Jan 9, 2015

The Guitar - Federico García Lorca

रोने लगी
गिटार ।
टूट गए शीशे
सुबह के ।
रोने लगी
गिटार ।
बेकार है
चुप कराना ।
संभव नहीं
उसे चुप कराना ।
रोती है एकसार
वो पानी की तरह ,
जैसे रोती है हवा
बर्फीले मैदानों तले ।
संभव नहीं
उसे चुप कराना ।
रोती है
सुदूर चीजों को ।
गर्म दक्षिणी रेत
तड़पती है जैसे
सफ़ेद फूलों के लिए ।
रोते हैं जैसे तीर लक्ष्य हीन ,
और साँझ बिना सुबह के ,
और पहला पंछी ,
शाख पर मरा हुआ ।
ओह ! गिटार
ओ घायल दिल
पाँच विषम तीरों से ।
The Guitar - Federico García Lorca

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