Nov 2, 2014

एक दृश्य सामने से आता है ...


एक दृश्य सामने से आता है
और पृष्ठ के अंधेरे में खो जाता है
एक आवाज़ बाएँ से आती है
और दायें कान से निकल जाती है
एक आशा ऊपर से जागती है 
निरस्त हो जमीन में समा जाती है
परिदृश्य गुंथा हुआ है महीन रेशों से
परिवर्तन होता है इतना सतत
कि उसकी गति कोई गति नहीं
कि उसकी प्रतीति आधार से जुड़ी है
और अपने में स्थिर दृष्टा
रहता है नियत गतिशील
विचारों में स्वप्न में और आशाओं में !

अ से 

Oct 30, 2014

फिर से किसी कतार में हैं


एक दौड़ से निकल आए
और एक दौड़ आसार में है
बीते जमाने से जीते नहीं कुछ
फिर से किसी कतार में हैं
एक और दौर गुज़र गया बेरंग
नया दौर आया नहीं अभी
इतने दौरों से बच कर भी हम
बस जीने की कगार में हैं
हम खड़े हैं बेचने को हुनर
कीमत हमारे इश्तेहार में है
जीवन जीने में है जाने
या वक़्त के बाजार में हैं ,
हम सफ़र कितने हैं यहाँ
फिर किसी के इन्तेजार में हैं ,
इश्क़ में संजीदा ले उसे कोई
दे दिये जाते इज़हार में हैं ।

अ से

Oct 18, 2014

तार पर बैठा एक बैचैन पंछी


तार पर बैठा एक बैचैन पंछी
पंजे चलाता है लगातार
कहीं जाना है उसे
याद नहीं आता कोई गंतव्य
किसी से मिलना है उसे
याद नहीं आता कोई चेहरा
उड़कर आता है कहीं से
साँस लेने दो पल
परों को आराम देने
दो चोंच भर आवाज़ लगाता है
उड़ते हुये पंछियों में किसी को
अपनी स्थिति का भान कराता है
एक लम्बी साँस भर , फड़फड़ाता है
और उड़ जाता है फिर से !
एक बच्चा देखता है उसे
परों की तरह हाथ हिलाता है
उसकी जैसी आवाज़ बनाता है
और देखते देखते
आँखों से ओझल हो जाता है पंछी !

अ से 

अजीब मनोस्थिती / भाव विहीनता / खालीपन


अजीब मनोस्थिती / भाव विहीनता / खालीपन
इस से ऊबकर वो सोचता है
क्या उसे खुश रहना चाहिए या दुखी
हालांकि दोनों की ही कोई वजह नहीं उसके पास
पर क्या ये वजह ना होना दुख की वजह नहीं 
पर क्या ये दोनों ना होना अपने आप में सुख नहीं !
वो खुश नहीं सामान्यतः पर वो खुश है इससे
कोई भी बात उसे कोई खास दुख नहीं देती
चेहरे पर चिंता के कुछ भावों को छोडकर
खुद के लिए उसे कोई खास फिक्र नहीं
उसके दुख उसकी उन अपेक्षाओं के दुख हैं जो दूसरों को उससे हैं
उसके दुख उसकी उन अपेक्षाओं के दुख है जो दूसरों के लिए उसे खुद से हैं
उसके दुख अपेक्षाओं के दुख हैं
उसके दुख अक्षमताओं के दुख हैं
पर इससे वो कोई खास दुखी नहीं !
वो घड़ी दो घड़ी में आकाश की ओर देख लेता है
वो पुष्टि कर लेता है समय समय पर संसार की व्यर्थता की
वो जानता है व्यर्थता सुख दुखों की
पर वो दुखी है
वो दुखी है अपनी व्यर्थता से
वो देखता है संसार को पल पल उसे कत्ल करते
उसकी सामर्थ्यता उसके किसी काम की नहीं
उसकी व्यर्थता सीधे उसके अस्तित्व से जुड़ चुकी है
संभव सब कुछ है
पर सब संभव निरर्थक हो चुका है
जबकि वर्षों का अभ्यास क्षणिक आवेगों को टिकने नहीं देता
वो दुखी है
कि वो इतना दुखी नहीं कि हँस नहीं सकता
वो दुखी है
कि उसको अपने दुखों से कोई समस्या नहीं पर फिर भी वो हँस नहीं सकता
वो दुखी है
कि उसे हंसने के लिए बहाना चाहिए
वो दुखी है
कि उसे तलाशना है बहाना खुश रहने का !
पर इस सबसे भी वो दुखी नहीं है
ना ही उसे खुश रहने कि कोई ख़्वाहिश
वो बस गुज़र जाने देना चाहता है इस व्यर्थता में से खुद को !
बिना कोई अर्थ तलाश किए !
 अ से

