एक सन्नाटा पसरा है
कई मीलों तक कई वर्षों तक ,
या यूं कहें कई प्रकाश वर्षों तक ,
कोई दिशा नज़र नहीं आती ,
सब और एक सा अँधेरा है ,
और एक सी ख़ामोशी ,
बीच बीच में कई सूरज चमकते तो हैं
पर जुगनुओं से भी मद्धम इस अनंनता में ,
प्रकाश बेअसर सा है यहाँ ,
अनंत अंधेरे के बीच
वो कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता ॥
इसे जाना तो जा रहा है ,
पर यहाँ कोई नज़र नहीं आता,
न तो मैं न ही कोई और ॥
रोना यहाँ किसी पागलपन की तरह होगा ,
रोने का कोई मतलब नहीं ,
और हंसने की कोई गुंजाइश नहीं ,
सब एकरस सा है ,
तो ध्यान का भी कोई मतलब नहीं ,
यहाँ कोई सृष्टि नहीं है ,
कोई भी भाव नहीं उठता ॥
कोई भी देह उपस्थित नहीं ,
जो अपने स्पर्श से बता सके
कि यहाँ हवा भी बहती है या नहीं ,
न ही कोई कर्ण पटल
जो कम्पित हो सकें किसी के रूदन पर ॥
इस अनंत में शून्य इस तरह व्याप्त है
की भेद करना असंभव है ,
कि ये शून्य में है
या शून्य इसमें पसरा हुआ है ॥
इस अनंत शून्य में ,
एक नगण्य सा स्वप्न है ,
जीवन ॥
अ-से
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