Dec 26, 2013

आलोचना के स्वर : 1


देश 120 करोड़ का नेतृत्व की 12 भी दहाड़ नहीं ,
अनैतिकता की बैसाखियाँ लिए देश चलता है !!

रात भर गूंजता है सियारों का रूदन ,
आत्माएं बस भटकने को मजबूर हैं !!

बंदरों ने बाँट लिए हैं इलाके अपने ,
उनकी उछल कूद घरों तक पहुँच गयी हैं !!

बिल्लियाँ रखी गयी हैं दूध की रखवाली पर ,
चुहल करते मोटे चूहे मौज मेँ हैँ !!

कुत्तोँ ने बोटियोँ का ढेर लगा रखा है ,
तीखे दांत गुर्राते भेड़िये संगठित हैँ !!

गाय बकरियोँ और बछड़ों को काटा जा रहा है ,
मशीनों ने चूस लिया है स्तनों से रक्त तक !!

अच्छी नस्ल के साँड बैल बनाऐ जा रहे हैँ ,
आवारा साँड घुस जाते हैं बेफिक्र खेतों में !!

हिंसक बकरे बेबात सीँग मारने लगे हैँ ,
शरीफ बेचारे कुर्बान कर दिए जाते हैं !!

उल्लू दिन मेँ भी दिखाई देने लगे हैँ ,
चौकीदारी का इनाम पाने को 24*7 सक्रिय !!

गिद्ध हर गली सड़कों पर नज़रें गडाये रहते हैं ,
कौवोँ ने चेले बना लिऐ हैँ गूढ़ कायदों की चर्चा को !!

हाय तौबा करना हमारी संस्कृति ,
और हँगामा करना धर्म बचा है !!

उँची फैँकना , दिखावटी अंदाज , शाही झूठ परम्पराओं में शुमार हैं अब ,
और गुस्सा सिर्फ कम्युनिटी साइट्स के लिए बचा है !!

< अ-से >

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