मेरी छाया बहती है चुपचाप
जैसे पानी में पेड़ ।
जैसे पानी में पेड़ ।
मेरी छाया के कारण मेंढक
सितारों से हैं वंचित ।
सितारों से हैं वंचित ।
ये छाया भेजती है देह को
खामोश चीजों के प्रतिबिंब ।
खामोश चीजों के प्रतिबिंब ।
मेरी छाया इतनी अमित है
जैसे बैंगनी रंग का मच्छर ।
जैसे बैंगनी रंग का मच्छर ।
एक सौ झींगूर चाहते हैं
झुलसाना चमक सरकंडों की ।
झुलसाना चमक सरकंडों की ।
एक रौशनी सीने से निकलती
प्रतिबिंबित होती पानी में ।
Debussy-- Federico García Lorca
प्रतिबिंबित होती पानी में ।
Debussy-- Federico García Lorca
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