(1)
एक रेशमी गिरह बांधे हुयी थी पंखुड़ियाँ गुलाब जब देखा था तुम्हे पहली बार तुम खुल कर हँसी थी ! किसी कमलिनी की सुबह खुलते हुए दल से उड़ता हुआ भंवरा और हवा में बिखर जाते पराग ! एक पल को खिलता और फिर घुल जाता खामोशी में जाने कौनसा फूल था ! कितनी नरमी से सरकी थी वो गिरह रेशमी एक हँसी में हवा हो गया था कितना कुछ ! ---------------------------------------- रात के साफ़ आसमान में एक टूटता तारा चमका था तुम्हारी आँखों में पल भर के लिए और फिर किसी और दुनिया में ले जाकर रख दी थी तुमने निगाहें अपनी ! दो पल की मुलाकात और इंतज़ार फिर से उसी संयोग का ! दोहराव का सुन्दर गणित दोहराव का गहराता वैराग दोहराव की बढ़ती ऊंचाई अनुराग की ओर ! -------------------------------------- हर पत्थर तैरता है तुम्हारे नाम का इस सागर में ना कभी डूबता है ना कभी खोता ! शब्दों के कंकड़ , बातों के पहाड़ बाकी सब कुछ डूब जाता है हर बार --------------------------------------- प्रेम में डूबी बातें विश्वास में डूबी आँखें कितना मजबूत पुल बाँधती हैं सोचना ही नहीं पड़ा कभी आते जाते ! विश्वास के धागों में बुने उम्मीदों के ख़याली स्वेटर और हल्के मद से सराबोर सर्द हवा में खामोश हम तुम चिपकी सी रहने लगती है कोई नर्म ऊनी गुनगुनाहट ! ---------------------------------------- विज्ञान की होकर भी तुम बातों में जाने कौन जादू रचती थी अपने समीकरणों से ना जाने कौन सा साहित्य सृजति थी ! एक मैं भी था जिसके लिए किताबों में रह गया था बस एक नीला आसमान उड़ान भरने लगते थे आँखें रखते ही खयालों के कितने पंछी ! ---------------------------------------- वक़्त की शुरुआत बदल गयी थी तुमसे पहले कुछ नहीं था सृष्टि में ना तुम्हारे बाद के किसी ख्याल को आकाश मिलता था ! तुमसे मिलना और फिर भावों का उद्गम बदल जाना खगोलीय घटना थी या जाने रसायन की पहेली या कोई नए युग की शुरुआत ! रौशनी का स्तोत्र भी बदल सा गया था तेरे बिना कहाँ शुरू होता था दिन कहीं ! ---------------------------------------- तुझसे मिलने और तुझसे मिलने के बीच में कभी कोई वक़्त नहीं गुज़रा ना ही कुछ घटा ना ही कुछ आगे बढ़ा ! तेरे साथ बिताये पल कितने रेशम कितने सरल कितने गम कितने तरल बिना छुए ही गुज़र गया वो कितना वक़्त पास से ख्वाब हो गयी कितनी सदियाँ कितने आँसू आँख से कितनी खुशियाँ आँखों में बनकर आँखों में ही छा गयी मीठी यादें नमक सी घुलकर स्मृति जल में समा गयी ! ---------------------------------------- (2) ठहर जाया करता अक्सर सब कुछ और फिर चलने लगता सब कुछ वैसे ही मुझे वहीँ छोड़कर ! ऐसे ही किसी एक पल सब कुछ ठहरा हुआ था घंटाघर पर घडी घड़ी पर काँटें काँटों में वक़्त आँखों में तेरा खयाल ! जागते सपने सा चलता रहा सब चाँद बहता रहा रात के दरिया में तुम तकिये को नाव किये ! कौन जाने मेरी आँखें दीवार पर थी या शून्य में मन खयालों में था ज़हन सवालों में उलझता सुलझता ! सब कुछ ठहरा हुआ था चाँद रात वक्त खयाल और आँखें अपलक और अचानक सब चलने लगा उस बदलाव के क्षण में जाना होना और ना होना ना होते हुए भी होना होते हुए भी ना होना ! ----------------------------------- संसार सागर था और वक़्त बहाव भावनायें पतवार थी और ख़याल दिशा ख़्वाबों की नाव में संभव नहीं था वक़्त का सही अनुमान खुशबुओं का पीछा करता मन करता रहा सैर ! घड़ी 6 पर थी सूरज क्षितिज़ पर मैं बस स्टॉप पर कहीं और तुम दरवाजे पर या शायद किसी खिड़की में या हर वहाँ जहाँ मेरा खयाल पहुंचा ! अब घड़ी 12 पर है तुम शायद तकिये पर ख़्वाबों को सिरहाने किये मैं बैठा हूँ किसी किनारे एक दीवार का सहारा लिए ! ------------------------------------ हथोड़े की तरह वक़्त गतिशीलता की वस्तु नहीं बस मिलन की चोट है हथोड़े की तरह वक़्त की गतिशीलता कोई वस्तु नहीं बस प्रहार की तीव्रता है ! ------------------------------------- तुम व्यस्त थी मैं खाली और चाहत उमड़ रही थी मैं व्यस्त था तुम खाली और चाहत उभर रही थी पर वक़्त सरकता नहीं था बिना दो पाट एक कदम ! बादलों को प्यास होती है तप कर खाली हो जाने की हर कोई चाहता है मुक्ति अपने कन्धों पर के भार से वो जाते हैं दूर तक बहते हुए जहाँ हज़ारों हाथ इंतेज़ार में हो और पत्ते नम स्पर्श को आतुर ! एक बरसात और भी थी जमीन से उठती थी गर्मी की बूँदें और हल्का कर देती थी बादलों को बंधन मुक्त हो ऊर्जा गरजती कड़कती हो जाती थी लय अनंत आसमान में कहीं ! ---------------------------------------- (3) शिकन थकन सिलवटें दूर होने लगे थे सब फेफड़े लेने लगे थे खुली हवा का स्वाद मैंने जाना बेवजह की हो-हँसी से कहीं बेहतर हैं ख़ामोश ख़याल दुनियावी थार में प्यार सागर की लहरों सा गंभीर शोर करता था मेरे मन की खामोशी में बहती हुयी हवा के झोंके बदल देते थे विचारों की दिशा खोया हुआ पाता था अपने आप को मैं अक्सर ! ---------------------------------------- ख्वाहिशें सिमट कर सारी एक मूर्त रूप ले उठती सब कुछ बेमायनी लगता लगता जैसे जीवन बस उतना ही हो जितने में सिमट सकें तुम और मैं ! एक दुनिया और उसमें अनेक एक दुनिया बिखराव वियोग और खो जाती हुयी चीजें मैं कर लेना चाहता था निश्चित तुम बनी रहो मेरी दुनिया में ! हम सब मूर्ती हैं अपने ही सपनो की और हमारा संसार हमारा निजी स्वप्न संसार पर कितने खुले हुए हैं हमारे स्वप्नों के रास्ते और कितना गुजरते हैं हम सब एक दुसरे से होकर ! सच कर देता है उसे किसी भी ख्वाब से ज्यादा लगाव पत्थर में भी बसने लगते हैं प्राण कभी कभी सच हो जाते हैं हमारे हसीन ख्वाब तो कभी कोई डरावना खयाल आकार लेने लगता हैं ! अदृश्य धागों से बंधी हुए गोल घूमने लगती है जिंदगी हर फैसला हर एक ख़याल बस उस एक घेरे तक सिमट जाता है ! ---------------------------------------- अ से |
Dec 26, 2014
Dec 24, 2014
इस जाम को प्याले को गवाह करता हूँ
इस जाम को प्याले को गवाह करता हूँ
मयकदे में रात से निकाह करता हूँ
तेरी रहमत का ये खुला आसमां लेकर
आज ये आखिरी गुनाह करता हूँ
साकिया देख मैं रंजूर हुआ जाता हूँ
जब्त की हद से बहुत दूर हुआ जाता हूँ
मेहरबान हो कुछ साँस खुद मुझको पिला दे
वरना डूब कर पीने पे मजबूर हुआ जाता हूँ !
अ से
Dec 20, 2014
मृत्युलोक
ये मृत्यु द्वारा जीत लिया गया लोक है
शेष को पृथ्वी का भार ढ़ोना है
अपनी वृद्धि के लिए
सृजन का बीज बोना है ।
ब्रह्मा को सृजन का अहंकार है
विष्णु ने जीत लिया ये संसार है
पर इस सब से
शिव को क्या सारोकार है ।
अ से
विष्णु ने जीत लिया ये संसार है
पर इस सब से
शिव को क्या सारोकार है ।
अ से
Dec 18, 2014
Suicide in the Trenches -- Siegfried Sassoon
मैं जानता था एक सामान्य सिपाही लड़के को
जो हँसता जीवन की खाली खुशियों पर
सोता था गहरी नींद निर्जन अँधेरे के बीच
और निकल पड़ता पंछियों के साथ अल सुबह
सोता था गहरी नींद निर्जन अँधेरे के बीच
और निकल पड़ता पंछियों के साथ अल सुबह
सर्दियों में खंदक खोदकर रहता उदास और त्रस्त
सिकुड़ कर जुओं और रम की कमी के साथ
उसने निकाल दी एक गोली अपने भेजे के पार
किसी ने जिक्र नहीं किया उसका फिर कभी
सिकुड़ कर जुओं और रम की कमी के साथ
उसने निकाल दी एक गोली अपने भेजे के पार
किसी ने जिक्र नहीं किया उसका फिर कभी
तुम दंभी-चेहरे आपस में जलने वाली भीड़
जो खुश होती है जब सैनिक मार्च करते है युद्ध को
घर में छुपे बैठे प्रार्थना करते कि तुम्हें ना देखना पड़े
नरक जहाँ चली जाती है हँसी और जवानी ।
जो खुश होती है जब सैनिक मार्च करते है युद्ध को
घर में छुपे बैठे प्रार्थना करते कि तुम्हें ना देखना पड़े
नरक जहाँ चली जाती है हँसी और जवानी ।
I knew a simple soldier boy
Who grinned at life in empty joy,
Slept soundly through the lonesome dark,
And whistled early with the lark.
Who grinned at life in empty joy,
Slept soundly through the lonesome dark,
And whistled early with the lark.
In winter trenches, cowed and glum,
With crumps and lice and lack of rum,
He put a bullet through his brain.
No one spoke of him again.
With crumps and lice and lack of rum,
He put a bullet through his brain.
No one spoke of him again.
You smug-faced crowds with kindling eye
Who cheer when soldier lads march by,
Sneak home and pray you'll never know
The hell where youth and laughter go.
Who cheer when soldier lads march by,
Sneak home and pray you'll never know
The hell where youth and laughter go.
Suicide in the Trenches -- Siegfried Sassoon
Dec 14, 2014
God and the soldier
ईश्वर और सैनिक
सभी के पूजनीय
विपत्ति के समय
और फिर नहीं ;
कि जब युद्ध निपट चुका है
और सब कुछ सही है
देवता उपेक्षित हैं
बूढ़े सैनिक महत्वहीन ।
God and the soldier
All men adore
In time of trouble,
And no more;
For when war is over
And all things righted,
God is neglected -
The old soldier slighted.
