मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
अपनी अधीरता अपनी चाहत अपने अंदेशे जबकि तुम यहाँ नहीं हो
अपनी भावनाओं की हर उथल पुथल को दिखा सकता हूँ तुम्हे प्रेम के लबादे में
मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
भीतर गरजते बादलों को गीतों में ढालने में बिगड़े सुर तालों में
शब्दों के दास्तानों में अपनी खामोशी को पकड़ने के असफल प्रयासों में
इन्तेज़ार की उस जमीन में जहाँ समय भी रुका हुआ रहता है रेगिस्तान की तरह
मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
क्योंकि शायद तुमने भी वही महसूस किया है
या शायद नहीं और शायद मैं कभी नहीं जान पाऊंगा
की तुम मेरी बात समझी या नहीं
की तुम क्या महसूस करती हो
जबकि मैं हमेशा ये जानना चाहूँगा और तुम भी बताओगी एक से ज्यादा बार
और हम दोनों हमेशा इस सरल सी बात में उलझे रहेंगे
जबकि शायद तुम बता सकती थी एक बार और की तुम क्या महसूस करती हो
मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर शायद मैं नहीं बता सकता
कि बातों से जज़्बात तो जताए जा सकते हैं पर उनकी गहराई को नहीं
मुझे डर है कि मेरी बातों को तुम ज्यादा संजीदगी से ले लोगी या हँस कर उड़ा दोगी
मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर और भी कई बातें हैं करने के लिए
और जबकि किसी गाने पर या किसी फिल्म पर
या किसी फिलोसफी पर अच्छे से बात की जा सकती है
जबकि बिना कोई बात किये भी घंटों चैन से बैठा जा सकता है
तो फिर इन मुश्किल बातों में उलझने का क्या मायना
कि हर बार कहने पूछने के बाद भी मैं हमेशा जानना चाहूँगा
और तुम भी जब देखोगी अतीत में नज़रें टिका कर तुम मेरी बातों की सच्चाई को परखोगी
कभी गुस्से से कभी आँसुओं से और कभी किसी और के सन्दर्भ से कसौटी लेकर
कि हर बार शुरू से अंत तक की कहानी को नज़रों में समेटा जाएगा और तलाशे जायेंगे उसके भाव
मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
पर फिर ये तुम खुद भी समझ सकती हो की मुझे क्या महसूस होता है
और जबकि आखिर में तुम्हे खुद ही समझना है और खुद ही खुद को विश्वास में लेना है
तो मेरा कुछ भी कहना मुनासिब नहीं
और जबकि मैं बता सकता हूँ तुम्हें मैंने क्या महसूस किया है
मैं नहीं बता पाऊंगा !!
अ से
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