उसने खींची एक लकीर
रास्ते का रूपक , चिन्ह
कोई आया
और उसे खींचकर कर दिया सीधा
--------------------------------------
उसने खींची एक लकीर
दूसरे ने आकर उसे गहरा कर दिया
और फिर वो होती चली गयी गहरी हर बार
दूसरे ने आकर उसे गहरा कर दिया
और फिर वो होती चली गयी गहरी हर बार
--------------------------------------
उसने खींची एक लकीर
और लगाने लगा अनुमान
क्या हो सकता है उसके दूसरी ओर
और लगाने लगा अनुमान
क्या हो सकता है उसके दूसरी ओर
----------------------------------------
उसने खींची एक लकीर
फिर दूसरी फिर तीसरी
बना दिया एक नक्शा पूरा
और अब उलझा हुआ है वो
उन लकीरों में
फिर दूसरी फिर तीसरी
बना दिया एक नक्शा पूरा
और अब उलझा हुआ है वो
उन लकीरों में
------------------------------------
उसने खींची एक लकीर
दुसरे ने उसके समानान्तर
तीसरे ने खींची समकोण पर
उनको काटकर
चौथे ने कुछ सोचा
और खींच दी विपरीत
पर विपरीत खींच ना पाया
उसने देर तक देखा उसे
और कागज़ फाड़ दिया !
दुसरे ने उसके समानान्तर
तीसरे ने खींची समकोण पर
उनको काटकर
चौथे ने कुछ सोचा
और खींच दी विपरीत
पर विपरीत खींच ना पाया
उसने देर तक देखा उसे
और कागज़ फाड़ दिया !
---------------------------------------
उसने खींची एक लकीर
क्यूंकि और लोग भी यही करते हैं
क्यूंकि और लोग भी यही करते हैं
----------------------------------------
अ से
5 comments:
बहुत सुंदर ।
सुंदर प्रस्तुति...
दिनांक 18/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
Bahut hi badhiyaan prastutikaran.... Dhanywaad!!
लकीरों में समाई जिन्दगी है
जो कभी न कभी खुद ने ही खिंची होगी...कायदा समझ कर
बहुत ही सुंदर प्रस्तुती :)
पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
बहुत बढ़िया
Post a Comment