वक़्त जब सीढ़ियों पर होता है ना तब आप सबको पीछे छोडते चलना चाहते हो
अकेले , आगे ... और आगे ...
वही वक़्त जब झूले पर होता है तब आप चाहते हो एक और कोई साथ हो
खास खामोशी से देखने को ...
पर वही वक़्त जब रिसकनी पर होता है तब आप झट से कुछ पकड़ लेना चाहते हो
किसी को भी , किसी का भी हाथ ...
और वही वक़्त जब पहाड़ों पर चढ़कर किसी चट्टान के आखिरी किनारे पर से
नीचे गहरी अंधेरी खाई को देखता है , तब उसे पूरा वृत्त
उसी एक बिन्दु पर घूमता दिखाई देने लगता है , वो समझ नहीं पाता किसे थामे !
वक़्त ही हर चित्र रचता है उसमें आपकी भूमिका तय करता है
आपको आपका चरित्र और संवाद देता है और उसी में आपको चिपका देता है !
आपको आपका चरित्र और संवाद देता है और उसी में आपको चिपका देता है !
अ से
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