Sep 16, 2014

प्रेममिति


(1)
तेरी ये त्रिविम दुनिया
क्यूँ हो जाती है चौरस
मेरी आँखों में आकर
कि फिर मन उसमें 
तलाशता है गहराई !
(2)
तेरे मेरे बीच
क्यों बनता है ये समकोण
कि तेरे स्पर्श से आती
तरंगों की ज्या
छूने लगती है अनंत
और मेरा दिल कभी
तुझ तक पहुँच नहीं पाता !
(3)
कितना वक़्त लेती है
आने में ये रोशनी
तेरे आँखों से
मेरी आँखों तक
और कितना कुछ
बीत जाता है इस दरम्यान !
(4)
रस रंग और उल्लास
ये उपस्थिति तेरी
तेरा ये चुम्बकीय प्रेरकत्व
बदल जाती है क्रियाविधि
कितनी कुछ इस ह्रदय की !
( त्रिविम - 3 D , चौरस - चपटी , ज्या -sine , समकोण -right angle , क्रियाविधि -functioning )

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