Nov 12, 2013

प्यासे पंछी - 5

दिन भर के खर्चों में से बस वही कुछ पल निकलते थे ....
........................... सच कहूँ तो वो भी बचा लाता था ,

दीवारें कहाँ नहीं होती ....... आखिर , दुनिया दीवार ही तो है सब ओर ...
पर दीवारों के भीतर भी रोशन होती हैं खुशियाँ ... बाहर नहीं जा सके तो क्या ....

उनके भीतर भी कम नहीं थी जिंदगी ... अगर स्वाद ले सको तो ....
जो नहीं मिल पाया की शिकायत में ... जो है वो नज़र नहीं आता ... जो खर्च गया उसके अफसोस में ... जो बचा वो भी नहीं बचा पाते ...

क्या गला भी भीग पाता इतने पानी से ... सो मैंने फेंक दिया ...
थोड़ी तरावट ... चार कदम और चलने की अर्जी मैंने ठुकरा दी ...
मुझे दिखा नहीं था ... थोड़ा आगे तालाब था ...

खैर , पंछी अधिकतर प्यास से ही दम तोड़ते हैं ...
ये पंछी स्वभाव की नियति ही है ...

...................................... < अ-से > .....................

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