Nov 12, 2013

प्यासे पंछी - 3

तपती गर्मी का बाज़ार सजा था .. हर चीज पर धूप चिलचिलाती ..
प्यासा था पंछी ... पानी काफी नीचे था .. घड़े में
कंकड़ों की भी प्यास नहीं बुझ पाती उससे ... ऊपर नहीं आना था वो ..

इतना ही बचा था हमारे बीच भी ..
कोई सेतु सम्भव न था .. जो हमें फिर से ...

और फिर तुम्हे तो पता ही होगा हाल मेरा ..
क्या करोगी फिर से जानकर .. सुना है ... तुमने भी शादी नहीं की अब तक ..

हर कमी अकल से नहीं भरी जा सकती ..
................................... न ही प्रेम बेमौसम बरसता है ,

आंखे सूखी हैं ... फैल कर देखती हैं हर चीज़ ... पर मन कहाँ लगता है कुछ देखने में ...
काश आँखें भी खुद कुछ देख पाती ...

जीवन का एक दौर तो थार में ही ही गुज़र गया ....
.................................... प्यास गले से नीचे उतर आयी है ..

शायद दिल तक .......................... !!

................................ < अ-से > ......................

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