आकाश हर वक़्त सुन रहा है ख़ामोशी से
कितनी आवाजें हैं कहीं और कहीं कितना खालीपन
बहती हुयी हवायें छू रही हैं एहसासों को
कितने तूफ़ान उठते हैं फिर भी कितनी शांति है
उठती हुई ज्वालायें देख रहीं हैं दृश्य अपनी रौशनी में
कहाँ कैसा रंग है कहाँ कैसा रूप और कहाँ कितनी आंच
लहराती हुयी नदी बुझा रही है थकान अपनी शीतलता से
किसमें कैसा रस है किसमें कैसी प्यास और कितनी कितनी तृप्ति
और ठहरी हुयी जमीन झुला रही है हमें अपने पालने में
किसका क्या गुनाह किसको क्या क्षमा !!
अ से
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