Sep 16, 2014

क्या जरूरी है



क्या जरूरी है तलाशना
मानवाकृति में भावना
उस पहाड़ को देखो
वो साधना रत है
पृथ्वी को देखो 
वो नृत्य मग्न है
पानी को देखो
रमते हुए
अग्नि में तत्परता
और देखो आकाश को
सबसे विरक्त !
अ से

" पोस्त-मणि "



शाम हो चुकी थी , बड़ी घबराहट के उसने बाहर आने की हिम्मत जुटाई ,
सूंघते नथूने , सब दिशायें तरेरती हुयी आँखें , किटकिटाते हुए दाँत और अति सक्रिय मस्तिष्क ,
वो छोटा सा चूहा कुछ देर पहले की घटना से अभी तक डरा हुआ था ,
जब उसने काल से दौड़ लगाकर पृथ्वी में बनी इस नन्ही सी गुहा इस बिल में शरण ली थी ,
जब से उसने दौड़ना सीखा था वो इसी तरह से दौड़ रहा था खुली हवा उसके लिए कभी सुरक्षित नहीं रही ,
दिन में बिल्लियों और रात में उल्लुओं के रूप में काल हर जगह उसे पहरा देते नज़र आता था !
सब ओर सुरक्षित वातावरण पाकर वो बाहर निकला और खाने कुतरने के लिए कुछ तलाश करने लगा ,
अभी वो कुछ दूर ही पहुंचा था कि उसे अपनी ओर दौडती हुयी दो आँखें नज़र आई ,
और वो सब कुछ भूल कर फिर से भागने लगा और भागते भागते एक कुटिया में घुस गया ,
जहाँ एक ऋषि अपने नित्य पाठ में व्यस्त थे , वो दौड़ कर उनकी ओट में दुबक गया !
ऋषि अपने कार्य में उत्पन्न व्यवधान से पहले तो क्रोधित हुए ,
पर फिर उस नन्हे से जीव को काँपता हुआ देखकर उन्होंने पूछा कि वो इतना भयभीत क्यूँ है ,
चूहा अपने पिछले दो पंजों पर खड़ा होकर हाथ जोड़कर बोला ,
" हे महात्मन मुझे मृत्यु से बड़ा भय लगता है और ये बिल्ली हमेशा ही मेरी ताक में बैठी रहती है ,
काश अगर मैं बिल्ली होता तो मैं निर्भय होकर अपना जीवन यापन कर पाता ! "
ऋषि बोले , " काल सभी के लिए मुँह खोले खड़ा है मृत्यू हर किसी को व्यापती है
बस सभी के लिए वो अलग अलग शक्ल लेकर आती है बिल्ली बनकर तुम्हें क्या फायदा होगा ! "
पर वो डरा हुआ चूहा सिर्फ इतना कह पाया की , हे महात्मन ! अगर संभव है तो आप इतनी कृपा कर दीजिये !
उस नन्ही सी बुद्धि को और अधिक ना समझाकर शरण में आये हुए की रक्षा का धर्म सोचकर उन्होंने कहा
कि हर वक़्त तो मैं तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकता पर अगर बिल्ली बनने से तुम अपनी रक्षा में समर्थ हो , तो तथा अस्तु !
और अभिमंत्रित जल के कुछ छींटे पड़ते ही वो चूहा बिल्ली बन ख़ुशी ख़ुशी कुटिया से बाहर चला गया !
बिल्ली बनने के पश्चात् उसका स्वभाव उसकी क्रियाशीलता और उसकी इच्छाएं बदल चुकी थी ,
वो अपने को ज्यादा सजग , फुर्तीला और चतुर महसूस करने लगा और वहीँ कुटिया के आसपास छोटे मोटे जीवों को खाकर रहने लगा ,
कुछ दिन सुकून से गुजारने के बाद एक दिन उसने अपनी और गुर्राते हुए एक जीव और दो गुस्सायी हुयी आँखों को देखा ,
नज़रें मिलते ही वो कुत्ता उसकी और लपका और उसने अनायास ही खुद को पूरी जान से दौड़ता हुआ पाया ,
सामने फिर वही कुटिया पाकर उसने कुटिया में शरण ली और ऋषि से कहा की है भगवन् मुझे आप कुत्ता बना दें ,
बिल्ली होकर भी मैं काल के इस चेहरे से अत्यंत भयभीत हूँ !
मृत्यु को सामने पाकर आखिर किस सामान्य जीव की बुद्धि काम करती है ऐसा सोचकर ऋषि ने अबकी बार उसे ज्यादा कुछ ना समझाकर उसे कुत्ता बना दिया और वो वहां से बहुत खुश होकर चला गया !
एकांत में बैठकर जबकि आप समस्याओं के अधीन ना हों काफी दूर की दृष्टि साध सकते हो ,
पूरे जीवन काल को एक क्षण में लाँघकर उसके नतीजे पर विचार कर सकते हो ,
सुनी हुयी कहानियों और अनुभव के आधार पर अपने जीवन को दिशा देने का उपक्रम कर सकते हो ,
पर पल पल को जीते हुए जीवन के बदलते समीकरणों के साथ गति करना ,
संकल्पों और नियमों की सरल रेखा पर तो सामान्यतः असंभव ही है !
तब आप सिर्फ सामने आयी हुयी विभीषिकाओं को टालते हुए , पल दर पल अपने को समस्याओं से दूर रखते हुए जीते हो ,
और किसी भी तरह की मृत्यु को टालते रहना ही जीवन का उपक्रम बना लेते हो !
आगे उस कुत्ते का जीवन जंगली सूअर और फिर क्रमशः बन्दर भालू और हाथी द्वारा बाधित हुआ ,
और हर बार वो ऋषि से प्रार्थना कर अपने को अगले रूप में बदलता रहा ,
ताकि मृत्यु का उसका भय कम हो और वो चैन से जीवन व्यतीत कर सके !
हाथी बनने के बाद वो खुद को बहुत भारयुक्त महसूस करने लगा ,
समय उसको बढ़ा हुआ महसूस होता और वो काफी शान्ति भी अनुभव करता था ,
कभी कभी वो मस्ती में आकर झूमता और वन में दौड़ता भी था ,
पर बाघ और सिंह जैसे हिंस्र पशुओं से अब भी उसे भय रहता ,
और फिर ऋषि की सहायता से वो खुद भी एक हिंसक शेर में बदल गया ,
कुछ समय उसने बिना किसी की परवाह अपने जैसे हिंसक स्वभाव के जीवों के साथ व्यतीत किया !
एक दिन उस वन से एक पालकी गुजरी , कुछ लोग उसकी सुरक्षा के लिए साथ चल रहे थे ,
और तभी एक शेर की दहाड़ सुनाई दी , एक स्त्री ने पालकी से बाहर झाँक कर कुछ इशारा किया ,
कुछ लोग अपने भाले और तीरों के साथ उस दिशा में गए जहाँ से वो आवाज़ आई थी ,
और उस शेर को तीरों और बरछों से भेद कर पकड़ कर ले आये ,
तब इस दृश्य को देखकर उस सिंह को भी अपनी मृत्यु नज़र आने लगी और उसने ऋषि के पास जाकर कहा ,
" हे महान ! आप मुझे एक स्त्री में बदल दें उसके एक इशारे पर इतना शक्तिशाली शेर भी मार दिया गया "
ऋषि को भी इस हिंस्र पशु से बेहतर उसका मनुष्य होना लगा और उसने उसे एक सुन्दर कन्या में बदल दिया ,
अपनी विद्या के प्रभाव से उसकी उत्पत्ति के कारण वो उसका धर्मपिता हुआ ,
और उसने मंत्रोच्चार के साथ उसका नामकरण किया " पोस्तमणि " !
पोस्तमणि इस रूप में आने के समय से ही एक सुन्दर तरुणी थी ,
मनुष्य बनने तक के सफ़र में वो अपना बहुत सा भय पीछे छोड़ आई थी और उन्मुक्त होकर हर पल को जीना चाहती थी ,
जीव जंतुओं के ह्रदय की उसको भली प्रकार थाह थी और वो उस वन में मुक्त स्वच्छंद विचरण करने लगी ,
जल्द ही उसके रूप लावण्य और गुणों की खबर उस वन से बाहर पहुँच गयी ,
कानों से मुँह तक आने के रास्ते में किसी बात के साथ कुछ और विशेषण जुड़ जाना सामान्य ही है
जो लोगों ने अपनी घ्राण शक्ति से पैदा किये होते हैं ,
और जितने कानों और मुँह वो बात गुज़र कर जाती है
उतने ही अलग अलग रंग और महक की कहानियाँ उसके साथ जुड़ जाती हैं !
उस कन्या की मोहक तस्वीर राजा तक इतनी अलग अलग जबानों से पहुँच चुकी थी
कि राजा अकहे ही उसके मोहपाश में पड़ चुका था ,
कुछ ही समय पश्चात् उसने उस वन की ओर रुख किया
और वहाँ पोस्तमणि को देखकर अपने ह्रदय की सभी उत्सुकताओं की पुष्टि कर ली ,
ऐसी चंचलता जो आँखों में समा नहीं पाए ,
ऐसा उन्मुक्त रूप जो ह्रदय को भारशून्य कर दे ,
ऐसे नर्म झोंके जिनमें होश संभाले ना संभले ,
और ऐसा आनंद जो बारिश में नाचता मयूर ही जानता हो ,
वो एकटक उसे देखता रहा अपनी स्वप्न मुग्धता तक !
होश सँभालने पर उसको नज़रों से ओझल पाकर राजा को अजीब सी बैचैनी खाने लगी ,
वो उसको तलाशता हुआ पास ही ऋषि की कुटिया तक पहुंचा ,
और उनको सब हाल बताकर उसने पोस्तमणि का हाथ मांग लिया ,
ऋषि के पास कन्यादान लेकर अपने पितृ धर्म से उऋण होने का मौका था ,
उन्होंने बस इतना कहा की शुरू से ये वन ही पोस्तमणि का घर रहा है तो नगरीय तौर तरीको में ये उतना सहज नहीं रह पायेगी
अतः इसका ख़ास ख़याल रखना और इसको किसी भी ईर्ष्या और भय से मुक्त रखना ,
ऐसा कहकर कुछ जल छिड़ककर पोस्तमणि का हाथ उस राजा के हाथ में देकर उन दोनों को आशीर्वचनों और स्वास्थ्य संपत्ति की मंगल कामनाओं के साथ विदा किया !
पोस्त मणि के भाग्य में स्थिरता नहीं थी , उसने इतने से जीवन में इतने जीवन और तरह तरह के भय देख लिए थे ,
राजा का उससे विशेष लगाव था और राजमहल में अधिकतर समय राजा उसी की साथ व्यतीत करने लगा ,
उसको अपने राजकाज और सामाजिकता में रूचि नहीं रह गयी थी , वो एक कमलिनी के प्रेम में डूबा हुआ वो भंवरा हो गया था जिसे अपनी स्वतंत्रता और जीवन की भी सुध ना रहे जिसके रात दिन उसी पुष्प मद में कैद होकर रह गए हों !
इस दौरान मंत्री राजा को कामकाज के प्रति आश्वस्त रखते रहे ताकि सत्ता से उसका ध्यान हटा रहे ,
और बाकी रानियाँ और राजा की प्रिय रही दासियाँ इस वनचरी से ईर्ष्या रखने लगी ,
एक दिन मौका पाकर उन्होंने पोस्तमणि के खाने में विष मिला दिया जबकि वो वन की ओर जाने वाली थी ,
विष पचा ना पाने के कारण पोस्तमणि की सुध जाने लगी और वो अंधी होकर एक कुँवे में गिरकर मृत्यु को प्राप्त हो गयी !
दिनभर में पोस्त मणि के वियोग में राजा के प्राण सूखने लगे , उसकी मृत्यु की खबर उसके गले से नीचे नहीं उतर रही थी ,
जिस जीवंत मुस्कान से मुरझाये हुए पौधे खिल उठते थे जिस के चेहरे से हमेशा पूर्णिमा की चांदनी छिटकती थी ,
जिस की खिलखिलाहट से भोर हुयी समझ पंछी चहचहाने लगते थे वो भला कैसे काल की अमावस के अँधेरे में खो सकती है !
कुछ और उपाय ना पाकर राजा ऋषि के पास जाता है और उन्हें सब बात बताकर कहता है
कि पोस्त मणि के बिना उसका जीवन अधूरा है उसके प्राण अधर में हैं और कुछ भी उपाय करके उसे जीवित कर दो ,
राजा को सांत्वना देकर ऋषि उस कुंवे की ओर जाते हैं और वहाँ पोस्तमणि की देह को पास की मिट्टी में दफ़न करवाकर
अभिमंत्रित जल छिड़क कर कहते हैं की अब यहाँ एक पौधा जन्म लेगा जिसमें सुन्दर फूल लगेंगे
और जिसका फल पोस्तमणि के जीवन रस को अपने में संचित करेगा ,
जीव जंतु इस रस के लालच में इसे खायेंगे और इस तरह इसके बीजों का परिवहन और अंकुरण होगा ,
और इस तरह पोस्टमणि उस पौधे की शक्ल में हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गयी !
आदतें सुबह की चाय की तरह होती है जो ना मिलने पर इंसान वो पाना तो चाहता है
पर उसके लिए किसी का क़त्ल या चोरी नहीं करता ना ही वो बैचैन होकर घूमता है
वो बस उस क्रिया की चाहत रखता है जो उसे माहौल में ढलने का थोडा वक़्त दे थोडा सुकून पहुंचाए ,
पर , निर्भरता अफीम की लत की तरह होती है जो ना मिलने पर क्षय का कारण बन जाती है
जिसके लिए उसका लती बैचैन हो जाता है हिंसक हो उठता है
जो उसे पाने के लिए चोरी और हत्या करने पर भी उतारू हो जाता है !
कहते हैं वही पौधा अफीम का पौधा है जिसके रस में पोस्तमणि के जीवन की कहानी संचित है
और जिसके सेवन से मनुष्य को अपने स्वभाव में कुछ वैसे ही परिवर्तन महसूस होते हैं
जैसे उस चूहे को क्रमशः बिल्ली कुत्ते ... सिंह बनकर हुए थे ,
और जिस पर इंसान उसी तरह निर्भर हो जाता है जैसे कि वो राजा हो गया था !
-------------------------------------------------------------------------------------- ( समाप्त ) 

