आदिम भूत से गति लेकर
उपजा एक स्वप्न
भविष्य में तैर जाता
और लौटता रहता फिर फिर
वर्तमान से गुज़रता हुआ !
मैं देखता हूँ
सृष्टि के बाहर से
समय में झूलते लोग
झाँकने लगता हूँ किसी एक को
अस्तित्व की थाह लेने
अनन्त आकाश से
गति करता हूँ
भीतर की ओर !
मैं देखता हूँ
सृष्टि के ऊपर से
बिखरी हुयी लकीरें
जमीन पर उकरी हुयी
चरित्र में उभरी हुयी
वो लकीरें रास्ते हैं
वो रास्ते हाथों में छपे हैं
समुद्र शास्त्र की लहरों और भंवर के बीच
सब कुछ लिखा जा चूका है
मेरा किरदार मेरे संवाद
मेरे रास्ते सब तय हैं
मैं बैठा हूँ किनारे
एक फकीर की तरह !
प्रेम
यहाँ अति रिक्तता है
गहरी साँसे भरता है
जिससे मिलता है बल
ठहर जाने का हवा में ही एक क्षण को
और अधिक गति से झूल सकने का
" विश्वास का झूला "
हवाओं से बातें करते
समय में रम जाने का !
कोई देखता हूँ दूर खड़ा
किसी अस्तित्व को
समय का झूला झूलते
और खो जाता है
उसे देखते देखते उसमें
और उसका अस्तित्व
करने लगता है दोलन उसके साथ
वो उतर नहीं पाता उस झूले से
बस झूलता रह जाता है !
मैं यहीं हूँ
लहराता हुआ
समय में आगे पीछे
रास्तों के इस जंगल में
किसी को तलाश करते
पता नहीं किस को
पर कोई है
जिसके लिए मैं आता हूँ
बार बार
समय के इस सफ़र में
खोता हूँ ,
तलाशता हूँ ,
पाता हूँ साथ चलता हूँ ,
फिर से खो देता हूँ ,
और फिर से आता हूँ इस समय में !
मैं बेराह मुसाफिर
अनंतता की भूल भुलैया में
रोक नहीं पाता स्वयं को
आने से जाने से
उस एक लकीर पर
उस एक सड़क पर
जहाँ से गुजरती है वो
भटक जाता हूँ फिर फिर
आता हूँ जाता हूँ
कि सारी लकीरों से परे
एक लकीर है मन की
और जिस पर उसने
अटका लिया है खुद को
और वो लकीर
कोई रास्ता नहीं
उसके हाथों का
महज़ स्पर्श है एक !
अ से