो ,अब खड़े खड़े मूहँ क्या देख रही हो ,
दिल जलाती रहो ,
पर रोटियाँ नहीं जलनी चाहिए ,
हिटलर तुमने देखे कहाँ है , कोई और होता तो सांस लेना भी मुश्किल कर देता ,
तुम्हारे चाल चलन पर ,
और तुझे क्या मतलब है कल लेट क्यों आया , अय्याशियाँ करता हूँ न मैं तो सुबह से शाम तक ,
इतनी देर किससे गप्पे लड़ती रहती हो , इतनी रात गए कोन फ़ोन करता है भला ,
दिन में कहाँ गयी थी , तुम्हारी माँ खुद नहीं आ सकती थी ,
अगर इतना ही शौक है तो चली क्यों नहीं जाती अपने बाप के पास ॥

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अरे उस शर्मा ने पैसे नहीं दिए , वर्मा ने भी कम दिए , गुप्ता भी वापस मांग रहा था ,
सेलेरी भी कम आई है इस बार छुट्टियां जो ले ली थी ,
किश्त भी भरनी है ,
स्कूल वाले भी सर पर चढ़े रहते हैं , तुम ही हो आना इनके स्कूल ॥

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अब सर मत खा सो जा जाकर ,
हाँ !! मेरी मर्जी होगी वो ही करूँगा ॥

..................................................................... अ-से अनुज ॥