---- Anonymous
All men adore
In time of trouble,
And no more;
For when war is over
And all things righted,
God is neglected -
The old soldier slighted.
---- Anonymous
Dec 13, 2014
बहुत दिन बीते कुछ किया नहीं गया
बहुत दिन बीते कुछ किया नहीं गया
समय कुछ पिछले जिया नहीं गया
दिल से किसी की दौरान बात नहीं हुयी
आँखों में ही गुज़री कोई रात नहीं हुयी
क्या हो गया इस दिल को अंजान समझूँ
अब उठते नहीं कोई खुवाब बेजान समझूँ
समझूँ क्या अपने हालात ए दौर को खस्ता
या किसी बेजुबान का जज़्बात समझूँ
अब उठते नहीं कोई खुवाब बेजान समझूँ
समझूँ क्या अपने हालात ए दौर को खस्ता
या किसी बेजुबान का जज़्बात समझूँ
बनते नहीं अब लफ़्ज़ ज़ेहन में सोये हैं
बुदबुदाते नहीं जज़्ब आँखों में रोये हैं
खाली है जन्नत ए इश्क़ से कटोरा
बरसते अब्र से बस उदासी के फ़ोहे हैं
बुदबुदाते नहीं जज़्ब आँखों में रोये हैं
खाली है जन्नत ए इश्क़ से कटोरा
बरसते अब्र से बस उदासी के फ़ोहे हैं
ख़यालों में गुज़र बहुत मुश्किल है करना
सवालों में फिकर बहुत मुश्किल है मरना
मुश्किल है तमाम इस इंसां की राहों में
धीमे से बहुत मुझे वक़्त के पार है उतरना !
सवालों में फिकर बहुत मुश्किल है मरना
मुश्किल है तमाम इस इंसां की राहों में
धीमे से बहुत मुझे वक़्त के पार है उतरना !
अ से
Nov 28, 2014
पुरस्कार
उनके पास बहुत से हैं
सो वो दे देते हैं या बाँट देते हैं
पुरस्कार अहंकार है देने वाले का
सम्मान के वस्त्रों में
और अपने कोषागार में से
वो बाँट देते हैं एक अंश अपने दंभ का ।
पाने वाले उत्सुक रहते हैं हमेशा
हर उस चीज के लिए जो बँट रही हो
क्या बँट रहा है से महत्वपूर्ण कितना मिल रहा है हो जाता है
सम्मान भी किसी वस्तु की तरह बँटता है
फिर फिर अपने को दे की तर्ज पर ।
हर उस चीज के लिए जो बँट रही हो
क्या बँट रहा है से महत्वपूर्ण कितना मिल रहा है हो जाता है
सम्मान भी किसी वस्तु की तरह बँटता है
फिर फिर अपने को दे की तर्ज पर ।
पारितोषिक सामान्यतः साधन है किसी की जीविका का
पर पुरस्कार एक तिरस्कार है
किसी के काम की खूबसूरती के साथ अपना नाम जोड़ने का
और सम्मान का अपमान
एक बड़े मंच पर की गयी जादूगरी
जिसका भेद कैद होता है पर्दे के पीछे
बड़ी कुशलता से मारे गए पांछियों में ।
पर पुरस्कार एक तिरस्कार है
किसी के काम की खूबसूरती के साथ अपना नाम जोड़ने का
और सम्मान का अपमान
एक बड़े मंच पर की गयी जादूगरी
जिसका भेद कैद होता है पर्दे के पीछे
बड़ी कुशलता से मारे गए पांछियों में ।
पुरस्कार दिया जा रहा है या लिया जा रहा है
क्या सचमुच ये किसी के काम का कोई सम्मान है
कि उसे घोड़ों के साथ रेस में दौड़ा दिया जाये
या तय कर दी जाये कीमत खूबसूरत काम की
या बड़ा दी जाये उसके नाम की ।
क्या सचमुच ये किसी के काम का कोई सम्मान है
कि उसे घोड़ों के साथ रेस में दौड़ा दिया जाये
या तय कर दी जाये कीमत खूबसूरत काम की
या बड़ा दी जाये उसके नाम की ।
उनके पास बहुत से हैं
जब उन्हे देने होंगे तो वो किसी भी नाम से दे देंगे
जब उन्हे बांटने होंगे वो किसी भी काम पर दे देंगे
वो राजा है स्व्यंसिद्ध वो निर्णायक है महाभारत के
वो रचयिता है किसी की नियति के
और सच्चे पुरस्कार के हक़दार हैं
कि जुगाड़ बैठाने वालों की कुशलता देखते ही बनती है ।
जब उन्हे देने होंगे तो वो किसी भी नाम से दे देंगे
जब उन्हे बांटने होंगे वो किसी भी काम पर दे देंगे
वो राजा है स्व्यंसिद्ध वो निर्णायक है महाभारत के
वो रचयिता है किसी की नियति के
और सच्चे पुरस्कार के हक़दार हैं
कि जुगाड़ बैठाने वालों की कुशलता देखते ही बनती है ।
अ से
Nov 27, 2014
" अर्द्ध नारीश्वर स्तोत्र -- उपमन्यु कृत -- हिंदी अनुवाद "
चाम्पेयगौरार्धशरीरकाये कर्पूरगौरार्धशरीरकाय
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजःपुंजविचर्चिताय
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
चलत्क्रणत्कंकणनूपुरायै पादब्जराजत्फणिनूपुराय
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजःपुंजविचर्चिताय
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
चलत्क्रणत्कंकणनूपुरायै पादब्जराजत्फणिनूपुराय
हेमांगदायै भुजगांगदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
प्रदीप्तरत्नोज्जवलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ।।
