महीनों बाद कुछ शब्द
लिखने का मन है
किसी की खामोशी में ,
कोई एहसास
किसी की बेहोशी में
और किसी की हार में
लिखना चाहता हूँ
किसी के प्यार का सार
पर नदी की कल कल
और सदियों की हलचल
कहाँ कौन लिख पाया है !
कितनी औरताना होती है ये कवितायें भी
कोई बकवास नींद बेहोशी की बडबडाहट
पर लिखना चाहती हैं
किसी के एकांत में कोई तुकांत
बिखरी रेत में फूंकना चाहती हैं कुछ प्राण
कि सिमट आये सब
और कोई और आकार ले अब !
अ से
कोई बकवास नींद बेहोशी की बडबडाहट
पर लिखना चाहती हैं
किसी के एकांत में कोई तुकांत
बिखरी रेत में फूंकना चाहती हैं कुछ प्राण
कि सिमट आये सब
और कोई और आकार ले अब !
अ से
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