May 9, 2014

कहानियाँ


लपक कर अंगूरों को पा लेने के ,

अनेकों असफल प्रयासों के बाद ,
चार मूँह की लोमड़ी समझ चुकी थी ,
जीवन का सांतत्य , 
कर्म का पथ और न तोड़कर ,
वो चली गयी 
पांचवें मुंह के रास्ते ॥ 

जान पर बन आयी जब ,
आर्त खरगोश ने दिखाया अहंकार को आइना ,
शेर को वर्चस्व की लड़ाई में मौत का कुँवा नसीब हुआ ,
अब जंगल किसी का न बचा ,
वो अब सबका था ॥

आश्वस्तता की नींद में ,
पिछड़ गया खरगोश ,
सतत प्रयासों की गति सूक्ष्म है ,
गूढ़ गति कछुआ हमेशा ही आगे था ,
तीव्र प्रयासों को चाहिए नियत वैराग ॥

अ-से

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