दृश्य अग्नि की आंच में जलते हुए फूल हो रहे हैं महक
मद्धम मद्धम जलता जल हवा में घोल रहा है शीतलता
दृश्य जिसका प्रकाश खिल रहा है आँखों के हीरक में
प्रकृति का रास संचित होकर हो रहा है काव्य
फूल जो अधर ओष्ठ हैं पौधों के गा रहे हैं प्रकृति गीतभंवरे उन्हें सुन कर दूर से ही गुनगुनाते आ रहे हैं
तितलियाँ फुर्सत में बैठी रंग रहीं हैं अपने पंख
मधु मख चुरा ले जा रही हैं मीठी मीठी बातें उनकी
इकठ्ठा कर के प्रेम रस वो बना लेती हैं शहद
अपने ही गीतों को सुनने दौड़ता है आसमान
अपनी ही छुअन से जलने लगती है हवा
स्वयं को ही देखकर ठंडी पड़ जाती है आग
और स्वयं को ही रसकर महक उठता है जल
ह्रदय में संचार रहे हैं उड़ते प्रेम पराग
मन को तरंग रहा है सरगमी संसार
हवाओं में बिखर रहे हैं लफ्ज़ खामोशी के
और आकाश में गूंज रहा है धनकीला प्रकाश
अ-से
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