Dec 21, 2013

" बबुष्का-वास "

" बबुष्का-वास "

बबुश्काओं की भाँती ये एक ही असीमित पूर्णाकाश ,
फिलहाल नवें आकाश (space) तक ,
इन्द्रधनुश्की पट्टिकाओं सा बिखरा-फैला हुआ ...

भीतर से पहला सघन चेतन .. " प्रकाशाकाश " ,
जो किसी नन्हे बच्चे की भांति निश्चिन्त और प्रसन्न है ,

फिर मूल स्वभाव का " प्रधानाकाश " ,
जहाँ बालक अब दुनिया के सनातन धर्म कायदों को सीख रहा है ,
और साम्य को समझता हुआ , सम भाव , समदृष्टि का पाठ पढ़ रहा है ...

फिर महत्ता निर्धारण का " महानाकाश " ,
की ऊपर सर होना है नीचे पाँव ,
बायें ह्रदय होना है , दायें यकृत ,
पूर्व अभिमुख आँखें हों , पश्च अनुमान बुद्धि ,
की वास्तविक भौतिकी में दो दिशायें एक सी नहीं होती ....
जो श्री तत्व का ज्ञान सुनिश्चित करता बाल-तरुण है ,

भीतर से अगला आकाश ... " अहम् संज्ञक " मैं
जो अगले आकाशीय मैदानों पर अपने खेल का परचम लहराने को ,
अश्व सा स्फूर्त और आतुर ,
कीर्ति तत्व को जानता जीता पूर्ण तरुण सा ...

और फिर पंचम आकाश ये हमें जान पड़ता सा संसार " शब्द-आकाश " ,
जहाँ वास करती हैं अनगिनत आवाजें , गूढ़ कहावतें और पंचतंत्र की कहानियाँ ,
वाक् तत्व का सहज ज्ञान रखता सामाजिक जीवन में कदम रखता व्यक्ति सा ...

आगे के चारों आकाश
" स्पर्श-आकाश " " रूप-आकाश " " रस-आकाश " और " गंध आकाश "
जिनमें व्यक्ति क्रमशः स्मृति , मेधा , धारणा और क्षमा तत्व का ज्ञान सुनिश्चित करता है ,
उसकी आगे की जीवन अवस्थाओं में आसानी से नज़र आती है ,
जो की होती हर उम्र में है पर उनका प्रभाव समय के साथ सहज ही बदलता जाता है ...

वास्तव में ये सभी आकाश , अहम् आकाश के भीतर बाहर सब और विद्यमान हैं ...
आकाश में आकाश की स्थैतिक अभिव्यक्ति असंभव तो नहीं ,
पर वो फिर से संसार के रूप में ही संभव है ...

बबुष्का गुडियाएं शायद यही व्यक्त करती हैं ,
की जीव अन्य आधारों पर भी वास करते हैं ,
यही एक आकाश नहीं ... सिर्फ पृथ्वी ही आवास नहीं !!

हाँ पर ये पाठशाला जरूर है !!

< अ-से >

( वास्तव में ये सब किसी एक डायमेंशन में अन्दर बाहर लगता है तो किसी और डायमेंशन में ऊपर नीचे नज़र आता है ,
होने में सब पानी में पानी या आकाश में आकाश सा है ,

पर चेतना में सारी विभक्तियाँ ज्ञात है ... )

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