Oct 17, 2014

in the mood for love theme !


जब साँसे ज़हन को रगड़ने लगे
वक़्त घुटने घिस कर चलने लगे
दम घुटे पर बेबसी पर रो ना पाए
उड़ती चिंगारियां आँखों में जलने लगे
धुनें खाली वेवजह की हो गयी हों
ख्वाहिशें हरारत अल सुबह से हो गयी हों
शब्द अंतस में वजन भर ठहरे रहते हों
मायने आँखों से टपकते संकोच कहते हो
कैद होते हैं इस तरह भी अपनी ही कहानी में
ताजी हवा देने लगे मन को कोफ़्त जवानी में
कभी बैठे कभी लेटे बैचेनियों में जागते सोते
शब्दों की खामोशियों को ताकते रहना होते खोते
तब जीना , तब भी जीना , तब भी झेलना
अपेक्षाएं खुश रहने की
क्या है आखिर ये खुश रहना ??

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