May 9, 2014

अम्लान --1


नीले चादर का झीना सा झिलमिलाता सा तम्बू 
एक कोने में जलते हुए चाँद की रोशनी से लबालब 
और दो ठहरी हुयी साँसों के दरम्यान रखा हुआ " अम्लान "

साँसों की नमी से सींचा था जिसे हमने , पूरी रात 
ना तुम सोयी थी ना मैं , सुबह तक 
कान रखकर सुनी थी तुम्हारी साँसें शोर करते , पहली दफा
और इसमें सहेज कर रखी थी हमनें एक ख्वाहिश , प्राणों की

हमें बचाना था इसे मुरझाने से
इसे बचाना था हमें मुरझाने से
हमें बचाना था हमें मुरझाने से

हम खुद से सच छुपा सकते हैं
हम एक दुसरे से झूठ बोल सकते हैं
पर अम्लान को पता चल जाता है
उन साँसों में कितनी नमी बाकी है अब तक !!

for my endless poem
for my eternal wish

अ-से 

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