May 9, 2014

गर्मियों के नीरस में हलके हलके सुख ...



सब कंचे चमकते हैं अलग अलग सी ख़ुशी से ,

कुछ कंचे उदास भी हैं , बावजूद इसके वो भी चमकते हैं ,
रंगीन कांच , बर्नियों के पार देखना , 
गर्मियों के नीरस में हलके हलके सुख ...

सीढियां , चटाई , फर्श , आइना और उदासी ,
मेज , दीवार घडी और ये की-बोर्ड 
तुम्हारी आँखों की चमक ,
सब तो है यहाँ ,
सब की खनक है ...

सब कुछ तो बात करता है ,
फिर इतना सन्नाटा क्यों हैं ,
जबकि मैं खाली हूँ किसी भी दुःख से ,
कोई बहाव नहीं ,
किसी ख़ुशी की चमक है हलकी सी चेहरे पर ,
पर लहर नहीं आती ,
फिर बिना सागर ये दो सीप क्यों हैं ...

जिंदगी सतत चमक रही है सूरज सी ,
सपनों में लहर है पानी सी ,
ठहराव कहाँ उसमें ,
कहाँ संभव है हर ख्वाब का बस पाना !!

~ अ-से

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