इस जाम को प्याले को गवाह करता हूँ
मयकदे में रात से निकाह करता हूँ
तेरी रहमत का ये खुला आसमां लेकर
आज ये आखिरी गुनाह करता हूँ
साकिया देख मैं रंजूर हुआ जाता हूँ
जब्त की हद से बहुत दूर हुआ जाता हूँ
मेहरबान हो कुछ साँस खुद मुझको पिला दे
वरना डूब कर पीने पे मजबूर हुआ जाता हूँ !
अ से
No comments:
Post a Comment