Feb 11, 2015

मैं देखता हूँ अपने आस पास ...


नींद खुलती है और मैं देखता हूँ अपने आस पास
सबकुछ , अँधेरा और रौशनी और अपनी ऊर्जा
महसूस करता हूँ ,
और उठ बैठता हूँ ,
बिस्तर से उतरता हूँ कदम जमीन पर रखता हूँ 
और लड़खड़ाता हूँ चलने की कोशिश में
और संतुलन को पुनः स्मृत कर संभल जाता हूँ
मैं चलने लगता हूँ ।
मैं चलने लगता हूँ भोर की रौशनी में
दिन धूप भाग दौड़ करता हूँ
और फिर शाम को सहेज लाता हूँ बचे हुये पल
बची हुयी ऊर्जा के
फिर से स्मृत करता हूँ अपना संतुलन
पंजों को आराम देता हूँ
और अँधेरा घिर आता है ।
अभी बहुत कुछ है जिसे आराम देना है पर
अभी काफी वक़्त है फिर से सुबह होने में
और उतार देता हूँ ये वस्त्र
कि अभी इनकी जरूरत नहीं ।
अ से

No comments: