पात्रता और क्या है .... अगर सुन सकने की क्षमता नहीं तो ...
हजारों सालों से कई कानों और मुखों से छन कर आई हुयी .... बातें , किस्से और कहानियाँ .... सुन सकते ...... तो बात ही क्या थी ....
कही - सुनी जाने वाली बातें ... लोक में प्रसिद्ध कहानियाँ ..... देश काल की सच्ची तस्वीर कहती ही रही ... माँ भी सभी नाराज होती हैं -- ' तू बात नहीं सुनता ' ...
पर कहाँ गर्दन स्थिरती है ... कोई गहरा सच आते ही ... अनमना सा हो जाता है मन .... हृद किसी साँप के बिल सा हो जाता है जिसके मुहाने पर कान हों ...
मुझे पता था अंजाम .... सभी कहते रहते थे ....
पर सुनना कौन चाहता था तब ...
मैं तब तक उड़ता रहा उम्मीदों के पर लगाए अपने ही ख़यालों में ... तब तक झूमता रहा रंगीन ख्वाबों में .... जब तक सर पर सीधी आंच न थी ..... जब तक सच की ठंडी जमीन न जानी थी ॥
ठोस हकीकत दिखते ही ... कोई प्यास सी जग आई .... उड़ते रहने का मन तो नहीं छोड़ा गया .... पर परकटा पंछी कब तक उड़ान भरता ....
अंतर्द्वंदों से थक कर .... बैठा है एक पेड़ के ऊंचे शिखर पर .... न फिर फिर उड़ान भरने का मन है ...
ना जमीन पर ही आया जाता है ..... ॥
........................................< अ-से > ............................................
हजारों सालों से कई कानों और मुखों से छन कर आई हुयी .... बातें , किस्से और कहानियाँ .... सुन सकते ...... तो बात ही क्या थी ....
कही - सुनी जाने वाली बातें ... लोक में प्रसिद्ध कहानियाँ ..... देश काल की सच्ची तस्वीर कहती ही रही ... माँ भी सभी नाराज होती हैं -- ' तू बात नहीं सुनता ' ...
पर कहाँ गर्दन स्थिरती है ... कोई गहरा सच आते ही ... अनमना सा हो जाता है मन .... हृद किसी साँप के बिल सा हो जाता है जिसके मुहाने पर कान हों ...
मुझे पता था अंजाम .... सभी कहते रहते थे ....
पर सुनना कौन चाहता था तब ...
मैं तब तक उड़ता रहा उम्मीदों के पर लगाए अपने ही ख़यालों में ... तब तक झूमता रहा रंगीन ख्वाबों में .... जब तक सर पर सीधी आंच न थी ..... जब तक सच की ठंडी जमीन न जानी थी ॥
ठोस हकीकत दिखते ही ... कोई प्यास सी जग आई .... उड़ते रहने का मन तो नहीं छोड़ा गया .... पर परकटा पंछी कब तक उड़ान भरता ....
अंतर्द्वंदों से थक कर .... बैठा है एक पेड़ के ऊंचे शिखर पर .... न फिर फिर उड़ान भरने का मन है ...
ना जमीन पर ही आया जाता है ..... ॥
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