A PATHLESS TRAVELER
Dec 21, 2013
दर्पण - 1
दिखाएं कौन सा एक चेहरा तुम्हे ,
स्वभाव-रक्स में कुछ ठहरता नहीं ,
माया मरीचिका में मारा फिरता ,
ये शख्श क्यों कहीं उभरता नहीं ...
कांच-दीवार से गुजर कर बिफरा ,
बेरंग-प्रकाश कई रंग लिए ,
रजत-समतल सतह से आया ,
दृश्य-ख़त फिर एक अक्स लिए ...
< अ-से >
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment