मैँ बुझा हुआ हूँ
पर दिल अब भी किसी दीये सा रौशन है
कि रात के इस अँधेरे मेँ तेरे खयाल साफ नज़र आते हैँ
कि अधजगी नीँद के ख्वावोँ मेँ तेरे चेहरे का नूर कम नहीँ होता
कि और कोई रौशनी ना होने पर भी मेरा जहां रौशन है तेरी यादोँ से ।
मैँ नीरस हो चुका हूँ
पर चाहतोँ से अब भी रस चूता है
कि इन खालीपन की बैठकोँ मेँ भी मन भरा हुआ रहता है
कि दिन का चेहरा पसीजता है और रात का आइना भीगा हुआ रहता है
कि अब भी तेरी बातोँ के ककहरे से कविताओँ का दरिया बहता है ।
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