Oct 17, 2014

लहरें


जानता हूँ
तुम मुझसे कहोगी
गहरे उतरो और देखो
भीतर कितनी शांती है
पर ये लहरें जो ऊपर हैं 
और उनका अथाह शोर
क्या उसे अनदेखा किया जाये
या नकार दिया जाये साफ़ ही !
ये लहरें
जो बहा ले जाती हैं
प्यासे जीवों को
किनारों से उखाड़कर
अनंतता के भंवर में !
सामान्यतः
असर नहीं होता
किनारों पर लहरों की चोट का
पर किनारों पर खड़े
असावधान लोग
और उनके कदम
लड़खड़ा जाते हैं !
तुम शायद नहीं जानती
वजह नहीं चाहिए होती
डूब जाने के लिए कोई भी
डूब जाना
झपकना भर है पलकों का
कब झपकी थी
ये याद नहीं आता
याद आता है तो बस इतना
कि जब कभी जागते हो अंगड़ाई लेकर
तो खुद को उतरती लहरों के बीच पाते हो !!
अ से

in the mood for love theme !


जब साँसे ज़हन को रगड़ने लगे
वक़्त घुटने घिस कर चलने लगे
दम घुटे पर बेबसी पर रो ना पाए
उड़ती चिंगारियां आँखों में जलने लगे
धुनें खाली वेवजह की हो गयी हों
ख्वाहिशें हरारत अल सुबह से हो गयी हों
शब्द अंतस में वजन भर ठहरे रहते हों
मायने आँखों से टपकते संकोच कहते हो
कैद होते हैं इस तरह भी अपनी ही कहानी में
ताजी हवा देने लगे मन को कोफ़्त जवानी में
कभी बैठे कभी लेटे बैचेनियों में जागते सोते
शब्दों की खामोशियों को ताकते रहना होते खोते
तब जीना , तब भी जीना , तब भी झेलना
अपेक्षाएं खुश रहने की
क्या है आखिर ये खुश रहना ??

समय-झूला


देखता हूँ सृष्टि को डोलते हुए
आँखों के सामने
दोलन करता है संसार
घडी के पेंडुलम में
विस्मय पर सवार 
लहराता आगे पीछे
कि समय झूला है
कोई सड़क नहीं !
आदिम भूत से गति लेकर
उपजा एक स्वप्न
भविष्य में तैर जाता
और लौटता रहता फिर फिर
वर्तमान से गुज़रता हुआ !
मैं देखता हूँ
सृष्टि के बाहर से
समय में झूलते लोग
झाँकने लगता हूँ किसी एक को
अस्तित्व की थाह लेने
अनन्त आकाश से
गति करता हूँ
भीतर की ओर !
मैं देखता हूँ
सृष्टि के ऊपर से
बिखरी हुयी लकीरें
जमीन पर उकरी हुयी
चरित्र में उभरी हुयी
वो लकीरें रास्ते हैं
वो रास्ते हाथों में छपे हैं
समुद्र शास्त्र की लहरों और भंवर के बीच
सब कुछ लिखा जा चूका है
मेरा किरदार मेरे संवाद
मेरे रास्ते सब तय हैं
मैं बैठा हूँ किनारे
एक फकीर की तरह !
प्रेम
यहाँ अति रिक्तता है
गहरी साँसे भरता है
जिससे मिलता है बल
ठहर जाने का हवा में ही एक क्षण को
और अधिक गति से झूल सकने का
" विश्वास का झूला "
हवाओं से बातें करते
समय में रम जाने का !
कोई देखता हूँ दूर खड़ा
किसी अस्तित्व को
समय का झूला झूलते
और खो जाता है
उसे देखते देखते उसमें
और उसका अस्तित्व
करने लगता है दोलन उसके साथ
वो उतर नहीं पाता उस झूले से
बस झूलता रह जाता है !
मैं यहीं हूँ
लहराता हुआ
समय में आगे पीछे
रास्तों के इस जंगल में
किसी को तलाश करते
पता नहीं किस को
पर कोई है
जिसके लिए मैं आता हूँ
बार बार
समय के इस सफ़र में
खोता हूँ ,
तलाशता हूँ ,
पाता हूँ साथ चलता हूँ ,
फिर से खो देता हूँ ,
और फिर से आता हूँ इस समय में !
मैं बेराह मुसाफिर
अनंतता की भूल भुलैया में
रोक नहीं पाता स्वयं को
आने से जाने से
उस एक लकीर पर
उस एक सड़क पर
जहाँ से गुजरती है वो
भटक जाता हूँ फिर फिर
आता हूँ जाता हूँ
कि सारी लकीरों से परे
एक लकीर है मन की
और जिस पर उसने
अटका लिया है खुद को
और वो लकीर
कोई रास्ता नहीं
उसके हाथों का
महज़ स्पर्श है एक !
अ से