Sep 3, 2014

वृक्ष

और फिर जैसे सिलने के बाद
दर्जी उलट देता है कमीज को अन्दर से बाहर
कुछ वैसे ही ईश्वर ने पलट दिया सृष्टि को !
अब पहाड़ 
छुपाये बैठे हैं
सबसे गहरी बात अपने शिखरों पर
सागर लबालब भरे हैं भावनाओं से
और पृथ्वी बोध की सबसे शुद्ध प्रतिमूर्ति है !
पौधे प्रकृति की कविताएँ हैं
जो बहुत लम्बी ना जाकर
सीधे पहुँचती है उद्देश्य तक
और अपने पराग छोड़
महका देती हैं ह्रदय को !
और वृक्ष
वृक्ष वो सच्ची कहानियाँ है
जो सदियों से चली आ रही हैं ,
कहानियाँ
जीवंत एहसास की
सुदृढ़ विश्वास की
उस मुक्त प्रकाश की
जिसको देखता है वृक्ष हर पल
उस खुले आकाश की
जिसमें सब ओर फैलती है शाखाएँ संसार की
उस स्वच्छंद हवा की
जिसमें साँस लेते हैं हज़ारों पत्ते हर समय
उस छाँव की
जिसमें सुरक्षित है जीवन
उस खामोश उपस्थिति की
जो बचाए रखती है नमी को किसी भी बंजर प्यास से !

वृक्ष वो सच्चा उपन्यास है
जिसके पन्नों में ख़ुशी ख़ुशी गुज़र जाता है बचपन !
अ से

Sep 1, 2014

कला

(1)

उसने दिए मुझे 
कलम और कूँची 
और अपेक्षा की 
सृजन की ,
जैसा प्रकृति करती है 
जीवन और रस की भाषा में !

(2)

मुझे मिले कुछ शब्द
और मेरे हर ख्वाब हर भाव
हर वेदना को एक रंग
जिनसे रंगता रहा मैं अपने शब्दों को
और खाली पड़े केनवास पर
साकार होता रहा एक जीवंत चित्र !

(3)

बारिश में नहाकर
जब जमीन बुदबुदायी
तो उसके शब्दों से
नर्म दूब खिल आयी
जादू है किसकी आवाज़
जो भरती है जीवन इन चित्रों में !

(4)

अक्षरों से शब्द शब्दों से वाक्य
वाक्यों से सार
कौन है जो जोड़ता है
कोशिका संसार
जीवन से जीवन
जहान से जहान
दिल से दिल जोड़ता है
एक कलाकार महान !

अ से

पर इतनी नहीं आती ...



आ रही है 

कई सौ वर्षों से आ रही है 
लगातार आ रही है 
बार बार हर बार 
मौके दर मौके आ रही है 
बद बू आ रही है
घृणा आ रही है 
खीज आ रही है हमें 
अपने अस्त्रों से 
अपने शस्त्रों से
अपने वस्त्रों से
अपने नाम से
अपने काम से
अपने जाम से
ना नहीं आ रही है
जाम से नहीं आ रही है
जाम की बदबू उड़ चुकी है

हमें बद बू आ रही है
हमें घृणा आ रही है
अपनी सोच से
अपने संकोच से
मानसिक लोच से
सामाजिक नोच खरोंच से
ना नोच खरोंच से नहीं आ रही है
हम लटके हैं
लटके हैं टांग पकड़ कर
पकड़ कर एक दुसरे की
हम मनुष्य
मेंढक प्रजाति के
नहीं बढ़ने देंगे
नहीं चढ़ने देंगे
नहीं बसा सकते सुकून
नहीं पचा सकते तारीफ
अपनी मिट्टी की
अपनी मिट्टी की घुट्टी की
अपने प्रयासों की
अपनी सफलता के कयासों की
हमें धज्जियाँ उड़ानी है
परखच्चियाँ उड़ानी है
तार तार करनी है
अपनी विश्वसनीयता
अपनी अतुलनियता
अपने मूल्य
मूल्य हीन करने हैं
हमें लड़ना है
झगड़ना है
एक दुसरे को रगड़ना है
इसी गन्दगी में
कालिख मलना है
भरोसा छलना है
अपने ही बीच के
किसी नाम से जलना है
बेवजह मचलना है
मचलना है जुराबों के किसी इत्र के लिए
किसी त्रिविम चलचित्र के लिए

लक्ष्य की मटकी फोड़ते हैं
यूँ ही की चुटकी छोड़ते हैं
सौ लोगों का पिरामिड बनाकर
आपस में खुद को जोड़ते हैं
और फिर फोड़ते हैं
फोड़ते हैं सर
मटकी ठीकरा बना कर
ढहाते हैं पिरामिड
एक दुसरे की टांग खींचते हैं
कानों में जहर सींचते हैं
नहीं करने देते कोई काम
नहीं चलने देते कोई नाम
हमें बदबू आती है
बदबू आती है
अपनी बातों से
अपने जज्बातों से
अपनी किताबों से
अपने युवा प्रयासों से
भविष्य के सुखद कयासों से

हमें बदबू आती है
हमें घृणा आती है
पर इतनी भी नहीं आती !

अ से

Aug 28, 2014

अम्लान


1 .
नीले चादर का झीना झिलमिलाता सा तम्बू
एक कोने में जलते हुए चाँद की रोशनी से लबालब
और दो ठहरी हुयी साँसों के दरम्यान रखा हुआ " अम्लान "
साँसों की नमी से सींचा था जिसे हमने ... पूरी रात
ना तुम सोयी थी ना मैं ... सुबह तक कान रखकर सुनी थी मैंने तुम्हारी साँसें शोर करते ... पहली दफा
और इसमें सहेज कर रख दी थी हमनें एक ख्वाहिश ... प्राणों की

हमें बचाना था इसे मुरझाने से
इसे बचाना था हमें मुरझाने से
हमें बचाना था हमें मुरझाने से
हम सच छुपा सकते हैं खुद से
हम झूठ बोल सकते हैं एक दुसरे से
पर अम्लान जानता है
उन साँसों में कितनी नमी बाकी है अब तक !!

