Sep 1, 2014

पर इतनी नहीं आती ...



आ रही है 

कई सौ वर्षों से आ रही है 
लगातार आ रही है 
बार बार हर बार 
मौके दर मौके आ रही है 
बद बू आ रही है
घृणा आ रही है 
खीज आ रही है हमें 
अपने अस्त्रों से 
अपने शस्त्रों से
अपने वस्त्रों से
अपने नाम से
अपने काम से
अपने जाम से
ना नहीं आ रही है
जाम से नहीं आ रही है
जाम की बदबू उड़ चुकी है

हमें बद बू आ रही है
हमें घृणा आ रही है
अपनी सोच से
अपने संकोच से
मानसिक लोच से
सामाजिक नोच खरोंच से
ना नोच खरोंच से नहीं आ रही है
हम लटके हैं
लटके हैं टांग पकड़ कर
पकड़ कर एक दुसरे की
हम मनुष्य
मेंढक प्रजाति के
नहीं बढ़ने देंगे
नहीं चढ़ने देंगे
नहीं बसा सकते सुकून
नहीं पचा सकते तारीफ
अपनी मिट्टी की
अपनी मिट्टी की घुट्टी की
अपने प्रयासों की
अपनी सफलता के कयासों की
हमें धज्जियाँ उड़ानी है
परखच्चियाँ उड़ानी है
तार तार करनी है
अपनी विश्वसनीयता
अपनी अतुलनियता
अपने मूल्य
मूल्य हीन करने हैं
हमें लड़ना है
झगड़ना है
एक दुसरे को रगड़ना है
इसी गन्दगी में
कालिख मलना है
भरोसा छलना है
अपने ही बीच के
किसी नाम से जलना है
बेवजह मचलना है
मचलना है जुराबों के किसी इत्र के लिए
किसी त्रिविम चलचित्र के लिए

लक्ष्य की मटकी फोड़ते हैं
यूँ ही की चुटकी छोड़ते हैं
सौ लोगों का पिरामिड बनाकर
आपस में खुद को जोड़ते हैं
और फिर फोड़ते हैं
फोड़ते हैं सर
मटकी ठीकरा बना कर
ढहाते हैं पिरामिड
एक दुसरे की टांग खींचते हैं
कानों में जहर सींचते हैं
नहीं करने देते कोई काम
नहीं चलने देते कोई नाम
हमें बदबू आती है
बदबू आती है
अपनी बातों से
अपने जज्बातों से
अपनी किताबों से
अपने युवा प्रयासों से
भविष्य के सुखद कयासों से

हमें बदबू आती है
हमें घृणा आती है
पर इतनी भी नहीं आती !

अ से

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