May 9, 2014

अम्लान -- 2

अम्लान --2 
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खिड़की से बहकर आती 
चाँद की रोशनी से धुल कर 
अँधेरे में खिल आता उसका चेहरा भर 
और श्वेत-स्याम दृश्य में उभर आते मन के रंग 
दो हाथ उँगलियाँ बांधे निहारते एकटक 
एक दुसरे की आँखों में सींचते " अम्लान "

सम्मोहन का लावण्य .... आपे का खोना
प्रेम की कस्तूरी ... मदहोश होना
स्पर्श के आश्वासन ... प्रेम मय स्मृतियाँ
रास उल्लास .... आनंदमय विस्मृतियाँ

अब जब तुम मिलती हो मुझसे
अब जब मैं मिलता हूँ तुमसे
हम झांकते हैं एक दुसरे में
एक दुसरे की आँखों में आत्मा में

जबान खामोश हो या कहती हो कहानियाँ
शरीर स्थिर हो या छुपाता हो रवानियाँ
पर ये जो अम्लान हैं आँखों में मेरी तुम्हारी
ये सब बयां कर देता है ....
कितनी नमी बाकी है अभी इसमें !!


सबकुछ
थोडा थोड़ा कुछ नहीं

अ-से

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