लपक कर अंगूरों को पा लेने के ,
अनेकों असफल प्रयासों के बाद ,
चार मूँह की लोमड़ी समझ चुकी थी ,
जीवन का सांतत्य ,
कर्म का पथ और न तोड़कर ,
वो चली गयी
पांचवें मुंह के रास्ते ॥
जान पर बन आयी जब ,
आर्त खरगोश ने दिखाया अहंकार को आइना ,
शेर को वर्चस्व की लड़ाई में मौत का कुँवा नसीब हुआ ,
अब जंगल किसी का न बचा ,
वो अब सबका था ॥
आश्वस्तता की नींद में ,
पिछड़ गया खरगोश ,
सतत प्रयासों की गति सूक्ष्म है ,
गूढ़ गति कछुआ हमेशा ही आगे था ,
तीव्र प्रयासों को चाहिए नियत वैराग ॥
अ-से
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