Jan 11, 2015

always -- vladimir holan

हमेशा
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ऐसा नहीं कि मैंने नहीं चाहा होता जीना ,
पर जिंदगी 
एक ऐसा झूठ है
कि भले अगर मैं सही होता
पर सच के लिए मुझे झाँकना होता मौत में
और यही है जो मैं कर रहा हूँ ।

always -- vladimir holan

Deep in the Night -- vladimir holan

रात की गहराई में
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' कैसे नहीं हुआ जाये ! ' तुम पूछते हो खुद से और आखिर में कहते हो इसे
ज़ोर से ...
पर पेड़ और पत्थर खामोश हैं 
जबकि प्रत्येक का जन्म हुआ है शब्द से और इस कारण मूक हैं
तब से शब्द डरा हुआ है कि वो क्या बन गया है ।
पर नाम उनके अभी भी हैं । नाम : पाइन , मैपल , एस्पन ...
और नाम : स्फटिक , माणिक , पन्ना , प्रेम ।
खूबसूरत नाम ,
डरे हुए हैं सिर्फ इससे कि वो क्या बन गए हैं ।
Deep in the Night -- vladimir holan

how ... vladimir holan

कैसे
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कैसे जियें ? कैसे बनें सरल और यथाशब्द ?
मैं हमेशा से तलाश में था एक शब्द की 
जो बोला गया हो सिर्फ एक दफा ,
या एक शब्द जो बोला ही ना गया हो कभी ।
मुझे चाहिए थे तलाशने कुछ साधारण शब्द ।
कुछ भी नहीं जा सकता जोड़ा
अपवित्र शराब तक में ।
how ... vladimir holan

When It Rains on Sunday --- vladimir holan


जब होती है बरसात रविवार को
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जब होती है बरसात रविवार को और आप अकेले ,
खुले हुए दुनिया के लिए पर नहीं आता कोई चोर 
और ना तो शराबी ना ही दुश्मन खटखटाता है दरवाजा ,
जब होती है बरसात रविवार को और आप वीरान हो
और नहीं कर सकते कल्पना जीने की बिना शरीर के
और ना ही जिये हो जब से ये आपके पास है ,
जब होती है बरसात रविवार को और आप अपने आप में हो ,
नहीं सोचते बात करने की खुद से ।
तब ये एक देवदूत है जो जानता है और केवल वो जो है ऊपर ,
तब ये एक शैतान है जो जानता है और केवल वो जो है नीचे ।
एक किताब है हाथों में , एक कविता जारी होने में ।
When It Rains on Sunday --- vladimir holan

Sonnet of the Sweet Complaint --- Federico García Lorca

मीठी शिकायत का गीत
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कहीं खो ना दूँ ये आश्चर्य , है मुझे डर
और लहज़ा , तुम्हारी मूर्तिमय आँखों का 
उस रात लिखा हुआ मेरे गालों पर
दूरस्थ गुलाब तुम्हारी साँसों का
ये जोखिम है मेरा होना , इस ओर इस हाल
एक शाखहीन तना और क्या हूँ इसके सिवा
नहीं रखता कोई फूल , गूदा या छाल ,
अपनी पीड़ा की करने को दवा
क्या तुम हो खजाना छिपा हुआ मेरा
क्या तुम हो मेरा सलीब , भीगा हुआ दुःख मेरा
या हूँ मैं एक कुत्ता मालिकाना सिर्फ तेरा
मत खोने दो मुझे पाया है जो मैंने अभी
और संवार लो धाराएँ तुम अपनी नदी की
टूटकर गिरती पत्तियों से , मेरे पतझड़ की
Sonnet of the Sweet Complaint --- Federico García Lorca

Jan 10, 2015

वो दोनों अपने अपने जा रहे थे


वो दोनों अपने अपने जा रहे थे
लड़का वक़्त में आगे
लड़की संसार में पीछे
रास्ते दोनों को मालूम ना थे
वो बस चले जा रहे थे 
वहाँ तक जहां समय और संसार
एक जगह आकर मिलते थे
वो दोनों वहाँ थे , तब
आमने-सामने
और उसके बाद
दोनों पीछे मुड़े
लड़का पीछे की ओर आगे बढ़ गया
और लड़की वहीं रह गयी !
अ से

the wall --- vladimir holan

क्यों तुम्हारी उड़ान इतनी भारी है परवाहों से
क्यों हो जाती है ये यात्रा नीरस ?
मैं बात कर रहा हूँ पंद्रह वर्षों से
एक दीवार से
और मैं खींच लाया हूँ उस दीवार को यहाँ
बाहर मेरे अपने नर्क से
ताकि ये बता सके अब
आपको सबकुछ ।
the wall --- vladimir holan

