नाद
एक आवाज़
फ़ैल कर कुछ उसी तरह
जैसे फैलता है उजाला सूरज से
ले आती है अस्तित्व में
ये सकल संसार ...
वही आवाज़
जब आती है विनष्टि पर
तो समेट लेती है सबकुछ
फिर अपने ही भीतर ...
सिमटी हुयी हैं
सारी भौतिक गतिविधियाँ
इस संकुचन और प्रसरण में ही
जो होता है अवसाद विकास सरीखा
उनकी आध्यात्मिक अवस्था में!
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निर्वात
खाली नहीं होती एक खाली बोतल ,
होठ लगाकर किसी प्लास्टिक की बोतल के मुंह से ,
अगर उसे खींचा जाए तो वो सिकुड़ जाती है ...
निर्वात इतना आसान नहीं होता ,
आप इतनी आसानी से नहीं देख सकते , खालीपन को ,
वो खींचता है , अपनी पूरी क्षमता से ,
सबकुछ अपनी ओर ...
वो अब भी संघर्ष करता है ,
वो भी भर जाना चाहता है , उसी सब से ,
जिससे भरे हुए हैं बाकी सब , उसके आस पास ...
कि एक सच्चा निर्वात ,
एक सच्ची आवाज़ के साथ जन्मता है ,
जो समेट सकता है समूचे अस्तित्व को अपने भीतर ,
और उसे नष्ट कर सकता है पूरी तरह ,
अपने खालीपन में ले जाकर !
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