Jan 22, 2015

Body of a Woman -- Neruda .


एक स्त्री की देह
उजले ऊरु , उजले उभार
जैसे तुम हो कोई संसार
आत्मसमर्पण में बिछा हुआ
मेरी रूखी कृषक देह कुरेदती है तुम्हें
और प्रेरित करती है पुत्रों को
उपज आने में पाताल के अँधेरों से ।
मैं अकेला था
किसी खाली सुरंग की तरह
पंछी जहाँ से उड़ चुके थे
अंधकार भीतर तक भरने लगा था
अपने प्लावित आक्रमणों में मुझे ।
एक हथियार की तरह
मैंने तुम्हें ढाला आत्मरक्षा के लिए
मेरे धनुष के एक तीर
मेरी गुलेल में एक पत्थर की जगह ।
लेकिन प्रतिशोध का समय गुज़र गया
और मुझे प्यार है तुमसे
देह , कोमल त्वचा की , फिसलन भरी
उन्माद और उत्सुकता से भरी हुयी
ओह ! स्तन के प्यालों
ओह ! अनुपस्थिति की आँखों
ओह ! तरुणाई का गुलाब
ओह ! तुम्हारी आवाज़ , शांत और उदास
ओह ! देह मेरी स्त्री की
मैं लगा रहूँगा तुम्हारे आकर्षण में
ओह ! मेरी प्यास ,
मेरी असीम चाह
मेरी बदली हुयी राह !
नदी के गहरे किनारे
जहां बहती है शाश्वत प्यास
पीछा करते हैं थकान के एहसास
और एक अंतहीन दुःख !
Body of a Woman -- Neruda .

Jan 21, 2015

कचहरी


घिरा हुआ हूँ साक्ष्यों से
पर कुछ मुकदमे सुलझने नहीं हैं ,
देर तक देखता हूँ खुद एक गवाह की तरह
पर क्या मैं फैसला देना चाहता हूँ ?
दोष का सिद्ध हो जाना
क्या दोषी करार दे दिया जाना है
क्या मुझे फैसला सुना देने का अधिकार हो जाना है ?
दोषी का फैसला क्या सजा होती है / हो सकती है ?
क्या फैसले दोष दूर कर सकते हैं ?
मैं क्यों फैसला कर देना चाहता हूँ ।
क्या मुकदमा वहीं खत्म हो जाता है ?
क्या कुछ मुकदमे सुलझ सकते हैं ? कभी !
भाव भी कितनी जल्दी बदलते हैं ना !
एक दुर्घटना हुयी ,
माफ कीजिएगा एक घटना हुयी ,
उस घटना में कुछ बातें अनायास थी
कुछ बातें सप्रयास ,
पर सप्रयास कितना सप्रयास था कितना अनायास , कौन जाने !
तो एक घटना हुयी
और आप जानना चाहते हो दोष किसका ?
आप घटना के पीछे का कारण जानना चाहते हो ?
किसी एक का दोष सिद्ध होता है ,
क्या वो दोषी हर पल दोषी है , या उस घटना के लिए दोषी है ,
क्या दो दोष खुद एक घटना नहीं ?
क्या उसके पीछे के कारण जानने में किसी की दिलचस्पी है ?
क्या दिलचस्पी भी एक घटना नहीं ?
क्या इस घटना का कारण जानने लायक है ?
क्या हर सवाल का उत्तर दिया जाना आवश्यक है ?
क्या हर सवाल का उत्तर है ?
क्या कोई सवाल है ? हो सकता है ?
क्या बिना सवाल जवाब
कोई मुकदमा सुलझ सकता है ?
क्या जरूरी है मुकदमा सुलझाना !
जबकि मैं घिरा हुआ हूँ साक्ष्यों से
और हर एक वस्तु , हर एक बात , हर एक घटना ,
साक्ष्य है , जबकि हर कोई घिरा हुआ है उनसे ,
और खुद एक सबसे बड़ा साक्ष्य है ,
पर क्या कोई मुकदमा है ?
अ से

एक अंत है हर घटना


दृश्यों के इस प्रवाहमान नद्य में
एक अंत है 
हर घटना 
रोशनी की एक छोटी सी किरण  ,
शांत हो जाना उसका , 

और फिर अँधेरा हो जाना है ,कहानी के अंत तक 
एक मीठी नींद और एक नया सूरज इंतेजार कर रहे हैं जहाँ 

