Aug 17, 2014

कल्पना करो ..


तुम आकाश हो और तुम्हे नहीं पता तुम कहाँ तक हो 

अब क्यूंकि तुम रीत चुके हो और अनन्त शान्ति के सिवा कुछ शेष नहीं 
तो कुछ जुगनू तुम में जलने बुझने लगे हैं 
और उन जुगनुओं का आकार सूर्य जितना है 
पर इतनी सी आंच से तुम्हे हवा तक नहीं लगती !
कल्पना करो की तुम आकाश की तरह बहुत छोटे बहुत बहुत छोटे हो गए हो 
इतने छोटे की सारी सृष्टि तुममें समा गयी है 
बिलकुल शून्य हो चुके हो तुम !!

कल्पना करो तुम मन हो 
और मन में यानी तुम में ये सारा आकाश है
और सिर्फ यही आकाश नहीं
ऐसे कई शून्य तुम में हैं
ऐसे अनंत शून्य तुम में हैं जिनमें हैं और भी कई संसार
पर फिर भी उसका कुल परिमाण शून्य है
और तुम रौशनी जितने हलके हो
बल्कि रोशनी से भी हलके
अँधेरे जितने !!

कल्पना करो की तुम बुद्धि हो ,
जिसमें कई मन हर पल बनते बिगड़ते रहते हैं ,
जिनमें हैं और भी कई आकाश और जिनमें हैं और भी कई संसार !!

कल्पना करो की तुम मात्र अहंकार हो
और लेते रहते हो हर पल कई संकल्प
जिनके विकल्पों के साथ तुममें जन्म लेती हैं कई सारी बुद्धियाँ
कल्पना करो की तुम्हारे एक संकल्प से एक पल में कितनी सृष्टि और प्रलय एक साथ होते हैं और यही नहीं उस असंख्य गणना का हर हिसाब किताब तुम्हारे पास है
सारे गुणन और भागों के फल के साथ
और तुम समय के हर क्षण के अदमवें हिस्से के पदमवें भाग में ये सब जान लेते हो !!

कल्पना करो की तुम सिर्फ बोध हो
वो बोध जिसमें अहंकार इतना सूक्ष्म है की उसे नगण्य माना जा सकता है
जिसमें अहंकार की वही औकात है जैसे अनन्त आकाश में एक तारे की !!

कल्पना करो की तुम वही बोध हो
जिसमें संकल्प लेने और उन्हें मिटाने की अद्भुत शक्ति है
और जिसमें शंखों शंख संकल्प के साथ ये और ऐसी कई सृष्टियाँ स्थिरता के साथ विद्यमान हैं !!

कल्पना करो की तुम्हारी हर कल्पना सत्य है
कल्पना करो की कल्पना करना भी एक कर्म है
कल्पना करो की कल्प स्वतः है और उसकी उत्पत्ति और अंत को कोई नहीं जानता !!

कल्पना करो और कल्पना में खो जाओ
की सब कुछ पाकर भी तुम मात्र कल्पना ही पाते हो
जो ना तो तुम्हारे होश में आने से पहले कहीं थी ना ही होश खोने के बाद कहीं होगी !!

अ से 

No comments: