चेतना निरपेक्ष है
उसे आगम की अपेक्षा नहीं क्षेत्र के ज्ञान के लिए
वो स्वतः क्षेत्रज्ञ है
बुद्धि की जड़ता चेतना में
और चेतना की ज्ञानशक्ति बुद्धि में
दोनों घुलकर अजीब विकृतियाँ पैदा करती /कर सकती है
जैसे तपते लोहे में आग और आग में गर्म छड दिखाई देती है
अक्सर मजे के लिए प्रयुक्त चीजें सन , तम्बाकू और मदिरा
जोड़ने लगती है बुद्धि के खुले सिरों को
शब्द जो निर्मल ज्ञान है
अपनी प्राकृत अवस्था में
स्पर्श संवेदन से जुड़ने लगता है
और स्पर्श रूप संवेदन से ,
याद आने लगते हैं आगम में जमा दृश्य
चमकने लगते हैं
वर्तमान धुंधला जाता है
रसने लगती हैं यादें
व्यक्त का मोह ग्रसने लगता है चेतना को
और जड़ विकृतियाँ ले लेती हैं स्थान स्वस्थ प्रकृति का
और तब संयम और समय का ही आसरा होता है
आयुर्वेद के अनुसार बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है !
अ से
उसे आगम की अपेक्षा नहीं क्षेत्र के ज्ञान के लिए
वो स्वतः क्षेत्रज्ञ है
बुद्धि की जड़ता चेतना में
और चेतना की ज्ञानशक्ति बुद्धि में
दोनों घुलकर अजीब विकृतियाँ पैदा करती /कर सकती है
जैसे तपते लोहे में आग और आग में गर्म छड दिखाई देती है
अक्सर मजे के लिए प्रयुक्त चीजें सन , तम्बाकू और मदिरा
जोड़ने लगती है बुद्धि के खुले सिरों को
शब्द जो निर्मल ज्ञान है
अपनी प्राकृत अवस्था में
स्पर्श संवेदन से जुड़ने लगता है
और स्पर्श रूप संवेदन से ,
याद आने लगते हैं आगम में जमा दृश्य
चमकने लगते हैं
वर्तमान धुंधला जाता है
रसने लगती हैं यादें
व्यक्त का मोह ग्रसने लगता है चेतना को
और जड़ विकृतियाँ ले लेती हैं स्थान स्वस्थ प्रकृति का
और तब संयम और समय का ही आसरा होता है
आयुर्वेद के अनुसार बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है !
अ से
No comments:
Post a Comment