May 9, 2014

शब्द कणिंकाएं


एक विशेष प्रकार की कणिंकाएं 

हैं उनके रक्त में
शब्द कणिंकाएं
उनके भाव शब्दमय हैं
जो हर संवेदना पर छलक जाते हैं
पलकों के भीतर से 

वो लोग जिनके दर्द, खुशी सब शब्द हो जाते हैं
इतने मूर्त कि आँखों से दिखाई देते हैं
उन्हें ज़बान की जरुरत नहीं
उनकी नसों में बहते हैं लफ्ज़
उनकी जिंदगी कहानी हो चुकी है
और हर अनुभव कविता
हर संवेदना, हर टीस, हर एहसास
कुछ भी अनकहा नहीं
उनके पास अनेको स्वर हैं
पर फिर भी
वे अपनी बात नहीं कह पाते
के उनके शब्दों को समझना
बेदिल बेख्याल लोगों के बस का नहीं
के लिख देने भर से बात नहीं पहुंच जाती
नर्म गीली ज़मीन चाहिए
उन्हें किसी दिल में उपजने को !!

अ से 

No comments: