हर टुकड़े में तेरा ही चेहरा दिखा ...
................................मैं समेट लाया वो आइना ।
आज फुर्सत में था .. तो जोड़ बैठा हर बात ..
लफ्ज पिरोये तेरे ... और एक धड़कन सुनाई दी ....
................................ टुकड़े टुकड़े दिल देती रही तुम मुझको ।
मुझे भी ये खेल कुछ जँच रहा था ..
पीपरमेंट सी ठंडी आह , एक सुकून भरी सांस ... जब्त जज़बे ... और फाख्ता अकल ..
पारस्परिक पागलपन .... भी ......... कोई प्रेम सा नज़र आता है ना ..........!!
..................................... < अ-से > ............................................
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आज फुर्सत में था .. तो जोड़ बैठा हर बात ..
लफ्ज पिरोये तेरे ... और एक धड़कन सुनाई दी ....
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मुझे भी ये खेल कुछ जँच रहा था ..
पीपरमेंट सी ठंडी आह , एक सुकून भरी सांस ... जब्त जज़बे ... और फाख्ता अकल ..
पारस्परिक पागलपन .... भी ......... कोई प्रेम सा नज़र आता है ना ..........!!
..................................... < अ-से > ............................................
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