खिड़की


एक सपाट दीवार
जिस पर बना है एक चतुर्भुज
वो गौर से देखता है एक खिड़की
उठकर उसका दरवाजा खोलता है
भीतर आयी रौशनी में भर जाता है विस्मय से 
आजादी के ख़यालों में तैरने लगता है कक्ष की सीमिति में
वो अनुमान लगाता है दीवारों की मोटाई का
रौशनदानों में झांकता है सुरंग उम्मीद की
आखिर में तलाशता है मुख्य दरवाजा
और फिर से पुष्टि करता है
वो कैद है अब तक !
उसी की तरह कैद हैं और भी !
ये कानून जिंदा नहीं हो सकते !
ये पर्दे एक जीवन का बचाव नहीं कर सकते !
इन दरवाजों से कभी कोई बाहर नहीं आ सकता !
एक बहुमंजिला इमारत के
अति संवेदनशील मालों की
खिडकियों में खड़े हैं कुछ लोग
इस ओर जीवन है जिससे वो तंग आ चुके हैं !

अ से

सच्चा कलाकार


मिट्टी को मूर्ती करता है
पत्थर को तराशता है
एक सही भावना देता है
एक सही संभावना देता है
वो सच्चा कलाकार है 
जो जीवन को आकार देता है
दिशा और मार्ग प्रशस्त करता है !
जीवन अभिव्यक्ति है उसकी सुन्दरता जरूरी है !

भीड़


भीड़
कोई एक नहीं
कोई अलग नहीं !
भीड़ 
दौड़ में दौड़ नहीं
पंक्ति में जोड़ नहीं !
भीड़
चलने वालों को राह नहीं
ठहरने वालों को जगह नहीं !
भीड़
जमघट
जिन्दा मरघट !
अ से

आईना दिखाता है आत्म


आईना दिखाता है आत्म
उसमें दिखाई देता सब कुछ दृश्य की आत्मा है
कभी वो कहता है बीता हुआ कल
जो मुस्कुरा कर देखता है उसमें से
और कभी वो कुछ नहीं कहता 
आप मिलते हो उससे और चले जाते हो
अपनी ही बात सुनकर !
अ से

पानी की आवाज़


ध्वनि
एक ठोस लहर के साथ प्रकट होती है 

प्रकृति
गुनगुनाती है पानी की आवाज में

रस
कानों में घुलकर यादों की प्यास बुझाता है 

प्रवाह
लहर लहर होकर भीतर तक रम जाता है !

कह देने से ...



कह देने से शायद कम हो जाता

तुम्हारा सम्मान तुम्हारी अपनी दृष्टि में 
या शायद कम हो जाता वो आने वाला दुःख 
जो घड़े से सागर बन गया खाली आकाश में फ़ैल कर 
और कब ना जाने जिसकी जगह उग आया एक मरुस्थल !
पर कोई बोले भी क्या
जबकि उनकी हर क्रिया आपकी प्रतिक्रियाओं के पूर्वानुमान का परिणाम हो
वो प्रतिक्रियाएँ जिनकी संभावित झाड़ियों में अटके हों अनजान भय
अजीब दावे होते हैं किसी को जानने के भी !
अब जबकि मैं जान चुका हूँ अपना अकेलापन
अकेले ही खुद को समझा चुका हूँ
तो मुझे अफ़सोस नहीं वक़्त से हार जाने का
हाँ पर इस सब में वक़्त कहीं पीछे बहुत पीछे छूट चुका है !