Jan 9, 2015

Ditty of First Desire by Federico García Lorca

पहली ख़्वाहिश की धुन
हरी सुबह में
मैं बनना चाहता था दिल
एक दिल ।
और परिपक्व साँझ में
बनना चाहता था बुलबुल
एक बुलबुल ।
(आत्मा ,
रंग जाती है नारंगी
आत्मा ,
रंग जाती है प्रेम के रंग में )
ज्वलंत सुबह में
मैं बनना चाहता था मैं
एक दिल ।
और ढलती साँझ में
बनना चाहता था अपनी आवाज़
एक बुलबुल ।
(आत्मा ,
रंग जाती है नारंगी
आत्मा ,
रंग जाती है प्रेम के रंग में )
Ditty of First Desire by Federico García Lorca

MADRUGADA (early morning) --- Federico García Lorca

भोर
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लेकिन प्यार की तरह
धनुर्धर 
अंधे हैं
हरी रात को
उनके तीर
छोड़ जाते हैं निशान
ऊष्म कुमुदनियों के
चाँद का तला
टूट जाता है बैंगनी बादलों से
और उनके तरकश
भर जाते हैं ओस से
ओह , लेकिन प्यार की तरह
धनुर्धर
अंधे हैं
MADRUGADA (early morning) --- Federico García Lorca

The Guitar - Federico García Lorca

रोने लगी
गिटार ।
टूट गए शीशे
सुबह के ।
रोने लगी
गिटार ।
बेकार है
चुप कराना ।
संभव नहीं
उसे चुप कराना ।
रोती है एकसार
वो पानी की तरह ,
जैसे रोती है हवा
बर्फीले मैदानों तले ।
संभव नहीं
उसे चुप कराना ।
रोती है
सुदूर चीजों को ।
गर्म दक्षिणी रेत
तड़पती है जैसे
सफ़ेद फूलों के लिए ।
रोते हैं जैसे तीर लक्ष्य हीन ,
और साँझ बिना सुबह के ,
और पहला पंछी ,
शाख पर मरा हुआ ।
ओह ! गिटार
ओ घायल दिल
पाँच विषम तीरों से ।
The Guitar - Federico García Lorca

vladimir holan

एक लड़की ने आप से पूछा : कविता क्या है
तुम उस से कहना चाहते थे : तुम भी , ओह हाँ , तुम , 
और जो डर और आश्चर्य में हैं ,
जो साबित करता है चमत्कार को ।
मैं जलता हूँ तुम्हारी भरी हुयी सुंदरता से
और क्यूंकि मैं तुम्हें चूम नहीं सकता ना ही सो सकता हूँ तुम्हारे साथ ,
और क्यूंकी मेरे पास कुछ भी नहीं है और जिसके पास कुछ नहीं है देने को
उसे गुनगुनाना चाहिए ...
पर तुमने कहा नहीं ये , तुम खामोश रहे ,
और उसने सुना नहीं ये गीत ।
-- व्लादिमीर होलान

in the lift --- vladimir holan

मुलाक़ात एक लिफ्ट में
हमनें लिफ्ट में कदम रखे ,
हम दो , अकेले ।
हमने देखा एक दूसरे की ओर और बस इतना ही । 
दो जिंदगियाँ , एक लम्हा , परिपूर्णता , सुख ।
पांचवे माले पर वो बाहर निकल गयी और मैं जाता रहा ऊपर ।
जानते हुये मैं नहीं देख पाऊँगा उसे फिर कभी
कि यह एक मुलाक़ात थी एक बार की और बस हमेशा की
कि यदि मैंने उसका पीछा किया
मैं हो जाऊंगा एक मृत आदमी की तरह उसके रास्ते में
और यदि वो लौट आती है मुझ तक
तो ये आना केवल होगा दूसरी दुनिया से !
-- व्लादिमीर होलान

reincarnation --- व्लादिमीर होलान


पुनर्जीवन 

क्या यह सच है कि हमारी इस जिंदगी के बाद हमें किसी दिन जगाया जाएगा 
तुरही की एक भयानक तुमुल नाद से ?
क्षमा करना ईश्वर , पर मैं सांत्वना देता हूँ स्वयं को 
कि हम सभी मृतकों का आरंभ और पुनर्जीवन 
उद्घोषित किया जाएगा बस मुर्गे की बांग से ।

