Aug 17, 2014

क्या ये अजीब बात नहीं ..


चलो भूल जाते हैं 

तुम कौन हो मैं कौन हूँ 
वक़्त के दरमियां 

सामने देखो 
क्या तुम्हे नज़र आती है वो मेज़ लकड़ी की 
और उस पर रखे सामान 
उसकी दराजें 
उसके रंग 
अजीब बात है 
तुम्हे भी वही सब नज़र आता है जो मुझे नज़र आता है

पार्श्व में मधुर गीत सुनाई दे रहा है
बताओ तो उसकी गूँज क्या आकार ले रही है
क्या तुम्हे भी वही ध्वनि पुकार रही है
क्या ये अजीब बात नहीं

एक बार भूल कर देखो
अपनी पसंद नापसंद
चलो हम अपने अपने मन और चाहतों के परे देखते हैं
अपने अपने चुनावों के पीछे
क्या तुम्हे भी वही सब नज़र होता है जो मुझे होता है जो किसी और को होता

अजीब बात है
हम दोनों एक से हैं !!

अ से 

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