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चम्पाई गौर अर्द्धशरीर रूप , कर्पूरी गौर अर्द्धशरीर रुप
पुष्पसज्जितकेशधारी , जटाधारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
कस्तूरी कुमकुम आवृत रूप , चिताधूल पुंज आवृत रूप ,
प्रवृत्ति रूप , निवृत्ति रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
खनकते बजते कंगन नूपुर पहने , चरण कमल में सर्प नूपुर पहने ,
स्वर्ण बाजुबंद पहने , सर्प बाजुबंद पहने , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
विशाल नीले कमल नेत्र वाली , विकसित कमल रूप नेत्र वाले ,
सम दृष्टि वाली , विषम दृष्टि वाले , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
मंदार माल सज्जित केश , कपाल माल सुशोभित कंधे ,
दिव्य वस्त्र धारी व दिशा वस्त्र धारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
बरसाती बादल से श्याम केश , चमकती बिजली सी ताम्र जटाएँ ,
निर-अपेक्ष रूप , सर्व-अपेक्षा रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
प्रपंच रचना को उन्मुख कृतक , समस्त संहार के तांडव नृतक ,
जगत उत्पत्ति , जगत-एक पिता , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
चमकते रोशन रत्न कुंडल पहने , भयानक सर्परूप आभूषण पहने ,
शिव समन्विता व शक्ति समन्वित , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
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चम्पाई गौर अर्द्धशरीर रूप , कर्पूरी गौर अर्द्धशरीर रुप
पुष्पसज्जितकेशधारी , जटाधारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
कस्तूरी कुमकुम आवृत रूप , चिताधूल पुंज आवृत रूप ,
प्रवृत्ति रूप , निवृत्ति रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
खनकते बजते कंगन नूपुर पहने , चरण कमल में सर्प नूपुर पहने ,
स्वर्ण बाजुबंद पहने , सर्प बाजुबंद पहने , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
विशाल नीले कमल नेत्र वाली , विकसित कमल रूप नेत्र वाले ,
सम दृष्टि वाली , विषम दृष्टि वाले , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
मंदार माल सज्जित केश , कपाल माल सुशोभित कंधे ,
दिव्य वस्त्र धारी व दिशा वस्त्र धारी , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
बरसाती बादल से श्याम केश , चमकती बिजली सी ताम्र जटाएँ ,
निर-अपेक्ष रूप , सर्व-अपेक्षा रूप , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
प्रपंच रचना को उन्मुख कृतक , समस्त संहार के तांडव नृतक ,
जगत उत्पत्ति , जगत-एक पिता , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
चमकते रोशन रत्न कुंडल पहने , भयानक सर्परूप आभूषण पहने ,
शिव समन्विता व शक्ति समन्वित , शक्ति को नमन व शिव को नमन ।।
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जब तुमने वो गुलाब लिया था
सिर्फ मैं ही नहीं
अनुगृहित हुआ था वो गुलाब भी
जब तुमने उसे स्वीकार किया था
वो पौधा , अगर उसे पता चलता ,
खुद उस फूल सा खिल पड़ता , हर पत्ता पंखुड़ी हो जाता ,
वो बगीचा कुछ और स्वीकार नहीं करता फिर ,
सिर्फ गुलाब लगते वहां पर ।
सिर्फ मैं ही नहीं
अनुगृहित हुआ था वो गुलाब भी
जब तुमने उसे स्वीकार किया था
वो पौधा , अगर उसे पता चलता ,
खुद उस फूल सा खिल पड़ता , हर पत्ता पंखुड़ी हो जाता ,
वो बगीचा कुछ और स्वीकार नहीं करता फिर ,
सिर्फ गुलाब लगते वहां पर ।
मेरा कुछ देना प्रेम था मेरा ,
स्वीकार करना तुम्हारा प्रेम ,
दोनों वस्तुतः त्याग थे ,
लेना देना यहाँ गोण था ,
वो व्यवसाय माध्यम था ,
अभिव्यक्ति थी प्रेम की ।
स्वीकार करना तुम्हारा प्रेम ,
दोनों वस्तुतः त्याग थे ,
लेना देना यहाँ गोण था ,
वो व्यवसाय माध्यम था ,
अभिव्यक्ति थी प्रेम की ।
त्याग प्रेम है ,
समर्पण प्रेम है ,
और प्रेम है स्वीकार्यता ,
कोई तुम्हे क्या दे सकता है
जबकि तुम्हे स्वीकार ना हो ,
जबकि तुम्हारा मन उसमें रमता ना हो ,
कोई क्या दे सकता है एक प्रेमी को
संसार से इतर जिसका मन ह्रदय की दो परछाइयों के बीच खोया रहता हो
और कोई क्या ले जा सकता है उसका जिसका किसी वस्तु में अपनत्व ना हो ।
समर्पण प्रेम है ,
और प्रेम है स्वीकार्यता ,
कोई तुम्हे क्या दे सकता है
जबकि तुम्हे स्वीकार ना हो ,
जबकि तुम्हारा मन उसमें रमता ना हो ,
कोई क्या दे सकता है एक प्रेमी को
संसार से इतर जिसका मन ह्रदय की दो परछाइयों के बीच खोया रहता हो
और कोई क्या ले जा सकता है उसका जिसका किसी वस्तु में अपनत्व ना हो ।
हर व्यक्ति का प्रेम व्यवहार अनोखा है , उतना ही जितना वो व्यक्ति
जितने तरह के लोग हैं उतने ही प्रकार की उनकी प्रेम अभिव्यक्ति
पर जब तक उसमें सहजता नहीं है तुम्हें स्वीकार कर सकने की
किसी वस्तु से इतर तुम्हें एक समझ एक एहसास एक चाह मानने की
तब तक अपना सब कुछ दे सकने के बावजूद वो तुम्हे कुछ नहीं दे सकता
तब तक वो तुम्हारी आत्मा तक नहीं पहुँचता ।
जितने तरह के लोग हैं उतने ही प्रकार की उनकी प्रेम अभिव्यक्ति
पर जब तक उसमें सहजता नहीं है तुम्हें स्वीकार कर सकने की
किसी वस्तु से इतर तुम्हें एक समझ एक एहसास एक चाह मानने की
तब तक अपना सब कुछ दे सकने के बावजूद वो तुम्हे कुछ नहीं दे सकता
तब तक वो तुम्हारी आत्मा तक नहीं पहुँचता ।
खाने वाला , बनाने वाले जितना ही पूज्य था हर बार ,
जब भी आपसी सम्मान उन्हें जोड़ता था ,
खाने वाले की तुष्टि बनाने वाले का धन था ,
बनाने वाले का मन खाने वाले का धन
तुम्हारा गुलाब लेना
उसे स्वीकार करना था मुझे स्वीकार करना था
और अनुमति देना था अपनी आत्मा में मेरी उपस्थिति को ।
जब भी आपसी सम्मान उन्हें जोड़ता था ,
खाने वाले की तुष्टि बनाने वाले का धन था ,
बनाने वाले का मन खाने वाले का धन
तुम्हारा गुलाब लेना
उसे स्वीकार करना था मुझे स्वीकार करना था
और अनुमति देना था अपनी आत्मा में मेरी उपस्थिति को ।
चाहत कोई खालीपन सी होती है ,
तब तक , जब तक कोई और उसे समझना नहीं चाहता ,
जब कल्पना के उस रिक्त चित्र को
कोई अपनी स्वीकार्यता देकर , उसमें अपने रंग भरता है ,
तो वो मुक्त आकाश में फ़ैल जाते हैं ,
भोर के वो पंछी जो अब तक रात की उदासी में सोये थे
खुली हवा में सांसें भर पंख फड़फड़ाने लगते हैं
आपसी प्रेम की दुनिया कुछ यूँ रंगीन हो जाती है ,
की शिकवे शिकायतों की विगत सभी लकीरें लुक जाती हैं ,
तब आकाश के भीतर कोई और आकाश नहीं रहता ,
तब आकाश का बाहर समाप्त हो जाता है ,
ये सृष्टि अनुग्रह नज़र आने लगती है
और आत्म सम्मान का सूरज चमकने लगता है ,
और तब बारिश होती है ,
बारिश स्वच्छता की , प्रसन्नता की , विश्वास की ,
अंतःकरण तब अंतस से मुक्त हो महकता है ,
और वो खुशबू किसी गुलाब सी होती है ॥
तब तक , जब तक कोई और उसे समझना नहीं चाहता ,
जब कल्पना के उस रिक्त चित्र को
कोई अपनी स्वीकार्यता देकर , उसमें अपने रंग भरता है ,
तो वो मुक्त आकाश में फ़ैल जाते हैं ,
भोर के वो पंछी जो अब तक रात की उदासी में सोये थे
खुली हवा में सांसें भर पंख फड़फड़ाने लगते हैं
आपसी प्रेम की दुनिया कुछ यूँ रंगीन हो जाती है ,
की शिकवे शिकायतों की विगत सभी लकीरें लुक जाती हैं ,
तब आकाश के भीतर कोई और आकाश नहीं रहता ,
तब आकाश का बाहर समाप्त हो जाता है ,
ये सृष्टि अनुग्रह नज़र आने लगती है
और आत्म सम्मान का सूरज चमकने लगता है ,
और तब बारिश होती है ,
बारिश स्वच्छता की , प्रसन्नता की , विश्वास की ,
अंतःकरण तब अंतस से मुक्त हो महकता है ,
और वो खुशबू किसी गुलाब सी होती है ॥
अ से
So you want to be a writer ? .... by Charles Bukowski
अगर ये* एक विस्फोटक की उत्तेजना से बाहर नहीं आती
हर बात के बावजूद
तो रहने दीजिये ,
हर बात के बावजूद
तो रहने दीजिये ,
जब तक ये स्वतः ही नहीं उभर आती
तुम्हारे दिल से तुम्हारे मन से तुम्हारी जबान से
और तुम्हारे अंतस से
तो रहने दीजिये ,
तुम्हारे दिल से तुम्हारे मन से तुम्हारी जबान से
और तुम्हारे अंतस से
तो रहने दीजिये ,
अगर तुम्हे घंटों तक बैठना पढ़ता है
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन में नज़रें गड़ाये
या अपने टाइप राइटर पर कमर झुकाए
शब्दों की तलाश में
तो रहने दीजिये ,
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन में नज़रें गड़ाये
या अपने टाइप राइटर पर कमर झुकाए
शब्दों की तलाश में
तो रहने दीजिये ,
अगर आप ये करते हैं पैसे के लिए
या नाम के लिए
तो रहने दीजिए ,
या नाम के लिए
तो रहने दीजिए ,
अगर आप ये कर रहे हैं क्योंकि
स्त्रीयों को आप अपने बिस्तर पर चाहते हैं
तो रहने दीजिये ,
स्त्रीयों को आप अपने बिस्तर पर चाहते हैं
तो रहने दीजिये ,
अगर आप को एक जगह बैठकर
लिखे हुए को बार बार सुधारना पढ़ता है
तो रहने दीजिये
लिखे हुए को बार बार सुधारना पढ़ता है
तो रहने दीजिये
अगर ये करने की सोचना आपको मुश्किल लगता है
तो रहने दीजिये
अगर आप किसी और की तरह लिखने की कोशिश कर रहे हैं
तो भूल जाइए ,
तो रहने दीजिये
अगर आप किसी और की तरह लिखने की कोशिश कर रहे हैं
तो भूल जाइए ,
अगर आप को इसके गरज कर बाहर आने के लिए इंतज़ार करना पढता अहै
तो चैन से इंतज़ार कीजिये ,
अगर ये गरज कर बाहर नहीं आती
तो कुछ और कीजिये ,
तो चैन से इंतज़ार कीजिये ,
अगर ये गरज कर बाहर नहीं आती
तो कुछ और कीजिये ,
अगर आप को पहले ये दिखाने का मन है
आपकी पत्नी प्रेमी प्रेमिका दोस्त या माँ बाप को
या किसी को भी
तो अभी आप तैयार नहीं हैं ,
आपकी पत्नी प्रेमी प्रेमिका दोस्त या माँ बाप को
या किसी को भी
तो अभी आप तैयार नहीं हैं ,
बहुतों की भीड़ का हिस्सा मत बनिए
उन हज़ारों लोगों में से एक मत बनिए
जो अपने आप को लेखक कहते हैं ,
कुछ भी हल्का बकवास मत लिखिए जो मन को ना भाये ,
उन हज़ारों लोगों में से एक मत बनिए
जो अपने आप को लेखक कहते हैं ,
कुछ भी हल्का बकवास मत लिखिए जो मन को ना भाये ,
या जिसका अंदाजा लगाया जा सके
आत्म मुग्धता में मत डूबिये
विश्व भर के पुस्तकालय उबासियाँ ले लेकर सो चुके हैं
इस तरह की लिखाई पर ,
उसका वजन मत बढ़ाइए
रहने दीजिये ,
आत्म मुग्धता में मत डूबिये
विश्व भर के पुस्तकालय उबासियाँ ले लेकर सो चुके हैं
इस तरह की लिखाई पर ,
उसका वजन मत बढ़ाइए
रहने दीजिये ,
जब तक की ये किसी रोकेट की तरह बाहर नहीं आती
आपकी आत्मा की जमीन से
जब तक की इसे रोक कर रखना
आपको पागल नहीं कर देता
आपको मरने मारने पर उतारू नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
आपकी आत्मा की जमीन से
जब तक की इसे रोक कर रखना
आपको पागल नहीं कर देता
आपको मरने मारने पर उतारू नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
जब तक की आपके भीतर का प्रकाश
आपके अंतःकरण को प्रकाशित नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
आपके अंतःकरण को प्रकाशित नहीं कर देता
रहने दीजिये ,
जब इसका सही समय होगा
और आप इसके निमित्त चुने जाओगे
तब ये खुद ही रोशनी में आ जायेगी
और ये रोशन रहेगी
जब तक आप नहीं मर जाते या ये आप में नहीं मर जाती ,
और कोई तरीका नहीं है
और कभी नहीं था !
और आप इसके निमित्त चुने जाओगे
तब ये खुद ही रोशनी में आ जायेगी
और ये रोशन रहेगी
जब तक आप नहीं मर जाते या ये आप में नहीं मर जाती ,
और कोई तरीका नहीं है
और कभी नहीं था !
* writing , लिखाई
So you want to be a writer ? .... by Charles Bukowski
So you want to be a writer ? .... by Charles Bukowski
Nov 26, 2014
सामने अतीत है मेरे
सामने अतीत है मेरे
पीठ पीछे भविष्य
कंधे ध्यान मग्न हैं
इन दोनों के बीच ।
बाएँ नियति है मेरी
दायें मेरा सामर्थ्य
अन्तःकरण तराजू है
इन दोनों के बीच ।
दायें मेरा सामर्थ्य
अन्तःकरण तराजू है
इन दोनों के बीच ।
अ से
Nov 25, 2014
समय की डुगडुगी बजाते ...
समय की डुगडुगी बजाते बढ़ता जाता है
अज्ञात पगडंडियों से गुज़रता
अपने चिन्ह छोड़ जाता है
पर वो नज़र नहीं आता
देखने वालों को बस रास्ता नज़र आता है ।
सारे चिन्ह उसका पीछा करते हैं
वो हमेशा आगे चलता है
पर कहीं नहीं पहुंचता
कहीं नहीं जाता
उस तक पहुँचने वालों का इंतज़ार करता है ।
वो हमेशा आगे चलता है
पर कहीं नहीं पहुंचता
कहीं नहीं जाता
उस तक पहुँचने वालों का इंतज़ार करता है ।
उसकी छोड़ी गयी मुस्कुराहट संसार है भूल भुलैया
हर कोई उस में खोया रहता है
वो कोई वजह नहीं बताता
गम्भीर मुद्रा में सोया रहता है
वो समझ नहीं आता
उसकी मुस्कान का रहस्य
कोई उस सा मुस्कुराने वाला ही जान पाता है !
हर कोई उस में खोया रहता है
वो कोई वजह नहीं बताता
गम्भीर मुद्रा में सोया रहता है
वो समझ नहीं आता
उसकी मुस्कान का रहस्य
कोई उस सा मुस्कुराने वाला ही जान पाता है !
अ से
Nov 23, 2014
And The Moon And The Stars And The World -- Charles Bukowski
रात में टहलना --
अच्छा है आत्मा के लिए :
अच्छा है आत्मा के लिए :
खिड़कियों में झांकते हुये
देखते चलना थकी हुयी गृहणियों को
खदेड़ने की कोशिश करती
उनके पीकर पगलाए आदमियों को !
देखते चलना थकी हुयी गृहणियों को
खदेड़ने की कोशिश करती
उनके पीकर पगलाए आदमियों को !
Long walks at night-- that's what good for the soul: peeking into windows watching tired housewives trying to fight off their beer-maddened husbands.
A Challenge To The Dark -- Charles Bukowski
एक चुनौती अँधेरे को
गोली मारो आँख में
गोली मारो दिमाग में
गोली मारो *** में
गोली मारो नाचते हुये किसी फूल की तरह
गोली मारो दिमाग में
गोली मारो *** में
गोली मारो नाचते हुये किसी फूल की तरह
कमाल है कैसे मौत जीत जाती है बिना किसी प्रयास के
कमाल है कितनी ज्यादा साख दी गयी है जीवन के मूर्ख प्रतिरूपों को
कमाल है कितनी ज्यादा साख दी गयी है जीवन के मूर्ख प्रतिरूपों को
कमाल है कैसे मुस्कुराहट सूख चुकी है होठों से
कमाल है कैसे क्रूरता इतनी नियत है जीवन में
कमाल है कैसे क्रूरता इतनी नियत है जीवन में
मुझे जल्दी ही घोषित कर देना चाहिए मेरा युद्ध उनके युद्ध पर
मुझे बचाए रखना है जमीन का मेरा आखिरी टुकड़ा
मुझे निश्चित ही सुरक्षित रखनी है मेरी बनायी थोड़ा सी जगह
जिसने मुझे अनुमत की है जिंदगी
मुझे बचाए रखना है जमीन का मेरा आखिरी टुकड़ा
मुझे निश्चित ही सुरक्षित रखनी है मेरी बनायी थोड़ा सी जगह
जिसने मुझे अनुमत की है जिंदगी
मेरा जीवन नहीं है उनकी मौत
मेरी मौत नहीं है उनकी मौत ।
मेरी मौत नहीं है उनकी मौत ।
shot in the eye
shot in the brain
shot in the ****
shot like a flower in the dance
amazing how death wins hands down
amazing how much credence is given to idiot forms of life
amazing how much credence is given to idiot forms of life
amazing how laughter has been drowned out
amazing how viciousness is such a constant
amazing how viciousness is such a constant
I must soon declare my own war on their war
I must hold to my last piece of ground
I must protect the small space I have made that has allowed me life
I must hold to my last piece of ground
I must protect the small space I have made that has allowed me life
my life not their death
my death not their death …
my death not their death …
A Smile To Remember -- Charles Bukowski
एक मुस्कान याद रखने के लिए --
हमारे पास थी सुनहरी मछलियाँ
एक बाउल में चक्कर लगाती रहती गोल गोल
मेज पर भारी पर्दों के पास ढकती हुयी तस्वीर की खिड़की को
मेरी माँ , हमेशा मुस्कुराती हुयी , हमसे भी चाहती
खुश रहना , कहती मुझे , खुश रहो हेनरी
और वो सही थी , ये बेहतर है खुश रहना अगर तुम रह सको
पर मेरे पिता ने जारी रखा उन्हे पीटना और मुझे कई दफा हफ्ते में
जब भड़के हुये होते भीतर से उनके 6 फूट फ्रेम के
क्यूंकी वो नहीं समझ सके क्या खाये जाता था उनको अंदर ही अंदर ।
मेज पर भारी पर्दों के पास ढकती हुयी तस्वीर की खिड़की को
मेरी माँ , हमेशा मुस्कुराती हुयी , हमसे भी चाहती
खुश रहना , कहती मुझे , खुश रहो हेनरी
और वो सही थी , ये बेहतर है खुश रहना अगर तुम रह सको
पर मेरे पिता ने जारी रखा उन्हे पीटना और मुझे कई दफा हफ्ते में
जब भड़के हुये होते भीतर से उनके 6 फूट फ्रेम के
क्यूंकी वो नहीं समझ सके क्या खाये जाता था उनको अंदर ही अंदर ।
मेरी माँ , बेचारी मछली
चाहती थी खुश रहना , पिटती दो तीन बार हफ्ते में
मुझे कहती खुश रहने को , मुस्कुराओ हेनरी !
तुम मुस्कुराते क्यों नहीं कभी !
चाहती थी खुश रहना , पिटती दो तीन बार हफ्ते में
मुझे कहती खुश रहने को , मुस्कुराओ हेनरी !
तुम मुस्कुराते क्यों नहीं कभी !
और फिर वो मुस्कुराती मुझे दिखाने के लिए कि कैसे ,
और ये सबसे उदास मुस्कुराहटें थी जो मैंने कभी देखी हैं ।
और ये सबसे उदास मुस्कुराहटें थी जो मैंने कभी देखी हैं ।
एक दिन सुनहरी मछलियाँ मर गयी , सारी पाँच की पाँच ,
वो पड़ी हुयी थी पानी की सतह पर , उनकी तरफ से उनकी आँखें अभी भी खुली हुयी थी ,
और जब मेरे पिता घर पहुंचे उन्हें फेंक दिया बिल्ली के सामने रसोई के फर्श पर
और हमने देखा जैसे मेरी माँ मुस्कुराई हो !
वो पड़ी हुयी थी पानी की सतह पर , उनकी तरफ से उनकी आँखें अभी भी खुली हुयी थी ,
और जब मेरे पिता घर पहुंचे उन्हें फेंक दिया बिल्ली के सामने रसोई के फर्श पर
और हमने देखा जैसे मेरी माँ मुस्कुराई हो !
we had goldfish and they circled around and around
in the bowl on the table near the heavy drapes
covering the picture window and
my mother, always smiling, wanting us all
to be happy, told me, 'be happy Henry!'
and she was right: it's better to be happy if you
can
but my father continued to beat her and me several times a week while
raging inside his 6-foot-two frame because he couldn't
understand what was attacking him from within.
in the bowl on the table near the heavy drapes
covering the picture window and
my mother, always smiling, wanting us all
to be happy, told me, 'be happy Henry!'
and she was right: it's better to be happy if you
can
but my father continued to beat her and me several times a week while
raging inside his 6-foot-two frame because he couldn't
understand what was attacking him from within.
my mother, poor fish,
wanting to be happy, beaten two or three times a
week, telling me to be happy: 'Henry, smile!
why don't you ever smile?'
wanting to be happy, beaten two or three times a
week, telling me to be happy: 'Henry, smile!
why don't you ever smile?'
and then she would smile, to show me how, and it was the
saddest smile I ever saw
saddest smile I ever saw
one day the goldfish died, all five of them,
they floated on the water, on their sides, their
eyes still open,
and when my father got home he threw them to the cat
there on the kitchen floor and
we watched
as my mother smiled
they floated on the water, on their sides, their
eyes still open,
and when my father got home he threw them to the cat
there on the kitchen floor and
we watched
as my mother smiled
Nov 22, 2014
Success is counted sweetest -- Emily Dickinson
सफलता गिनी जाती है मधुरतम
उनके द्वारा जो कभी नहीं हुये सफल
पचाने को सारामृत
जरूरी है भूख विकल
उनके द्वारा जो कभी नहीं हुये सफल
पचाने को सारामृत
जरूरी है भूख विकल
सारे बैंगनी मेज़बानों * में एक भी
जिसने लिया हो झण्डा आज
नहीं बता सकता परिभाषा
जीत की इतनी सपाट
जिसने लिया हो झण्डा आज
नहीं बता सकता परिभाषा
जीत की इतनी सपाट
जितना वो परास्त , मरता हुआ
जिसके भुला दिये गए कानों में
जीत का दूरस्थ पीड़ादायी तनाव
फटता है साफ युद्ध के मैदानों में
जिसके भुला दिये गए कानों में
जीत का दूरस्थ पीड़ादायी तनाव
फटता है साफ युद्ध के मैदानों में
Success is counted sweetest
By those who ne'er succeed.
To comprehend a nectar
Requires sorest need.
Not one of all the purple Host *
Who took the Flag today
Can tell the definition
So clear of victory
Who took the Flag today
Can tell the definition
So clear of victory
As he defeated – dying –
On whose forbidden ear
The distant strains of triumph
Burst agonized and clear .
On whose forbidden ear
The distant strains of triumph
Burst agonized and clear .
* the "purple Host" is the royal army during the Civil War of the United States in 1862
Nothing Gold Can Stay -- Robert Frost
प्रकृति का प्रथम हरा सुनहरा है
उसके स्पष्टतम रंग को थामने के लिए
उसकी शुरुआती पत्तियाँ एक फूल हैं
पर सिर्फ एक घंटे के लिए
फिर पत्तियाँ ढल जाती हैं पत्तियों में
और स्वर्ग डूब जाता है शोक में
और सुबह उतर जाती है दिन में
कुछ भी स्वर्णिम स्थायी नहीं रह सकता !
Nature’s first green is gold,
Her hardest hue to hold.
Her early leaf’s a flower ;
But only so an hour.
Then leaf subsides to leaf.
So Eden sank to grief,
So dawn goes down to day.
Nothing gold can stay.
Her hardest hue to hold.
Her early leaf’s a flower ;
But only so an hour.
Then leaf subsides to leaf.
So Eden sank to grief,
So dawn goes down to day.
Nothing gold can stay.
Robert Frost -- The Road Not Taken
दो रास्ते अलग हुये एक पीले जंगल में
दोनों तय नहीं कर सका क्षमा चाहूँगा
पर एक यात्री होकर , खड़ा रहा देर तक
दूर तक देखता रहा जहाँ तक मैं देख सका एक को
जहाँ से ये मुड़ गया झाड़ियों में ।
दोनों तय नहीं कर सका क्षमा चाहूँगा
पर एक यात्री होकर , खड़ा रहा देर तक
दूर तक देखता रहा जहाँ तक मैं देख सका एक को
जहाँ से ये मुड़ गया झाड़ियों में ।
और तब दूसरा लिया , वैसा ही साफ स्पष्ट
और शायद बेहतर दावा रखने वाला
क्यूंकि उस पर घास थी और चुना जाना चाहता था
हालांकि उस से गुजरने के बारे में
जो गुजरे थे सब एकमत थे ।
और शायद बेहतर दावा रखने वाला
क्यूंकि उस पर घास थी और चुना जाना चाहता था
हालांकि उस से गुजरने के बारे में
जो गुजरे थे सब एकमत थे ।
और दोनों उस सुबह बराबर बिछे हुये थे
पत्तियों में कदमों के कोई निशान नहीं थे
ओह मैंने रख छोड़ा था पहला किसी और दिन के लिए !
जानते हुये भी कैसे रास्ता व्यवहार करता है रास्ते में
मैंने संदेह किया क्या मुझे कभी वापस लौटना चाहिए ।
पत्तियों में कदमों के कोई निशान नहीं थे
ओह मैंने रख छोड़ा था पहला किसी और दिन के लिए !
जानते हुये भी कैसे रास्ता व्यवहार करता है रास्ते में
मैंने संदेह किया क्या मुझे कभी वापस लौटना चाहिए ।
कहीं युगों युगों बाद
मुझे ये कहना होगा एक आह के साथ
दो रास्ते अलग हुये थे जंगल में
और मैंने चुना जो कम चुना गया था
और उसी ने पैदा कर दिया सारा अन्तर !
मुझे ये कहना होगा एक आह के साथ
दो रास्ते अलग हुये थे जंगल में
और मैंने चुना जो कम चुना गया था
और उसी ने पैदा कर दिया सारा अन्तर !
Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;
Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim
Because it was grassy and wanted wear,
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,
And having perhaps the better claim
Because it was grassy and wanted wear,
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,
And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way
I doubted if I should ever come back.
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way
I doubted if I should ever come back.
I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I,
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I,
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.
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