अ से 

Jan 20, 2015

April Rain Song -- Langston Hughes

चूमने दो बारिश को तुम्हें
लगने दो बारिश को सर पर चमकीली गीली बूंदों में
गाने दो बारिश को तुम्हारे लिए एक लोरी
कि ये बारिश बनाती है अभी भी तालाब छोटे छोटे गड्ढों में
कि ये बारिश तैराती है अभी भी नाव सड़कों के किनारे 
और ये बारिश गाती है एक प्यारी नींद की धुन हमारी छतों पर रात में
और मुझे प्यार है इस बारिश से ।
Langston Hughes -- April Rain Song

Jan 19, 2015

दिल के एक अलग आले में ...


दिल के एक अलग आले में , दुनिया से दूर
जहां पहुँच ना सके कोई कभी
मैं चाहता हूँ रखना तुझे ।
मैं देखना चाहता हूँ , चेहरा तेरा 
बिना लिपे पुते , बिना कोई शक्ल बनाए
ताकि मैं देख सकूँ
खिलती हुयी मुस्कान
रोशनी के सफहों से लिखी हुयी
मद्दम मद्दम
बदलते हुये रंगों को
देखना चाहता हूँ
प्रकृति की अद्भुत कूँची
अटखेलियाँ करते हुये भावों को
तेरे चेहरे पर
हर लकीर को मुड़ते हुये
आँखों में कैद कर लेना चाहता हूँ
हर सफ़हा तेरी खुशी का ।
स्मृति के एक अलग कोष में , खुद से भी दूर
जिसे धुंधला ना सकूँ मैं भी
मैं चाहता हूँ रखना तुझे ।
मैं सोचना चाहता हूँ , तुझे हर लम्हा
बिना किसी विचलन , पूरी जिंदगी का समय लेकर
ताकि मैं देख सकूँ
तेरे दिलखुश अंदाज़
स्वर्ग की नम बारिशों में
तेरा रक्स
तुझे छूकर जाती हवा के साथ
प्रकृति के सबसे भंगुर सबसे कोमल चित्रों को
उसके सौ रूपों में
कैद कर लेना चाहता हूँ
स्मृति में तुझे
खुद को पूरी तरह से भुलाकर ।
अ से

Refugee blues -- WH Auden


शरणार्थीय उदासता :
कहते हैं ये शहर रखता है सौ लाख आत्माएँ
कुछ रह रही है बँगलो में , कुछ रह रही है गड्ढों में :
तब भी कोई जगह नहीं हमारे लिए , मेरे दोस्त , तब भी कोई जगह नहीं हमारे लिए ।
एक समय एक देश था हमारा और हम मानते थे इसे जहाँ
देखो मानचित्र में और ये तुम्हें मिल जाएगा यहाँ :
हम नहीं जा सकते अब वहाँ , मेरे दोस्त , हम नहीं जा सकते अब वहाँ ।
वहाँ गाँव के कब्रिस्तान में बढ़ता है एक पुराना सदाबहार (वृक्ष)
हर बहार में ये खिल जाता है नया सा :
पुराने पासपोर्ट नहीं कर सकते ये , मेरे दोस्त । पुराने पासपोर्ट नहीं कर सकते ये ।
राजदूत आया और मेज ठोक कर बोला ,
" अगर तुम्हारे पास पासपोर्ट नहीं है तो आधिकारिक तौर पर मर चुके हो तुम ":
पर हम जिंदा हैं अभी तक , मेरे दोस्त , पर हम जिंदा हैं अभी तक ।
गया एक सीमिति में ; उन्होने मुझे बैठने को कुर्सी दी ;
और विनम्रता से कहा अगले साल आना :
पर कहाँ जाये हम आज अभी , मेरे दोस्त , पर कहाँ जायें हम आज अभी ?
पहुँचा एक सार्वजनिक सभा में : वक्ता उठा और बोला ;
" अगर हम उन्हे आने देंगे , वो चुरा लेंगे हमारी रोज-रोटी " :
वो बोल रहे थे मेरे तुम्हारे बारे में , मेरे दोस्त , वो बोल रहे थे मेरे तुम्हारे बारे में ।
सोचो मैंने सुना बिज़ली को आकाश में गड़गड़ाती हुयी ;
वो हिटलर सी यूरोप पर , कह रही थी , "उन्हें मरना ही होगा " :
ओ हम उसके दिमाग में थे , मेरे दोस्त , हम उसके दिमाग में थे ।
देखा एक नन्हा पिल्ला पिन से बंधा हुआ एक जैकेट में ,
देखा एक दरवाजा खुलते हुये और एक बिल्ली को अंदर बुलाते :
लेकिन वो नहीं थे जर्मन यहूदी , मेरे दोस्त , लेकिन वो नहीं थे जर्मन यहूदी ।
गया नीचे बन्दरगाह पर और खड़ा हो गया घाट पर ,
देखा मछलियों को तैरते हुये कितनी आजाद थी वो :
सिर्फ 10 फुट दूर , मेरे दोस्त , सिर्फ दस फुट दूर ।
गुज़रा एक जंगल से , देखा पंछियों को पेड़ों में ;
उनमें नहीं थे कोई राजनीतिज्ञ और वो गाती थी मन चाहा :
वो इंसानी सभ्यता नहीं थी , मेरे दोस्त , वो इंसानी सभ्यता नहीं थी ।
सपने में देखी मैंने एक इमारत हज़ार मंजिलों वाली ,
हजारों खिड़कियाँ और हजारों दरवाजे :
एक भी नहीं थी उसमें से हमारी , मेरे दोस्त , एक भी नहीं थी उसमें हमारी ।
खड़ा हूँ एक महान समतल पर गिरती हुयी बर्फ में ,
दस हज़ार सैनिक , आगे आते हैं और चले जाते हैं :
तलाश में तुम्हारी और मेरी , मेरे दोस्त , तलाश में तुम्हारी और मेरी ।
Refugee blues -- WH Auden

