Aug 17, 2014

आकार


वो मुझे बाँधे रखना चाहती है ,
अपनी तय हदों तक , 
और मैं चाहता हूँ उसे आजादी देना ,
अपनी तय हदों तक
हमने गढ़ लिए हैं
आकार अपने ,
अपने अपने हिसाब से 
आदतों के चाक पर ,
और पका लिया है उन्हें ,
वक़्त की आँच पर ,
अब संभव नहीं ,
समा पाना ,
एक दुसरे के कनस्तरों में ,और वो भी सामान सहित ,मेरा आकार मेरा रंग ढंग नहीं बदलता अब ,केंचुली बदलने पर भी , 
भीतर कहीं बहुत गहरे में
रंगी गयी हैं
मेरे मानस की दीवारें !!

अ से 

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