( for my endless poem ... for my eternal wish )

2 .
खिड़की से बहकर आती चाँद की रोशनी
धुल कर खिल आता अँधेरे में उसका चेहरा
श्वेत-स्याम दृश्य में उभर आते मन के रंग
दो हाथ उँगलियाँ बांधे निहारते एकटक
एक दुसरे की आँखों में सींचते " अम्लान "
सम्मोहन का लावण्य .... आपे का खोना
प्रेम की कस्तूरी ... मदहोश होना
स्पर्श के आश्वासन ... प्रेम मय स्मृतियाँ
रास उल्लास .... आनंदमय विस्मृतियाँ
अब जब तुम मिलती हो मुझसे
अब जब मैं मिलता हूँ तुमसे
हम झांकते हैं एक दुसरे की आँखों में
हमारी आँखें झांकती है हमारी आत्मा में
जबान खामोश हो या कहती हो कहानियाँ
शरीर स्थिर हो या छुपाता हो रवानियाँ
पर अम्लान जानता है
इन आँखों में कितनी नमी बाकी है अब तक !!

( सबकुछ ... थोडा थोड़ा कुछ नहीं )


अ से






सबसे बड़ी संख्या है एक


मैंने बोयी एक बात पृथ्वी के मन में
सींचता रहा उसे अतीत की तरलता से
और फूट पड़ी ख़ुशी पृथ्वी की
नन्हे पौधे की शक्ल में !

गाय चखती है शान्ति जमीन पर
वक़्त की एकत्रित खामोशी चरती है
और फुर्सत मैं बैठकर
कर लेती है यादों की जुगाली !

आइना देखता है सबकुछ
अदृश्य रहते हुए
पर कुछ नहीं समझता
लौटा देता है रोशनी की एक बारीक किरण को भी
उसके पास संचयन के लिए कोई कोष नहीं है !

सदियों से समाधिस्थ हैं एक योगराज
असीम शांति लिए विराजमान
अचल योगियों के साथ
हिम आच्छादित पथरायी हुयी काया
जिसकी जटाओं में खेलती हुयी गंगा
चोटियों से निकलकर बहती है मैदानों में !

सबसे बड़ी संख्या है ' एक '
एक विशाल आकार की संख्या
एक माँ एक पिता एक पृथ्वी एक सूर्य एक अनंत व्योम
टूटने पर संख्याएँ हो जाती हैं छोटी
और टुकड़े टुकड़े होकर बिखर जाती हैं
धूल की तरह जमीन पर तारों की तरह आकाश में !

शरीर तीसरी आग है समझ दूसरी
और ह्रदय हर वक़्त प्रज्ज्वलित रहता है
तीनों आँच में जीवन तपता है हर वक़्त
और यही आग हमें जकड़े रहती है ।

अ से 

Aug 25, 2014

लैलाssssssss


हवा का एक खाली सा झोंका सरसराया और एक आवाज़ आयी " लैलाssssssss " !


रेगिस्तानों में सदियों से दबी पड़ी है कई बंज़र दास्तानों की कब्रें ,
अरब की उन जमीनों को छूकर चलने वाली हवाएँ सुनाती हैं वो सज़ायें ,
जो मिली थी उन मजनूनों को ( मजनूं - madman - पागल ) ,
जो चले थे इश्क़ की राहों पर अनायास ही ,
खुदाई फरमानों से बेफिक्र आवामी अरमानों के खिलाफ !

बसरा के सरदार की बेटी मुस्कुरा रही थी ,
उसकी आँखों में ख़ुशी  की ऐसी चमक थी जैसे क्षितिज़ पर रोशनी की कोई लकीर हो ,
उन्हें सबक देने वाले वाले मौलवी की आँखें गुस्से से लाल थी और चेहरा तना हुआ ,
उन्होंने फिर दोहराया " कहो अल्लाह " ,
और अबकी बार के उनके ह बोलने में कोई रूहानी सुकून ना होकर एक खरखराता गला था ,
कैस मुस्कुराया , उसके चेहरे पर अभी भी निश्चिंतता थी और मन लहरों से भरा हुआ ,
मुंह से बोल निकले " लैला " !
मौलवी का सब्र टूट गया एक तो पढ़ने लिखने की उम्र में ये जलालत ऊपर से नाफ़रमानी और वो भी अल्लाह जैसे लफ्ज़ पर ,
यवन के सरदार के बेटे कैस को हाथ आगे करने के फरमान के साथ एक छड़ी ऊपर उठी ,
और हथेलियों पर उसके पड़ने की आवाज़ के साथ एक और आवाज़ आयी " लैला "
हर एक छड़ी के साथ लैला की हाथों से खून बहने लगा
शायद खुदको चोट पहुंचा कर उसने भी इस तकलीफ को अपना लिया था !

यवन और बसरा के सरदारों की आपस की पुरानी खींचतान थी ,
मौलवियों ने उन तक खबर पहुंचवाई थी की शहजादे कुछ और ही पाठ पढ़ रहे हैं ,
दोनों सरदारों को अपने लोगों और अपने कबीले में अपने नाम की परवाह थी ,
एक दुसरे पर लगाये आरोपों के साथ ही उन्होंने अपने बच्चों को भी नज़र करना सही समझा
कैस को लैला से अलग कर दिया गया और बचपन की इस लम्बी दोस्ती का एक दौर गुज़र गया !

वक़्त गुज़र जाते हैं पर उम्मीदें कहाँ मरती हैं
कितनी ही परछाइयाँ वो गुज़रे वक़्त की साथ लेकर चलती हैं ,
किसी बीज की तरह उडती हुयी  ठहरती हुयी  वो सही वक़्त के इंतेज़ार में रहती हैं
और अनुकूल जमी और नमी पाकर फूट पड़ती हैं !

कैस जवान हो चुका था तलवार और कलम दोनों से
और खुद ही के तय किये गए एक वक़्त पर उसने बसरा के सरदार तक लैला का हाथ मांगने का पैगाम पहुँचवाया ,
उसे शायद हमेशा से इंतेज़ार रहा था उस दिन का जब वो बसरा से गुज़रे और उसकी तलाश को आँखें मिले ,
पर ख़त का जवाब उसके बजाय उसके पिता तक पहुंचाया गया
जिसमें इस सम्बन्ध की मनाही के साथ उसे लैला से ना मिलने देने का फरमान भी था ,
पर हवाओं के बहाव सागर की लहरों और वक़्त के क़दमों पर कौन से फरमान कभी लगें हैं !

वक़्त गुज़रते जाते हैं और अतीत पर स्मृतियों की परतें चढ़ती जाती हैं
पर उन सूखी हुयी परतों के नीचे भी बहुत कुछ दबा रहता है जो हमेशा हरा रहता है !