प्रवाह प्रतिरोधक



प्रकृति के प्रवाह का प्रतिरोधक हूँ
मैं नालियों में जमा हुआ कचरा हूँ
मैं पोलीथीन हूँ जो रोज बनाई जाती है
जो खा जायेगी एक सदी मिट्टी हो जाने में
मैं हवा में घुलता हुआ जहर हूँ 
मैं पानी में जमा होता कालापन हूँ
संसार की गति में सबसे बड़ी रूकावट हूँ मैं !
मैं अहम् खा चुकी बुद्धि हूँ
मैं मदमस्त एक मन हूँ
मैं अँधा हो चुका पंछी हूँ एक
बहुत बड़ा बहुत बड़ा
इतना कि अपना आकार नहीं देख पाता !
मैं बहुत बड़ा जीव हूँ
जो ब्रह्माण्ड को चूरन में चाट जाता हूँ
जो ज्ञान को दो पन्नों में समेटकर
विज्ञान का तकिया लगाकर सो जाता हूँ !
मैं नींद में खोजता हूँ अपने ही सर पैर
बे सिर पैर होकर दिशायें तौलता हूँ
भाषा के दायें बायें की सापेक्षिकता में
संसार की निरपेक्षता को ख्वाब बोलता हूँ
अब मैं नकारता हूँ आईने में अपना ही अक्स
और किताबों में लिखी आदिमता को सच बोलता हूँ !
अ से

Oct 10, 2014

आत्मा की बेड़ी


गंध उत्पन्न होती है अवसाद से
स्वाद जीभ की निश्चेतना है
रंग आँखों का धुंधलका है ,
और स्पर्श नाड़ीयों का दोष
ममता ह्रदय की कमजोरी है 
और आशा आत्मा की बेड़ी  !
एहसास चेतना की बेहोशी है
और आवाजें सुनाई देती है बहरों को
सामान्यतया कान ही उन्ही के होते हैं ।

Oct 9, 2014

दर कदम


फिसलनियाँ रपट कर नीचे आ जाती हैं
सीढ़ियां क्यों ऊपर जाती हैं कदम दर कदम ?
पहिये बेख़बर आगे लुढ़कते जाते हैं
पैर क्यों धकेलते हैं जमीन कदम दर कदम ?
गुब्बारे गर्म फिर सीधे ऊपर उठ जाते हैं
पंछी क्यों उड़ते परों पर कदम दर कदम ?
प्राण किसी के फिर सीधे निकल जाते हैं
जीवन क्यों चलता साँसों पर कदम दर कदम ?

एकांतुक


एकांत वाला एकांत 

एकांत वाला साथ 
साथ वाला साथ 
साथ वाला एकांत
एकांत वाला एकांत

शब्द ...


शब्द
सबसे भारी वस्तु है
उसके भीतर प्रकाश नहीं पहुँचता
उसमें और सब कुछ तो हो सकता है
पर space नहीं हो सकता !
कितना बंधा हुआ है हर शब्द
जैसे कि शब्द ही संसार है !
अक्षर आपस में नहीं झगड़ते
उनकी खामोशी से रौशनी है
पर शब्द परिवार है
अर्थ की प्राप्ति जरूरी है वहां
अक्षर संन्यास है
शब्द लोक है विन्यास है
अक्षर यहाँ भी अनायास है
भाषा भी कोई हार है ना
वर्ण माला
फिर भी हमेशा गले लगती है किसी के
कुछ हार ऐसी ही होती हैं
आखिर शब्द बंधन है !

आइना मुस्कुराया


उसने एक आईने को आइना दिखाया 

आईने को देख आइना मुस्कुराया 
आईने ने आईने को आइने में देखा 
आईने ने आइने को आइना दिखाया 
उस अनंत सुरंग में कुछ अनंत द्वार थे 
हर एक के बाद वो फिर हर एक बार थे
आईने को आईने में अनंत नज़र आया
और आईने को देख कर आइना मुस्कुराया !

Oct 5, 2014

बड़ा धमाका


एक शब्द
बुदबुदे सा उपजा
अधर और ओष्ठ के बीच से 
उठा एक क्षणिक कम्पन
और हो गया ख़ामोश
इतना ही जीवन काल था उस का !
एक शब्द
उठता है और गिरता है कुछ कानों में
खामोश होने से पहले
कम्पन बनाये रखता है अपना अस्तित्व
उस शब्द की उम्र कुछ ज्यादा थी
कि वो कई कानों से हो कर गुज़रा !
एक शब्द
बादलों की गरज का
एक बच्चे के मन में
युद्ध के धमाकों का
एक बूढ़े ज़हन में
शेष है अब तक
जाने कब शांत होगा !
एक शब्द
वो कहते हैं पूरा संसार
एक बड़ा धमाका (big bang)
और उसकी आवाज़ से उपजा
सदियों पहले कभी
जो अब तक नहीं हो पाया खामोश
गूंजता है जाने किन कानों में
बचा हुआ है जाने किसके ज़ेहन में
अ से