Dreams -- Langston Hughes

सीने से रखो सपनों को
कि जब सपने मरते हैं
जीवन एक पंछी है टूटे परों वाला
जो उड़ नहीं सकता ।
सीने से रखो सपनों को 
कि जब सपने रूठते हैं
जीवन एक खाली मैदान है
बर्फ से जमा हुआ ।
Dreams -- Langston Hughes

Jan 17, 2015

एक पत्थर जो सदियों से वहीं था



एक पत्थर जो सदियों से वहीं था , जिसके बारे में चर्चाएँ थी दूर दूर तक ,
वो कब से वहीं था कोई नहीं जानता , वो कब तक वहाँ होगा कोई नहीं जानता ।
लोगों के मन में निश्चित थी उसकी स्थिति , कि वो है , कि कहाँ है वो , और दूसरा समय-रेखा में उसका कोई ओर-छोर किसी को नहीं पता था / समाजिकता के संदर्भ में भी वो हजारों लोगों द्वारा पूजित था इससे उसकी सत्यता पूर्णतः खंडित नहीं की जा सकती थी और उस पर स्वतः ही श्रद्धा झलकती थी । वो चमकीले काले राग का एक पत्थर था जिसने ना जाने कितने मौसम सर्दी गर्मी के ताप झेले थे और फिर भी अविचल स्थिर और अपने अस्तित्व को लेकर अशंक था , उसका कोई रूप नहीं था कि सर धड़ या हाथ पैर अलग किए जा सकते हों वो अरूप मात्र एक लिंग एक चिन्ह था जो अपने अस्तित्व की उपस्थिती दर्ज कराये वहाँ सदियों से विद्यमान था ।
वो ठोस इंद्रिय शून्य मनः शून्य जीव शून्य पत्थर ,
वो आत्मा का रूपक था , ईश्वर का एक बिम्ब चिन्ह प्रतीक ,
वो पूज्य था ।
अ से

