Aug 17, 2014

अनवरत ..


निगाहों के सामर्थ्य के आखिरी किनारे से भी आगे तक ,

पाँचों दिशाओं में फैला हुआ , ये खाली अंत हीन आकाश , 
मीलों लम्बे फासले , कभी ना ख़त्म होने वाली दूरियाँ ,
और हमेशा बस यूँ ही बना रहने वाला ये सार-शून्य , 
अथाह अनंत असीम बेहद विशाल फैलाव ,
और अपने अस्तित्व के लिए पर मारता एक नन्हा सा पंछी , प्राण !

तिनका तिनका जोड़कर रहने के लिए बनाया ,
ये कच्चा सा मकान , जिस्म जान और जहान ,
और आँधियाँ बाढ़ भूकंप से ये खौफनाक तूफ़ान ,
उसमें अपने जोड़े हुए को बचाने का असफल प्रयास करता कतरा कतरा इंसान !

एक अथाह संसार सागर और सब कुछ हवा ,
सूक्ष्म से स्थूल तक , शून्य से समष्टि तक ,
महीन से महत तक , सब कुछ हवा ,
खाली आकाश में हिलोरें मारता इसका अस्तित्व ,
हर दिशा में बनती बिगडती उठती बैठती लहरें ,
कब क्या रूप ले लें , क्या बिगड़ जाए , क्या बना दें ,
किसको पता कब कौन क्या कहाँ कैसे ,
और कौन से भरोसे , कैसे संकल्प विकल्प ,
हवाओं में कुछ ठहरता है भला , वो भी वो जो खुद एक हवा हो !

ये टूट फूट , ये बुझा हुआ मन , ये बिखरा हुआ सामान ,
और ये धूल खाते सपने , ये सब मेरा चाहा हुआ नहीं था ,
ना ही इतने सारे जिस्म तोड़ प्रयास इस सबके लिए किये गए थे ,
अगर ये सृष्टि , मेरे अस्तित्व से लेकर ब्रह्माण्ड तक , कुछ भी रूप लेती है ,
तो इस में किसी का कोई दोष नहीं , ना ही मेरा , ना ही तेरा ,
ना ही उस ईश्वर का , जो चुपचाप कोई भी आकार ले लेता है !

अ से 

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