Nov 17, 2013

( प्रकृति बोध - 1 )


अगर चूहे नृत्य करते दिखें या कव्वे गीत गाते ,
तो यह एक कवी का उनके प्रति प्रेम भर है ,

की चूहे दौडाए जाते हैं अपनी चुहल द्वारा ,
उन की बुद्धि तीव्र हो सकती है ,
पर उनमें इतना संयम नहीं , की वो समीक्षा सकें अपने कार्यों को ,
उन्हें नियंत्रित करने के लिए चाहिए विवेक और संयम ,
अगर चूहों में संयम होता तो वो चूहे नहीं रहते , वो हो जाते कोई कछुआ ,
अगर उनमें विवेक ही होता तो वो कोई हाथी हो जाते ...

पर हाथी में भी तेज नहीं ,
हाथी कोई चीता नहीं ,
न ही चीते में वो हिम्मत है जो उसे शेर बना दे ...

कव्वे गीत गाना जानते तो वो कोयल हो जाते ,
वो जानते हैं सिर्फ आलोचना ,
पर कव्वे जमीनी हकीक़त से मुंह नहीं फेर पाते ...

पेड़ नहीं छोड़ पाते जमीन ,
वो मग्न हैं नित्य रसन में ... जड़ से लेकर पत्तियों तक ,
वो प्रकृति का भोग त्यागने में असमर्थ हैं .... उनके लिए गति का सुख नगण्य है ... भले ही वो जानते हैं इसे भी ,
आखिर पेड़ कोई चर चार पाँव के जंतु नहीं ....

मरीचिका में बुरी तरह से डूबे चार पाँव के मृगी भी ,
नहीं जानते भुजबल ,
हाँ ... वर्ना वो कोई भालू या वानर सरीखे होते ...

और भालू वानर का भी नहीं नियंत्रण अपने कन्धों पर ,
इंसान बहुत बाद में आते हैं ...

पत्थर सब जानकारी रखते होंगे ,
पर पत्थर नहीं समझते की वो क्या जानते हैं ,
वर्ना वो पत्थर नहीं होते ...

पत्थर को जो पूज रहे हैं ... ये उनके प्राण है ,
पत्थर में प्राणों की प्रतिष्ठा जादूगरी है ,
जादूगर रख देते थे तोते में जान अपनी ....

मैंने भी ऐसे ही एक दिन एक जादू देखा था ,
किसी में अपने प्राण बसते देखे थे ,
उसके जाने के ख्याल भर से ... मौत आती थी ....
शायद मैं प्रेम में था ...

अब नहीं आती ...
मुझे जो मरना भाता होता किसी के लिए ..... तो प्रेम जीवन्त हो उठता ...

जीवंत हो उठना भी जिजीविषा के अंत की शुरुआत ही है ...
ये अमृत की तरफ जीव का पहला कदम है ...
अमृत स्थायित्व है ... दौड़ते समय में अपने पाँव न उखड़ने देने का हुनर ...

सभी ओर की गति के मध्य में भी ... मृत्यु स्थिर है मेरी अनुपस्थिति के अंश में ... वर्तमान भी समय का अक्षर है ...
अमृत भी स्थिर है स्थिरता ही अमृत है चेतन उपस्थिति में .... और ....
मैं भी हूँ यहाँ ... खुद को इन सबसे अहम् मानता ... इन्ही सब के किसी क्रमचयों में कोई एक .... !!



... < अ-से > ...

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