देह मुक्त कर देना चाहती है आत्मा को मेरी ,
आत्मा चीखती है अँधेरों से घबराकर
और कोई आवाज़ भर नहीं होती
कि शब्द स्फुटित नहीं होते ।
आत्मा जकड़े रहना चाहती है देह को मेरी ,
देह जलने लगती है रौशनी में आकर
और कोई बुझा नहीं पाता इसे
कि प्यास बुझती नहीं है ।
देह जलने लगती है रौशनी में आकर
और कोई बुझा नहीं पाता इसे
कि प्यास बुझती नहीं है ।
अ से
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