उनके किसी दादाजी ने अपने किसी दादाजी से सुना था कभी ये शब्द ,
वो कब से कैद थे उन्हें नहीं पता ,
पर हर पंछी के लिए एक अलग स्वप्न की सौगात था ,
पीढ़ी दर पीढ़ी ढ़ोया गया ईश्वर सरीखा ये शब्द !
कुछ पंछी चाहते थे एक अलग पिंजरा अपने लिए ,
कुछ पंछी चाहते थे उसका दरवाजा खुला रहे ,
कुछ पिंजरे की बजाय शाही कन्धों पर बैठना चाहते थे ,
और अधिकतर सिर्फ चुपचाप उनमें से किसी के पीछे चलना !
एक रात वो स्थान पंछियों के शोर से भर गया ,
चहचहाट की जगह चीखें थी ,
पिंजरे की सींखचे लहुलुहान थे ,
कुछ पंछी जमीन पर पड़े फड़फड़ा रहे थे ,
ये वही रात थी जब दरवाज़ा भी खुला हुआ था और पिंजरा भी टूटा हुआ ,
पर कोई कहीं नहीं गया ,
आखिर जिन पंखों ने परवाज़ ना देखी हो उनके लिए हवा के बदलाव के क्या मायने !
विस्मित चकित और काफी प्रयासों के बाद अनायास हुए बदलाव के बीच
वो तय नहीं कर पा रहे थे की ये स्वप्न है या हकीक़त ,
पर आज ना आसमान की किसी को फ़िक्र थी ना उड़ान की ,
बाहर चौगान और चबूतरे पर और रंग बिरंगी क्यारियों में था कुछ दाना पानी ,
और वो ज्यादा से ज्यादा अपनी छोटी सी चोंच में ठूसने की जद में सीना फुलाए झगड़ रहे थे !
कुछ बूढ़े पंछी इस अप्रत्याशित सफलता पर फूले नहीं समा रहे थे
और ममतामयी आँखों से अपने बच्चों को ख़ुशी से लड़ते झगड़ते देख अपनी क्रान्ति के सुखद परिणाम के गीत गा रहे थे !
अ से
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