Are You Drinking ? -- Charles Bukowski


थका हुआ , सागर किनारे , एक पुरानी पीली डायरी
बाहर फिर से ,
मैंने लिखा बिस्तर पर से
जैसा मैंने किया था
पिछले बरस । 
मिलुंगा चिकित्सक से
सोमवार ।
" हाँ , डॉक्टर , पाँव में दर्द , वर्टिगो , सिर दर्द , और मेरी पीठ
तकलीफ देती है । "
" तुम पी रहे हो आजकल ? " वो पूछेगा ।
" तुम ले रहे हो अपनी एक्सरसाइज़ , तुम्हारे
विटामिन्स ?
मुझे लगता है कि मैं बस थोड़ा परेशान हूँ
जिंदगी से , वही बासी पुरानी
पर अस्थिर कारक इसके ।
यहाँ तक की रेसकोर्स में
मैंने देखा घोड़ों को दौड़ते हुये
और ये सब लगा
निरर्थक ।
मैं जल्दी ही निकल आया , टिकेट्स खरीदने के बाद
बाकी बची दौड़ों के ।
" जा रहे हो ?" मोटेल क्लर्क ने पूछा ।
" हाँ ये उबाऊ है "
मैंने उसे बताया ।
"अगर तुम्हें लगता है ये उबाऊ है "
उसने मुझसे कहा , " तो तुम्हें
नहीं आना चाहिए यहाँ लौटकर । "
तो ये रहा मैं
अपने तकिये पर सिर टिकाये
फिर से
बस एक बूढ़ा आदमी
बस एक बूढ़ा लेखक
साथ लिए अपनी
पीली डायरी ।
कुछ चल कर आ रहा है
फर्श पर से
मेरी ओर ।
ओह , ये है बस
मेरी बिल्ली
इस
बार ।
Are You Drinking ? -- Charles Bukowski ।

Jan 16, 2015

वास-निर्वास

1
---------
वो सब कुछ बहुत तकलीफ देता है
जो आपको सुला दे 
तब जबकि आप सोना नहीं चाहते
आप छटपटाते हो ।
और वो 'गहरी नींद' में चले जाने की तकलीफ नहीं ,
आप छटपटाते हो उस सब के लिए
जो आपसे छूट रहा है ,
तब जबकि उनमें भावनाएँ बाकी हैं आपकी !

2
--------
जब वो मुझे याद आती नहीं
मैं उसकी तरफ खिंचा जाता कैसे 
तब जब वो मुझको भूल गयी हो
उसको अपनी याद दिलाता कैसे
तब जब लंबे अंतराल तक अंतराल रहा
तब कोई ख्याल आता कैसे
वरना गर सब चमकीला ही रहता
तो फिर दिन धुंधलाता कैसे ।
अ से

अ से अध्यापक :

 हिसाब लगाओ ...
ये एक अंक की संख्या
सब न्यास घटाकर
सब जोड़ बैठा कर भी 
एक अंक की ही रह गयी !
अगले अंक में
हासिल क्या हुआ !

.......................................
भाग दो ...
कुल जमा स्मृति में
बीते कुल समय का
जी जाती है कितनी जिंदगी
एक पल में ?

......................................... 

Jan 12, 2015

पहेली कोई उदासी की ...


कितनी खूबसूरत
पहेली कोई उदासी की पर ,
वो , वो आँखें वो ,
वो आँखें ही वो ।
जो ठहर गयी थी समय में
कैद कर लिया था जिसे रौशनी ने खास
या हो गयी थी अचानक अनायास ।
कि हटती नहीं थी निगाहों से
उन आँखों की उदास
ठहरी हुयी प्यास ।
क्या कोई जीवन है वो पूछती हैं
कि अगर है तो उन आँखों में
क्यूँ नज़र नहीं आता
कि क्या कोई खुशी है
जिसके लिए लड़ मरते हैं हम ।
क्या कहीं मौत है
जिसमें सो सकें वो
कि अगर है तो उन आँखों में
क्यूँ नज़र नहीं आती
कि क्या कोई शांति है शाश्वत
जिसके आश्वासन में जीते जाते हैं हम ।
अ से

in the ear of a girl -- Federico García Lorca

कान में एक लड़की के
-------------------------
नहीं चाहा
नहीं कहा कुछ भी ।
उसकी दो आँखों में मैंने देखे
दो छोटे पगलाए पौधे ।
हवा के , हँसी के और सोने के ,
हिचकोले खाते ।
नहीं चाहा 
नहीं कहा कुछ भी ।

in the ear of a girl -- Federico García Lorca

लकीर के फकीर


-----------------
किसी ने खींची एक लकीर
रास्ते का रूपक धड़ 
कोई आया बिना समझे
कर गया उसको छड़ ।
---------
किसी ने खींची एक लकीर
दूसरे ने आकर उसे गहरा दिया और
फिर वो होती गयी गहरी हर छोर ।
-----------
किसी ने खींची एक लकीर
दूसरा लगाने लगा अनुमान
कैसा है उसके दूसरी ओर का आसमान ।
--------------
किसी ने खींची एक लकीर
दूसरी फिर तीसरी बना दिया नक्शा पूरा
और उलझा हुआ है उनमें अब हर दिमाग अधूरा ।
--------------
किसी ने खींची एक लकीर
एक राग ने उसके समानान्तर
फिर एक आग ने खींची एक और लकीर
समकोण पर उन सभी को काट कर ।
---------------
किसी ने खींची एक लकीर
किसी और ने कुछ सोचकर खींचनी चाही विपरीत
पर हर बार उसी को पाया
उसने देर तक कागज देखा और उसे फाड़कर मुस्कुराया ।
-----------------
किसी ने खींची एक लकीर
उसने आकर पीट दी
क्यूंकि यही करते हैं सभी ।
------------------
किसी ने खींची एक लकीर
भटकाव से बचने को
पर उसी रास्ते भटक गया तीर ।
अ से

he yawns

eyes , they open ,
he yawns ,
and the world 
comes into being ,
he creates everything 
around him ,
one more day ends
tired , he yawns yet again
the world goes into
slumber , unexpressed !

a se

Jan 11, 2015

horoscope --- vladimir holan

राशिफल
-----------
शाम की शुरुआत ... कब्रिस्तान ... और हवा इतनी तीखी
जैसे हाड़ की किरचें किसी कसाईखाने में ।
कब से लगी हुयी जंग अचानक झिंझोड़ देती है 
साँचे को इसके संतप्त रूप से बाहर ,
और इस सब से ऊपर , शर्म के आँसुओं से भी ऊपर ,
सितारों ने लगभग तय कर लिया है कबूलना ।
क्यों हम समझते हैं सरलता को सिर्फ तभी जब दिल टूटता है
और हम अचानक हम हो जाते हैं , अकेले और भाग्यहीन ।
-- व्लादिमीर होलान

dont go yet --- vladimir holan

नहीं , अभी से मत जाओ
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नहीं , अभी से मत जाओ , मत घबराओ इन सब उत्तेजनाओं से
यह तो एक भालू है , शहद के छत्ते को खोलता हुआ , बाग में 
वो जल्दी ही शान्त हो जाएगा ।
मैं भी रोक लूँगा शब्दों को जो ऐसे झपटते हैं जैसे सर्प के शुक्राणु
ईडेन की उस स्त्री की तरफ ।
नहीं , अभी से मत जाओ , झुकाओ नहीं अपने चेहरे का परदा ,
जबकि केसर की गंध ने रौशन कर दिया है ये मैदान ।
यही है वो जो तुम तब हो , जीवन , भले तुम कहती हो :
चाह से , हम जोड़ते हैं कुछ और । पर प्यार
प्यार रहता है ।
--- व्लादिमीर होलान

that hour -- vladimir holan

वो पहर
-----------
यह है वो पहर : संगीत से संभव नहीं
और शब्द बेमतलब हैं । वो उदास पंक्ति खालीपन की 
खींच दी गयी साँसों के द्वारा बेसब्री से दिखाती है
कि वास्तविकता की पूर्णता चाहिए होती है
कार्य को छवि बनने के लिए ।
बरसात शुरू हो गयी है ,
सुर्ख फीका हो रहा है डहलिया ( के फूलों ) से ,
खूनी धोता है अपने हाथ झरने पर ।
--- व्लादिमीर होलान

nothing after all -- vladimir holan

कुछ नहीं आखिर
-------------------
हाँ , अभी सुबह है और मैं नहीं जानता
क्यों इस पूरे सप्ताह मैं दौड़ता रहा 
बाहर ठंडी सड़कों से इस दरवाजे तक
कहाँ खड़ा हूँ मैं अब , अपने समय के सामने ।
मैं नहीं चाहता था मजबूर करना भविष्य को ।
मैं नहीं चाहता था जगाना उस अंधे आदमी को ।
उसे खोलना है वो दरवाजा मेरे लिए
और चले जाना है फिर से ।
nothing after all -- vladimir holan

On the Pavement --- vladimir holan

फुटपाथ पर --
वो बूढ़ी है और लंगड़ाती है यहाँ हर रोज़
अखबार बेचने को ।
थकी हुयी और चूर 
वो पसर जाती है उसके अतिरिक्त ढेर पर
और चली जाती है नींद में ।
गुजरने वाले
इतने आदी हैं इसके कि वो देखते भी नहीं उसको
और वो , रहस्यमय और जादूगरनी की तरह बड़बड़ाती ,
छिपा जाती है कि उसे क्या मिलना चाहिए ।
On the Pavement --- vladimir holan