मीठी शिकायत का गीत
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कहीं खो ना दूँ ये आश्चर्य , है मुझे डर
और लहज़ा , तुम्हारी मूर्तिमय आँखों का
उस रात लिखा हुआ मेरे गालों पर
दूरस्थ गुलाब तुम्हारी साँसों का
और लहज़ा , तुम्हारी मूर्तिमय आँखों का
उस रात लिखा हुआ मेरे गालों पर
दूरस्थ गुलाब तुम्हारी साँसों का
ये जोखिम है मेरा होना , इस ओर इस हाल
एक शाखहीन तना और क्या हूँ इसके सिवा
नहीं रखता कोई फूल , गूदा या छाल ,
अपनी पीड़ा की करने को दवा
एक शाखहीन तना और क्या हूँ इसके सिवा
नहीं रखता कोई फूल , गूदा या छाल ,
अपनी पीड़ा की करने को दवा
क्या तुम हो खजाना छिपा हुआ मेरा
क्या तुम हो मेरा सलीब , भीगा हुआ दुःख मेरा
या हूँ मैं एक कुत्ता मालिकाना सिर्फ तेरा
क्या तुम हो मेरा सलीब , भीगा हुआ दुःख मेरा
या हूँ मैं एक कुत्ता मालिकाना सिर्फ तेरा
मत खोने दो मुझे पाया है जो मैंने अभी
और संवार लो धाराएँ तुम अपनी नदी की
टूटकर गिरती पत्तियों से , मेरे पतझड़ की
और संवार लो धाराएँ तुम अपनी नदी की
टूटकर गिरती पत्तियों से , मेरे पतझड़ की
Sonnet of the Sweet Complaint --- Federico García Lorca
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