Dec 13, 2014

बहुत दिन बीते कुछ किया नहीं गया


बहुत दिन बीते कुछ किया नहीं गया
समय कुछ पिछले जिया नहीं गया
दिल से किसी की दौरान बात नहीं हुयी
आँखों में ही गुज़री कोई रात नहीं हुयी
क्या हो गया इस दिल को अंजान समझूँ
अब उठते नहीं कोई खुवाब बेजान समझूँ
समझूँ क्या अपने हालात ए दौर को खस्ता
या किसी बेजुबान का जज़्बात समझूँ
बनते नहीं अब लफ़्ज़ ज़ेहन में सोये हैं
बुदबुदाते नहीं जज़्ब आँखों में रोये हैं
खाली है जन्नत ए इश्क़ से कटोरा
बरसते अब्र से बस उदासी के फ़ोहे हैं
ख़यालों में गुज़र बहुत मुश्किल है करना
सवालों में फिकर बहुत मुश्किल है मरना
मुश्किल है तमाम इस इंसां की राहों में
धीमे से बहुत मुझे वक़्त के पार है उतरना !
अ से

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