Aug 17, 2014

वक्त खामोश है -1



वक्त खामोश है
पर लहरोँ का शोर सुनाई देता है
और कभी कभी सुनाई देती है उसकी खामोशी ,
कभी कभी ही तो शांत होती है वो
या अक्सर जब वो उदास होती है ।

शांत रातोँ मेँ मन का पोत इसी तरह हिलोरेँ खाता है , 
जब कुछ गुज़र जाता है तो वो एक लहर बन जाता है
और हर एक लहर के साथ थोड़ा और ठहर जाते हैँ हम ।
 

वो भी रात के खाली आसमान सी
मेरी दुनिया मेँ ठहर चुकी है
और हर एक गुज़रते लफ्ज़ के साथ
और गहराती जाती है
और उस गहराई स

उठती रहती हैँ अनजान यादेँ ,
जिनमेँ से कुछ मैँ भूलता रहता हूँ
और कुछ ठहर चुकी हैँ ,
अगर कुछ और वक्त साथ होता
तो कुछ और लहरेँ उठती ,
कुछ और ठहर जाते वो और मैँ ।

घड़ियाँ घूम रही हैँ
पर अब उनमेँ इंतज़ार का आकर्षण नहीँ
वो किसी बूढ़ी हो चुकी सुन्दरी सी
बिना किसी उम्मीद टहल रही हैँ
और मैँ इन ठहरी हुयी आँखो से कुछ नहीँ देखता
सिवाय किसी चित्राये हुये स्वप्न के
जिसमेँ चलती हैँ कुछ लहरेँ बहती हवा की ।

जैसे जैसे ये रात जवान होती है
ये लहरेँ अपने शबाब पर होती हैँ
और बूढ़ी होती रात के साथ ही
ये भी किसी ख्वाब सी दम तोड़ने लगती हैँ ।
पर फिर से एक सुबह होती है
और फिर से शुरु होता है एक रात का इंतेज़ार ।

अ से 

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