-- व्लादिमीर होलान

Jan 7, 2015

उसका उद्देश्य है छिपा रहना

उसका उद्देश्य है छिपा रहना
उद्देश्य उसके छिपे हुये नहीं है
बढ़ी खूबसूरती से काम करता है वो
पर उसके काम के ढंग अलग नहीं है
वो काम करता है बिना शांति भंग किए 
बिना किसी को आंदोलित किए !
वो एक का पाँच हो जाता है
पृथ्वी बनकर नया जीवन उपजाता है
जल बनकर उसे सींचता है उसे चलाता है
अग्नि बनकर पचा जाता है अंधकार और बुराइयाँ
वायु बनकर उसे फिर से काम में लाता है
और आकाश बना देखता है स्वयं को नियंत्रित रखता है !
वो हर गत्य अगत्य का जोश है
उसके बिना हर पत्ता हर हवा बेहोश है
उसने अपने चार रूपों में गति की है
और पांचवें मे वो सुस्थिर होश है !
उसके किए कार्यों के परिणाम नहीं होते
वो समयदृश्य के स्थिर बिन्दुओं के स्थिति रूपक हैं
उसके पलक झपकते ही पूरी प्रकृति विलुप्त हो जाती है
और पलकें उठाते ही फिर से उपज जाती है !
वो महामानव है
वो महादानव है
वो सृष्टा है वो दृष्टा है
वो पिछले क्षण की खोयी हुयी स्मृति है
अपनी गूंज से अलख जगा रही
वो सनातन काल से चली आ रही पवित्र श्रुति है !
अ से

Jan 6, 2015

If you forget me -- Pablo Neruda


अगर तुम भूल जाती हो मुझे -- पाब्लो नेरुदा
मैं चाहता हूँ तुम्हें पता हो एक बात ।
तुम जानती हो कैसा है ये ,
जैसे मैं देखूँ काँच सा चाँद ,
या कोई लाल शाख धीमे पतझड़ में अपनी खिड़की पर ,
जैसे मैंने छूयी हो समीप आग , अस्पर्शय राख़
या झुर्रीदार सूखी शाख ,
सबकुछ ले जाता है मुझे तुम तक
जैसे कि सब कुछ जिसका अस्तित्व है ,
गंध , रौशनी , धातुएँ ,
वो सब छोटी छोटी नाव हों जो बहती हैं
तुम्हारे उन टापुओं की ओर जो मेरी प्रतीक्षा में हैं ।
फिर भी ,
अगर धीरे धीरे तुम बंद कर देती हो प्यार करना मुझे
मुझे भी बंद कर देना चाहिए तुम्हें प्यार करना धीरे धीरे
और अगर अचानक
तुम भूल जाती हो मुझे
मैं देखूंगा भी नहीं
कि मैंने भुला दिया होगा ।
अगर तुम सोचती हो इसे
पागलपन या दूर की कौड़ी
ये हवाएँ संदेशों की
जो गुजरती है मेरे जीवन से होकर
और तुमने तय कर लिया है
छोडना मुझे किनारे पर
उस दिल के जहां मेरी जड़ें हैं
सोचना
उसी दिन
उसी समय पर
मैं खड़े कर दूँगा हाथ
और छोड़ दूँगा अपनी जड़ें
तलाशने को कोई और जमीन ।
पर
अगर हर दिन हर पहर
मैं महसूस करता हूँ
तुम्हारा किस्मत में होना
अतिशय मधुरता के साथ
अगर हर दिन जाता है
एक फूल , तुम्हारे होठों तक , तलाश में ,
तो ओ मेरी प्रिय , ओ मेरी अपनी
मुझमें वो सारी आग फिर से जल उठेगी
मुझमें वो कुछ भी बुझा या बीता नहीं है
प्रिय , मेरा प्यार
तो पोषित होता है तुम्हारे प्यार पर
और जब तक तुम हो
ये रहेगा तुम्हारी बाहों में
बिना मेरी बाहों से समाप्त हुये !

Debussy-- Federico García Lorca


मेरी छाया बहती है चुपचाप
जैसे पानी में पेड़ ।
मेरी छाया के कारण मेंढक
सितारों से हैं वंचित ।
ये छाया भेजती है देह को
खामोश चीजों के प्रतिबिंब ।
मेरी छाया इतनी अमित है
जैसे बैंगनी रंग का मच्छर ।
एक सौ झींगूर चाहते हैं
झुलसाना चमक सरकंडों की ।
एक रौशनी सीने से निकलती
प्रतिबिंबित होती पानी में ।

Debussy-- Federico García Lorca

Jan 4, 2015

( Epitaph - Pessoa )

समाधि-लेख 
सोचता था स्वयं को श्रेष्ठ यहाँ करता है विश्राम
विश्व-पटल के कवियों में एक
जीवन में उसने ना खुशी पायी ना आराम
भरा था पागलपन से कई धुनों पर सवार
और जिस भी उम्र में मरा हो वो
ज्यादा ही जी लिया हर किरदार
भावनाओं की उथल पुथल में डूबा
वो जीता था खोखले अहंकार में
अंतर्द्वंदों से ग्रस्त अंतहीन विचार में
बिना साहस वो अपना किरदार ढोता रहा
जिस भी कहानी का हिस्सा हुआ
जीवन की अंतहीन हाय-हाय में रोता रहा
अपने दुखों और डर का बना रहा गुलाम
और रखता था जो कुछ बेतुके विचार
अंत तक साथ रखता रहा सरे आम
पेश आया बुराई से जिन्हें वो करता था प्यार
रहा खुद ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन
कलावादी सोच का बीमार
अपने बारे में जब भी कुछ कहा उसने
काबिल नहीं था किसी के सम्मान के
उधेड़बुन में खोया रहा बस अपने ही जहान के
उसकी सारी क्रांतियाँ निकली बेवजह बेकार
अपने डर तकलीफ़ों के प्रति संवेदना शून्य
अधिकतर रही बेरीढ़ निराधार
कमीना ऐसे और बेकार की उसकी परेशानियां
उसके शब्द , जबकि नीम से भी ज्यादा कड़वे
उसकी कड़वाहट को नहीं कर पाए बयां
ऐसा था वो दुखी और अभागा
जो अब भी सिसक सकता है करुणा में
जिसके पागलपन का पता किसी को नहीं लगा
ना करने दें एक स्वस्थ मानस को
प्रदूषित उसकी कबर , आराम से गुज़र जाने दें
देशद्रोहियों और वेश्याओं को पर
शराबी और व्यभिचारी गुज़र सकते हैं वहां से
पर जल्दी , इससे पहले कि पता चले
हो सकता है , खुश हों वो किसी अफवाह से
हर कमज़ोर और घिनौना दिमाग
जकड लेता है जो अपनी दुर्गन्ध से इंसान को
मिल जाएगा यहाँ उसके प्रति जागरुक राग
जागरूक कि उसमें बता सकता था वो
विक्षिप्तता या बीमारी थी या क्या थी
पर ना तो किया ना दूर करना चाहा उसको
गुजर जाओ इसलिए तुम जो रो सकते हो
और उपेक्षा में सड़न को काम करने दो
जबकि रूखी हवाएँ सूखी पत्तियाँ बुहार रही हों
वतन के लिए जो उठे नहीं हाथ
वो उसके ऊंघते भाई सपने में भी
जगायें नहीं उसे भगवान के नाम के साथ
बल्कि करने दें विश्राम शान्ति में उसे अब से
लोगों की नज़रों और जबान और उस चीज से दूर
जिसने उसको कर दिया था अलग उन सब से
वो एक रचना थी गढ़ी ईश्वर के हाथ में
और जीवन जीने के पाप के लिए
वो हो गया शामिल चिंतन के अपराध में
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pessoa

कितना लम्बा रहा है ये (वक़्त) , दस वर्ष शायद ,
जब मैं गुज़रा था इस गली से
और तब भी मैं यहाँ रहा था कुछ समय के लिए --
लगभग दो वर्ष या तीन .
ये गली वैसी ही है , यहाँ लगभग कुछ भी नया नहीं .
पर अगर ये देख सकती मुझको और कहती
तो ये कहती , " ये वैसा ही है पर कितना बदल चुकी हूँ मैं ! "
और इस तरह हमारी आत्माएं याद रखती हैं और भूल जाती हैं .
हम गुज़रते हैं गलियों से और लोगों से ,
हम गुजरते हैं अनेकों अपने आप से और हम गुज़र जाते हैं ,
तब , ब्लेकबोर्ड पर , माँ चेतना
मिटा देती है प्रतीक , और हम शुरू होते हैं फिर से !
How long it’s been, ten years perhaps,
Since I’ve passed by this street!
And yet I lived here for a time—
About two years, or three.
The street’s the same, there’s almost nothing new.
But if it could see me and comment,
It would say, “He’s the same, but how I’ve changed!”
Thus our souls remember and forget.
We pass by streets and by people,
We pass our own selves, and we end,
Then, on the blackboard, Mother Intelligence
Erases the symbol, and we start again. --- Pessoa

Jan 2, 2015

कुछ शब्द लिखने का मन है


महीनों बाद कुछ शब्द
लिखने का मन है
किसी की खामोशी में ,
कोई एहसास
किसी की बेहोशी में 
और किसी की हार में
लिखना चाहता हूँ
किसी के प्यार का सार
पर नदी की कल कल
और सदियों की हलचल
कहाँ कौन लिख पाया है !
कितनी औरताना होती है ये कवितायें भी
कोई बकवास नींद बेहोशी की बडबडाहट
पर लिखना चाहती हैं
किसी के एकांत में कोई तुकांत
बिखरी रेत में फूंकना चाहती हैं कुछ प्राण
कि सिमट आये सब
और कोई और आकार ले अब !

अ से 

Dec 29, 2014

पहले 
वो देखते थे स्वप्न 
फिर लग गए इन्हें सच करने में 
सच करने में लगते हैं प्रयास 
फिर वो लग गए प्रयास करने में 
फिर वो बस प्रयास करने लगे 
फिर वो भूल गए 
कि वो देखते थे स्वप्न !