कैस का बेपरवाह मिज़ाज़ लैला की आँखों में उसके सपनो में
और लैला के चेहरे का नूर कैस के दिल में उसकी शायरी में अब तक हरा था ,
दोनों का मिलना दो सदियों के जागते ख्वाबों का एक दुसरे में घुलना था
ऐसे ख्वाब जिनके किरदार एक दुसरे में बेख़ौफ़ आवाजाही करते थे !

कैस बिना किसी को बताये निकल पड़ा और लैला के इलाके तक पहुँच कर उसकी तलाश करने लगा ,
और वो वक़्त भी चल आया जो उसके लिए अब तक बैचैनी का सबब रहा था ,
लैला के चेहरे का प्यार भरा सुकून फिर से देखने का ,
पूरा अतीत आँखों में आकर ठहर गया और आँखें एक दुसरे को खामोशी से भरने लगी
पार्श्व में कोई दृश्य नहीं था और संसार एक मीठी शान्ति में तब्दील हो गया !

कितने ही कार्य हैं जिनका कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होता कितने ही सृजन हैं जो बस आनंद की पूर्णा से प्रेरित हैं
उद्देश्य के भीतर भी उद्देश्य हैं और कारणों की सुरंग भी अंतहीन है
पर जिसने अपने अस्तित्व का जो कारण मान लिया जो जिस उद्देश्य पर ठहर गया
उसी के साथ उसकी पूर्णता और उसी से उसके आनंद की प्रेरणा जुड़ी है !

दोनों संपन्न घरानों में उत्पन्न दुनिया से बेफिक्र ,
दोनों को बस एक ही खौफ दोनों की बस एक ही साध ,
आज उनके लिए वक़्त थम चुका था और हवाओं से ऊपर उनकी मौजें बह रही थी
पर बेपरवाह उडती चिड़ियाओं की परछाई का अँधेरा जमीन पर किसी की नज़रों में आ गिरा ,
लैला के भाई को ये मालूम हो चुका था और पुराने समझौते के बावजूद यूँ कैस का लैला से मिलना उसको मंजूर ना हुआ ,
उसकी तलवार कैस को ललकारने लगी नियम कायदे और अल्लाह के हवाले दिए जाने लगे ,
जो किस्सा एक के लिए जन्नती स्याही था वही किस्सा दुसरे के लिए दोज़ख का फरमान ,
किसी की चाहत किसी के लिए जुर्रत थी किसी का इश्क किसी के लिये लानत की बात ,
जब ललकार का कोई असर उनके इरादों पर ना हुआ तो तलवार हरकत में आ गई ,
पर ना लैला हटने को तैयार थी ना कैस को किसी का डर ,
गुस्से में कांपते हाथों के हमले पर सधे संयत हाथों का बचाव भारी पड़ गया ,
लैला का भाई अपनी ही तलवार से कैस के हाथों क़त्ल हो गया !

कुछ खबरें पंख लेकर ही पैदा होती हैं और पैदा होते ही अपने गंतव्य की ओर उड़ान भर लेती हैं ,
भारी भीड़ के बीच कैस को पकड़ लिया गया
और पंचायत का जो भी पर्याय उस दौर में हुआ करता था वहाँ तक मामला पहुँचाया गया ,
एक तो पुराने हुकुम की नाफ़रमानी दूसरा बेगुनाह का क़त्ल
और सब से ऊपर आसमानों के खिलाफ जाकर इश्क़ करने की जुर्रत ,
यही वो वाकिया था जिसको उदाहरण बनाया जा सकता था
एक मजनून् आज अल्लाह के कायदों को चुनौती दे रहा था ,
मौलवियों और बसरा के सरदार की चाहत पर
उसको बीच चौराहे मौत ना आने तक पत्थरों से मारे जाने की सज़ा तय हुयी !

उठी हुयी तलवार और तमंचों में तो फिर भी ईश्वर होता है
पर फेंके जाने वाले पत्थरों का कोई दिल ईमान नहीं होता

दूरियों के अँधेरे घिर चुके थे और हमेशा के लिए उन पर रात की मोहर लगने वाली थी ,
उम्मीद के आखिरी एक रास्ते पर लैला ने अपने पिता को राज़ी किया ,
जो चाहते थे की लैला की शादी वहाँ के राजकुमार इब्बन से करवायी जाए ,
कि अगर कैस को छोड़ दिया जाता है तो वो उनकी मर्ज़ी से इब्बन से शादी करने को तैयार है ,
कैस को लैला से फिर ना मिलने की चेतावनी पर उस शहर से बाहर छोड़ दिया गया !

लैला की शादी की ख़बर कैस को सुदूर रेगिस्तानों में ले गयी ,
वो वहाँ भटकता फिरता और लोग उसे मजनूं कहते ,
उसके शरीर पर जख्म थे कपडे फटे हुए ,
सूरज ढलने से सूरज ढलने तक वो रेगिस्तानों की धूल फांकता रहता ,
कभी वो सूखी लकड़ी से रेत पर कुछ लिखता नज़र आता तो कभी पत्थर से पत्थर पर कुछ कुरेदते ,
उसके घर वाले उसके वापस आने की हर उम्मीद उसे समझाने की हार में गँवा चुके थे ,
कोई जब कभी उन रेगिस्तानों से गुज़रता तो वहाँ खाने का कुछ सामान रख आता
और उसकी खबर के नाम पर कोई किस्सा ले आता !

" मैं फिरता हूँ इन रेगिस्तानों में
 उसकी यादों के साथ
 मेरे लिए उनके शहर बंजर हैं
 यहाँ उसका चेहरा साफ़ नज़र आता है "

जो कोई अपनी आत्मा में जितना गहरे तक जुड़ जाता है उसको बाहर संसार उतना ही बेमतलब नज़र आने लगता है ,
आपका मन जिस एक चीज पर पूरी तरह केन्द्रित हो जाए उसमें आपके प्राण बसने लगते हैं ,
जिस एक साध को लेकर आप जीने लगते हो बस उसी के संग आप साँस लेने लगते हो ,
एक लहर दूसरी लहर के संग रमने का आनंद लेने लगे तो उनके लिए बाकी संसार का प्रलय हो चुकता है ,
पर जब वो एक साध एक चीज एक ख्वाब ही आधार छोड़ देता है तो फिर कहीं कुछ नहीं बचता !

इस दौरान लैला इब्बन से शादी के बाद उसके महल चली गयी ,
वो लैला को मरा बताती और खुद को बस एक जिस्म कहती ,
कैस में उसके प्राण बसते थे जाने कोई जिद थी या कोई पागलपन पर इस बात ने इब्बन को खीज से भर दिया ,
अपने कुछ सैनिकों के साथ इब्बन उन रेगिस्तानों में पहुंचा जहाँ उसका गुस्सा अब तक साँस ले रहा था ,
पर एक विक्षिप्त से इंसान को बुरी हालत में देख कर उसे वहीँ मरने देना बेहतर समझ वो दूर से ही लौट आया ,
इधर लैला जो काफी बीमार रहने लगी थी तक जब ये खबर पहुँची की इब्बन कैस को ख़त्म करने रेगिस्तान की तरफ गए हैं ,
तो उसने दम तोड़ दिया , शायद उम्मीद के दरवाजे से कोई बारीक रोशनी झांकती थी मन में
जिसने अब तक साँसों की नाज़ुक डोर को हाथों में संभाल रखा था ,
और जिसके बंद होते ही अब वहाँ कुछ भी शेष नहीं था !

" उस इंसान की बंदगी का नाम था लैला
  जिसने अपने जिस्म अपनी साँसों की भी पनाह ना चाही "

उन्हीं रेगिस्तानों में लैला की कब्र बनायी गयी जिनमें वो मजनूं मारा फिरता था ,
आखिरी के दिनों में उस मजनूं को उसी मकबरे में उसकी कब्र के आस पास ही देखा गया ,
बताया जाता है उसने अपनी आखिरी कुछ कवितायें उसी मकबरे में एक पत्थर पर उकेरी थी ,

" मैं इन दीवारों के पास से गुज़रता हूँ
लैला की दीवारें
और मैं चूमता हूँ कभी इस दीवार को
कभी उस दीवार को
ये इन मकानों से प्यार नहीं
जिसने मेरा दिल ले लिया है
बल्कि उस एक से है जो इनमें बसी हुयी है "

और आखिर में एक दिन वो मजनूं वहीं पर सोया हुआ पाया गया
अनंतता की नींद में अपनी लैला के साथ !

अ से

Aug 19, 2014

पंख वाली स्त्रियाँ



अगर स्त्रियोँ के पंख होते

तो वो कैद होती घरोँ मेँ
खाना बना रही होती 
कपड़े धो रही होती
और सहला रही होती अपने पंखो की चोटेँ
वो तितलियोँ की तरह रंगती उन्हेँ और छुपा लेती निशान

अखबारोँ मेँ खबर होती फलाँ स्त्री के पंख काटे गये 
सजाओँ मेँ इनका शुमार होता
आसमानोँ मेँ जाल होते 
और बाजारोँ मेँ बिकते कुछ गरीब स्त्रीयोँ के पंखो के जोड़े
जो जल्दी समझा दी जाती हैँ
कि ये बेकार चीज है लादे रखने के लिये
कि कोई गला ना काट दे इनके लिये ।

अ से

कवितायें खो गयी हैं कहीं



मोमबत्तियां जलें 

दीयों में घी डलें 
या फिर मशालें उठें 
तब तो महफिलें रौशन हों 
अब ये बल्ब क्या चीज है 

आधुनिकता में सारी कवितायें खो गयी हैं कहीं 
बैलगाड़ी खोकर कार हो गयी है 
कला खोकर व्यापार हो गयी है 
मूर्तियों के प्रमाण नहीं रहे 
चिट्ठियों में प्राण नहीं रहे
लहज़ा और ज़बान जपानी हो गए हैं
मुँह में पान हैं अब भी पर वो बीती कहानी हो गए हैं
कच्ची डगर कुंवे पतझर
आम बागान नदी मैदान
कवितायें काट दी गयी हैं कुछ , कुछ पाट दी गयी हैं

कार्बन की जगह ' सिली '- कोन ले गयी है
इस्पात की मिलों में तेल जलाने के लिए
इंसान के दिलों में आग लगा दी गयी है
वक़्त से वक़्त के बीच के वक़्त का भी हिसाब किया जाता है
चुटकियाँ और क्षणिकायें कागजों की पनाह ले चुकी हैं

कवितायें चाहती हैं
12 घंटे काम हो 12 घंटे ज़माना आम हो
आवाज़ें कैद ना की जा सकें जो गुज़र गया उसका कुछ देर शोक भी मना सकें
किताबों से कवितायें भँवरे तितलियों सी निकलकर
पेड़ों की शाखों पर कोयल गौरैया हो जाएँ
बिजली के चले जाने पर बैचैनी ना हो
कि पेड़ झलते रहे हजारों पंखे यूँ ही धीरे धीरे !!

अ से 

अभिव्यक्ति



वास्तविकता ...
कल्पना का एक हिस्सा
जिसे मिला फायदा उपस्थिति का

कल्पना ...
प्राणों की सबसे महीन कला
जिसे दिशा देना है एक अद्भुत कौशल

कला ...
मुक्त होने से पहले तक किया मुक्ति का प्रयास 
उसके बाद समय सागर में गोते लगाना

मुक्ति ...
स्वयं की सही पहचान
शुरुआत को फिर से गढ़ने का विज्ञान

अ से

Aug 17, 2014

हदें


वो डरता था उसकी हद में अपने जाने से
वो डरती थी अपनी हद में उसके आने से
और फिर ये डर जिज्ञासा बनता चला गया

वो अनुमान लगाता उसकी हदों का और फर्लांगता दीवारें
वो अनुमान लगाती अपनी हदों का और खोले रखती खिड़कियाँ
और ये अनुमान चाहत बनता चला गया

वो चाहने लगा उसको ले आये हदों के संग
वो चाहने लगी उसकी बदल जाए हदों का ढंग
और ये हदें टूटने लगी सब बेहद हो गया

सब्र की दीवारें कमज़ोर हो गयी 
प्यार के सैलाब में बहने गया सब
और फिर घुलते मिलते खारापन बढ़ने लगा

बेरोकटोक आवाजाही बैचैनी का सबब थी
और फिर वो तय करने लगे अपनी हदें
और सीमित करने लगे खुद को हदों में

अब वो डरती है उसकी हद में अपने जाने से
अब वो डरता है अपनी हद में उसके आने से

अ-से 

प्रपंच



आकाश हर वक़्त सुन रहा है ख़ामोशी से 

कितनी आवाजें हैं कहीं और कहीं कितना खालीपन 
बहती हुयी हवायें छू रही हैं एहसासों को 
कितने तूफ़ान उठते हैं फिर भी कितनी शांति है 
उठती हुई ज्वालायें देख रहीं हैं दृश्य अपनी रौशनी में 
कहाँ कैसा रंग है कहाँ कैसा रूप और कहाँ कितनी आंच 
लहराती हुयी नदी बुझा रही है थकान अपनी शीतलता से 
किसमें कैसा रस है किसमें कैसी प्यास और कितनी कितनी तृप्ति 
और ठहरी हुयी जमीन झुला रही है हमें अपने पालने में 
किसका क्या गुनाह किसको क्या क्षमा !!

