वो मुझे बाँधे रखना चाहती है ,अपनी तय हदों तक ,
और मैं चाहता हूँ उसे आजादी देना , अपनी तय हदों तक
हमने गढ़ लिए हैं
आकार अपने , अपने अपने हिसाब से
आदतों के चाक पर ,
और पका लिया है उन्हें , वक़्त की आँच पर ,
अब संभव नहीं ,
समा पाना ,एक दुसरे के कनस्तरों में ,और वो भी सामान सहित ,मेरा आकार मेरा रंग ढंग नहीं बदलता अब ,केंचुली बदलने पर भी ,
भीतर कहीं बहुत गहरे में
रंगी गयी हैं
मेरे मानस की दीवारें !!
अ से
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