कभी घोंसलों में
कभी सूखी टहनियों पर
बैठे रहे बिताते रहे
बदलते मौसम बदलते आशियाने
पंख फडफडाते रहे रह रह कर
रुंधे हुए गले से गीत गाते
चहचहाते , और थक कर चुप हो जाते
रात तक उड़ते बेसबब
और फिर अंधेरों में खो जाते
करते सुबह का इन्तेजार
बारिशों में भिगो लेते पंख
बेबस फिर उड़ नहीं पाते कुछ देर तक
और फिर से वही तलाश
फिर से बेतरह उड़ते फिरना
आसमान सर पर है
जमीन कहीं नहीं नज़र आती
और जो नज़र आती है उसका समय तय है
फिर से छोड़ देना है आशियाँ
की पर मारते रहना ही है नियति
आखिर कितना भर चाहिए था
गला तर करने को
पर मन की प्यास है
की बुझती नहीं है
कि फिर तलाशा जाएगा
एक नया आशियाँ
बनाया जाएगा एक नया घोंसला ...
कभी सूखी टहनियों पर
बैठे रहे बिताते रहे
बदलते मौसम बदलते आशियाने
पंख फडफडाते रहे रह रह कर
रुंधे हुए गले से गीत गाते
चहचहाते , और थक कर चुप हो जाते
रात तक उड़ते बेसबब
और फिर अंधेरों में खो जाते
करते सुबह का इन्तेजार
बारिशों में भिगो लेते पंख
बेबस फिर उड़ नहीं पाते कुछ देर तक
और फिर से वही तलाश
फिर से बेतरह उड़ते फिरना
आसमान सर पर है
जमीन कहीं नहीं नज़र आती
और जो नज़र आती है उसका समय तय है
फिर से छोड़ देना है आशियाँ
की पर मारते रहना ही है नियति
आखिर कितना भर चाहिए था
गला तर करने को
पर मन की प्यास है
की बुझती नहीं है
कि फिर तलाशा जाएगा
एक नया आशियाँ
बनाया जाएगा एक नया घोंसला ...
No comments:
Post a Comment