पाप कुछ नहीं होता ,
न ही पुन्य कुछ होता है ,
पर झूठ जैसी कोई चीज होती है शायद !
सही गलत कुछ नहीं ,
कायदे कानून बनाये जाते हैं ,
ताकि जो चीजें एक से अधिक को शेयर करनी है वहाँ टकराव ना हों !
ये दुनिया किसी अकेले की बपौती नहीं
कि किसी एक की मर्जी किसी दूसरे पर थोपी जा सके ,
पर उनका क्या जो पागलपन करना चाहता है (और वो उसके लिए पागलपन है भी नहीं )
जिसकी बचपन से फेंटेसी रही है रेप और सीरियल किलिंग
जिसने इस रंगमंच पर अपना किरदार उसी तरह चुना है
क्या उसे रोकना जबरदस्ती की परिभाषा में आना चाहिए !
अगर अहिंसा को आधार मानें ,
तो फिर जंगली / जानवरों को समझाने की जिम्मेदारी किसकी है ,
अपने ह्रदय अपने अन्तः करण को आधार मानें
तो वहां भी सब अपने अपने अवसाद और ग्लानियों से भरे हुए हैं !
और जिसका अंतःकरण भारहीन है
उसे किसी की हत्या करने का क्या दुःख !
अगर बहुमत के हिसाब से ही फैसले लिए जाएँ
और सही गलत का फैसला किया जाए तो ये भेडचाल है ,
सब स्वतंत्र अंतःकरण से नहीं सोच पाते ,
ना ही सबको सब बातों की जानकारियाँ होती है
और वैसे भी हजारों में एक महापुरुष बुद्ध ईसा महावीर
या पिकासो आइन्स्टाइन गांधी होता है तो बहुमत का कोई अर्थ नहीं ॥
जेक स्पैरो के डायालोगानुसार सिर्फ दो बातें महत्त्व रखती हैं ,
एक आप क्या कर सकते हैं , और दूसरी आप क्या नहीं कर सकते ॥
खैर करने में तो एक बच्चा भी क़त्ल कर सकता है ॥
गीता कहती है कैसे कोई मरता है कैसे कोई मारता है भला ,
दर्पण साह भी कहते हैं कौन मरा है भला आज तक ,
तो कैसा क़त्ल और कैसी सजा !
मैं तो यही कहता हूँ आप social हो सकते हो , non -social हो सकते हो ,
आप स्वतंत्र हो आप anti-social भी हो सकते हो ,
पर यह आपकी जान के लिए अच्छा नहीं !
फिर से आप स्वतंत्र हो आप कुछ भी सोच सकते हो
कोई भी सपना देख बुन सकते हो ,
पर उसमें छोड़ना चाहिए एक दरवाजा एस्केप का
आखिर में अपने ही सपनों से डर जाने और उनमें कैद हो जाने की भी सम्भावना होती है !
जो आप खुद सहन कर सकते हो वही व्यवहार दुनिया के साथ करो ये सलाह भी गलत है ,
सबकी क्षमता अलग अलग है , एक पहलवान और दूसरा बीमार भी हो सकता है ॥
जरूरी है की बड़े ही प्यार से खुद को इस सबसे अलग कर लो
और एक मंझे हुए अभिनेता की भांती इस ड्रामे में डूबते उबरते रहो !
जीने की इच्छा भोग है
और जीते रहने की इच्छा बंधन ,
जिन्दगी भर इंसान जीभ और उपस्थ के चलाये चलता है
सभी तरह के कृत्य करता है इन्ही का पेट भरता है
जबकि कर्म मात्र ही वासना पूर्ण है तो सारी बातें बेमायनी हैं !
जिस का जीवन भोग से मन ऊब चुका हो ,
जिसे किसी की चाहत न रह गयी हो ,
उसके लिए सारा ज्ञान विज्ञान , तमीज और कायदा ,
दोस्ती, धन संपत्ति , प्रेम और प्रेमिका कोई मायने नहीं रखती ,
ये सब कुछ आखिर इंसान के सुख के लिए ही तो है !
अ-से