अ से 

मैं बता सकता हूँ तुम्हें


मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है

अपनी अधीरता अपनी चाहत अपने अंदेशे जबकि तुम यहाँ नहीं हो 
अपनी भावनाओं की हर उथल पुथल को दिखा सकता हूँ तुम्हे प्रेम के लबादे में 

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
भीतर गरजते बादलों को गीतों में ढालने में बिगड़े सुर तालों में 
शब्दों के दास्तानों में अपनी खामोशी को पकड़ने के असफल प्रयासों में 
इन्तेज़ार की उस जमीन में जहाँ समय भी रुका हुआ रहता है रेगिस्तान की तरह

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
क्योंकि शायद तुमने भी वही महसूस किया है
या शायद नहीं और शायद मैं कभी नहीं जान पाऊंगा
की तुम मेरी बात समझी या नहीं
की तुम क्या महसूस करती हो
जबकि मैं हमेशा ये जानना चाहूँगा और तुम भी बताओगी एक से ज्यादा बार
और हम दोनों हमेशा इस सरल सी बात में उलझे रहेंगे
जबकि शायद तुम बता सकती थी एक बार और की तुम क्या महसूस करती हो

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर शायद मैं नहीं बता सकता
कि बातों से जज़्बात तो जताए जा सकते हैं पर उनकी गहराई को नहीं
मुझे डर है कि मेरी बातों को तुम ज्यादा संजीदगी से ले लोगी या हँस कर उड़ा दोगी

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर और भी कई बातें हैं करने के लिए
और जबकि किसी गाने पर या किसी फिल्म पर
या किसी फिलोसफी पर अच्छे से बात की जा सकती है
जबकि बिना कोई बात किये भी घंटों चैन से बैठा जा सकता है
तो फिर इन मुश्किल बातों में उलझने का क्या मायना
कि हर बार कहने पूछने के बाद भी मैं हमेशा जानना चाहूँगा
और तुम भी जब देखोगी अतीत में नज़रें टिका कर तुम मेरी बातों की सच्चाई को परखोगी
कभी गुस्से से कभी आँसुओं से और कभी किसी और के सन्दर्भ से कसौटी लेकर
कि हर बार शुरू से अंत तक की कहानी को नज़रों में समेटा जाएगा और तलाशे जायेंगे उसके भाव

मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर ये तुम खुद भी समझ सकती हो की मुझे क्या महसूस होता है
और जबकि आखिर में तुम्हे खुद ही समझना है और खुद ही खुद को विश्वास में लेना है
तो मेरा कुछ भी कहना मुनासिब नहीं
और जबकि मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
मैं नहीं बता पाऊंगा !!

अ से

दृश्य अनल



दृश्य अग्नि की आंच में जलते हुए फूल हो रहे हैं महक 

मद्धम मद्धम जलता जल हवा में घोल रहा है शीतलता 
दृश्य जिसका प्रकाश खिल रहा है आँखों के हीरक में
प्रकृति का रास संचित होकर हो रहा है काव्य 

फूल जो अधर ओष्ठ हैं पौधों के गा रहे हैं प्रकृति गीत
भंवरे उन्हें सुन कर दूर से ही गुनगुनाते आ रहे हैं
तितलियाँ फुर्सत में बैठी रंग रहीं हैं अपने पंख
मधु मख चुरा ले जा रही हैं मीठी मीठी बातें उनकी
इकठ्ठा कर के प्रेम रस वो बना लेती हैं शहद


अपने ही गीतों को सुनने दौड़ता है आसमान
अपनी ही छुअन से जलने लगती है हवा
स्वयं को ही देखकर ठंडी पड़ जाती है आग
और स्वयं को ही रसकर महक उठता है जल

ह्रदय में संचार रहे हैं उड़ते प्रेम पराग
मन को तरंग रहा है सरगमी संसार
हवाओं में बिखर रहे हैं लफ्ज़ खामोशी के
और आकाश में गूंज रहा है धनकीला प्रकाश

अ-से

वो अपनी भूख के लिए ..



निश्चिंतता से आँखें बंद कर देख लेते थे सपने

तब पलक झपकते ही ताड़ लेते थे हम हकीक़त 

निश्चिन्त होकर सुनते थे हर बात हम 
तब इस कदर झूठा नहीं था आकाश 
नहीं थी जानकारियां इतनी संदेहास्पद
हवा में जहर और प्यास में गन्दगी नहीं थी
साँसे थी सुकून था और मौसम में एक ठंडक थी भरोसे की
और करीब से गुज़रते समय के क़दमों की एक स्पष्ट आवाज़

अब समय दौड़ रहा है दिमाग में
और दिमाग सुन्न हो चुका है दिल में
अब अफवाहें साल भर गर्मी बनाये रखती हैं
नथुने सक्रिय रहते हैं इष्ट अनिष्ट गंधों के प्रति
कानों के छेद छोटे हो गए हैं और जबान दोहरी हो चुकी है
अब भावनाओं से सडांध आती है
सीलन भरे हुए रिश्ते जगह जगह से रिसने लगे हैं
और सच्चे प्रेम गीत अब दिल को भेदने लगे हैं
बीता हुआ समय मितली सा एहसास कराता है ज़हन में

वो अपने अंधेपन में बिना रुके करते हैं वार
देख सकने वाले तलाशते रह जाते हैं सर छुपाने की जगह
तलवार तमंचे और तूफ़ान में तो फिर भी ईश्वर का वास होता है
पर फेंके गए पत्थरों का कोई दिल ईमान नहीं होता
वो अपनी आत्मा के कातिल चलन के बाशिंदे
अपनी वासनाओं के गुलाम अपनी इच्छाओं के प्रेत
रूहों से खींच लेते हैं सुकून आजादी और प्रेम
और भर देते हैं अविश्वास मजबूरी और अवसाद
और सब कुछ लूट लेने के बाद छिडक जाते हैं नमक जमीनों पर
मार डालते हैं बच्चों को और पालतू जानवरों का महाभोज कर लेते हैं

वो अपनी भूख के लिए
उजाड़ते आये हैं दिल दुनिया और दास्तान
और सदियों तक के लिए कर देते हैं उसे बंज़र !!

अ से 

हमें भ्रम पसंद हैं ..


हमें भ्रम पसंद हैं जैसे हमें पसंद हैं नशे में रहना 

पलायन हमेशा ही एक आसान चुनाव है 
छूकर जाती हुयी हवा पानी की लहरें दोलन करती चीजें 
पंखे की आवाज़ घडी की टिक टिक 
तेज संगीत चमकती रौशनी और थिरकते कदम 
दुनिया हमेशा मदमस्त लहराती रहे 
और हम धुंधलाई आँखों से बेफिक्र उसे देखते रहें 

हमें परेशान करता है होश का अभाव जैसे हैंग ओवर 
बैचैनी थकान टूटा हुआ शरीर 
वक़्त की कमी अनिश्चितताओं के झूले
भविष्य के ख्वाब वर्तमान की क्रियाशीलता
सामने ही सामने दुनिया का आगे निकल जाना
और हम वक़्त को थाम ना सकें

हमें शिकायत है जिंदगी के दोहरेपन से
और तयशुदगी से हम खौफ़ खाते हैं
सभी निश्चित बातों को नकारते हुए आगे बढ़ जाना चाहते हैं
एक हज़ार प्रेम कथाएँ पढ़कर भी हमें उम्मीद है हमारी कहानी के शब्द अलग हैं
हमें लगता है सितारों का भाग्य अलग अक्षरों से लिखा गया है
और हम कुछ लोगों से चमत्कार की उम्मीद लिए बैठे रहते हैं
हमें लगता है अखबार की ख़बरों में कोई और लोग हैं
और मृत्यु और दुर्घटनायें बात करने के मुद्दे नहीं

मुक्त रहना अच्छी चाहत है पर हम छोड़ना कुछ नहीं चाहते
उलझाए रखना चाहते हैं पर जुड़े रहना नहीं
हम विकल्पों में उलझा हुआ महसूस करते हैं
पर निश्चितता हमें डरावनी लगती है !

अ से 

आखिर हम बचाए रखते हैं कुछ ..



हर पल को कई गुना जी चूका है वो अतीत में 

सदी पुराना है इस शख्स का इतिहास 
सब कुछ एक पंक्ति पर याद रखने की क्षमता 
और सब कुछ जान पाने की एक गहरी चाहत 
अब ज्यादा कुछ नज़र नहीं आता नया पर तलाश हमेशा ही नयी रहती है !

आँखों के सामने घूमता है सबकुछ जाना हुआ 
और उनके क्रमचयों में से फिर निकल आता है अगला पल 
बहुत बूढ़ा हो चूका है ये शख्स 
पर जीवन की प्यास कभी कम नहीं होती इसकी !

जाने कितनी दुर्घटनाएं झेल चुका है अस्तित्व
घायल मन और खड़खड़ाते हुए पिंजर के बावजूद
ये जंगली विडाल नहीं अफोर्ड कर सकता चैन से बैठ जाना
इच्छा मृत्यु पाया हुआ भीष्म नहीं चुन सकता अभी अपने लिए मृत्यु
बावजूद अपनी खायी हुयी चोटों के दर्द के तीखी नमकीन बातों की चुभन के
संघर्ष करना है आखिरी साँस तक
इंतेज़ार करना है आखिरी आस तक
जलते रहना है जब तक जीवन जल का आखिरी कतरा रौशनी दे सके !

जिसके लिए कभी शर्म और संकोच ही बुद्धिमानी होती थी
इनको रेशा रेशा होते हुए उसे देखना है सब निगल जाना है
अस्तित्व के आखिरी छोर तक काल का सामने से स्वागत करना है !

और अपनी सारी विषमताओं के बावजूद कुछ बचाए रखना है
दिल से दिल की , रौशनी से रौशनी की पहचान और पहचान की ख़ुशी
अटकती यादों खड़खड़ाती साँसों और सख्त हो चुके फेफड़ों के बावजूद एक हँसी
और कुछ अच्छे मस्त फ़कीरी फक्कड़ और ठहरे हुए लोगों का साथ !

हालांकि अब उतना ठहराव नहीं इस पल में
जितना बचपन की आजादी के पलों में था
पर कुछ ना कुछ ठहराव शेष रहता ही है
आखिर थोड़ी आज़ादी हम बचाए रखते हैं
आखिर थोड़ी आज़ादी हमें बचाए रखती है !!

अ से 

आज़ादी



उनके किसी दादाजी ने अपने किसी दादाजी से सुना था कभी ये शब्द ,
वो कब से कैद थे उन्हें नहीं पता ,
पर हर पंछी के लिए एक अलग स्वप्न की सौगात था ,
पीढ़ी दर पीढ़ी ढ़ोया गया ईश्वर सरीखा ये शब्द !

कुछ पंछी चाहते थे एक अलग पिंजरा अपने लिए , 
कुछ पंछी चाहते थे उसका दरवाजा खुला रहे ,
कुछ पिंजरे की बजाय शाही कन्धों पर बैठना चाहते थे ,
और अधिकतर सिर्फ चुपचाप उनमें से किसी के पीछे चलना !

एक रात वो स्थान पंछियों के शोर से भर गया ,
चहचहाट की जगह चीखें थी ,
पिंजरे की सींखचे लहुलुहान थे ,
कुछ पंछी जमीन पर पड़े फड़फड़ा रहे थे ,
ये वही रात थी जब दरवाज़ा भी खुला हुआ था और पिंजरा भी टूटा हुआ ,
पर कोई कहीं नहीं गया ,
आखिर जिन पंखों ने परवाज़ ना देखी हो उनके लिए हवा के बदलाव के क्या मायने !

विस्मित चकित और काफी प्रयासों के बाद अनायास हुए बदलाव के बीच
वो तय नहीं कर पा रहे थे की ये स्वप्न है या हकीक़त ,
पर आज ना आसमान की किसी को फ़िक्र थी ना उड़ान की ,
बाहर चौगान और चबूतरे पर और रंग बिरंगी क्यारियों में था कुछ दाना पानी ,
और वो ज्यादा से ज्यादा अपनी छोटी सी चोंच में ठूसने की जद में सीना फुलाए झगड़ रहे थे !
कुछ बूढ़े पंछी इस अप्रत्याशित सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे
और ममतामयी आँखों से अपने बच्चों को ख़ुशी से लड़ते झगड़ते देख अपनी क्रान्ति के सुखद परिणाम के गीत गा रहे थे !

अ से

कुछ वक़्त का साथ है , कुछ वक़्त का साथ है



कुछ वक़्त का साथ है 

कुछ वक़्त का साथ है

अब तारों से भला कैसी शिकायत 
कहाँ लापता थे वो सुबह से बेखबर बनकर 
महीने में कहीं एक बार चाँद पूरा होता है 
और अब समय देखने की चाहत नहीँ ।

आओ ! उकेरते हैं यादें 
समय के आकाश पर
शब्दों के झिलमिलाते तारे
मिलाते है जमीँ की कोर को फलक के छोर से
अंजाने बनकर गढ़ते है
कोई चेहरा उफक पर
तलाशते हैँ कोई अनदेखा रंग
सफर को नज़रोँ से टटोल कर
और अब पलक झपकने की चाहत नहीँ ।

कुछ वक़्त साथ हैँ
कुछ वक़्त साथ है

नहीं याद इससे बाद क्या होगा
तुम क्या होगी समय का बहाव क्या होगा
पर आज जो भी होगा दर्ज
समय के इस दस्तावेज पर
उसे भविष्य बदल नहीं पायेगा
यहाँ अतीत में आकर
हमारे हाथोँ के अक्षर
भले ही नहीँ खीँच पायेँ
प्रारब्ध की कोई तय रेखा
पर चमकते रहेँगे ये लम्हे
जो ठहर जायेँगे आज
इन अहसासोँ की स्याही मेँ
पिघला हुआ स्वर्ण बनकर
और अब समय रोकने की चाहत नहीँ ।

अ से