Nov 24, 2013

( प्रकृति बोध - माँ )


" तुम्हे हर ओर से जलना होगा .... भीतर तक पिघलना होगा "
... परम शान्तिमय व्याप्त अ-कार में एक शब्द हुआ ... एक बोध हुआ ... ,

तब प्रकट हुए सूर और हर ओर से जलने लगे , चमकने लगा सूर्य ... एक प्रचंड आ- नाद फैलने लगा ...

अकार ... आकार लेने लगा ... उजस उठी सृष्टि ...

पृथ्वी प्रकट हुयी ... सुनी उसने उद्घोषणा ...
माँ का दिल जल उठा ... तब कुपित हुयी पूषणा ...

कृ-कार (धरा) ने सूर्य से कहा मुझे मंजूर नहीं ये ,
आपके परम बोध का तेज ... अभी से कैसे सहेंगे मेरे नादान मनवान बच्चे ..
उन्हें भी कुछ वक़्त मिले ... तब तक तो आपको ढलना होगा ...

सूर्य ने कहा धरा से .... अपनी ममता का खयाल तुम्हे खुद ही करना होगा ,
अगर उन्हें बचाना है तो तुम्हे भी खुद ही जलना होगा ...
यह कह कर वो कुछ शांत हुए ... नाद कुछ आल्हाद में बदला ... कुछ प्रकाश में ... कुछ बोध में ... कुछ अवकाश में ....

धरा ने सूर्य के इस अकहे कर्म को फिर नमन किया ,
और अपने बच्चों को अपनी पीठ पर लाद ... अपनी ममता की ओढ़नी से बाँध लिया ...

और उसने लिखी प्रकृति की किताबें अपनी देह पर ... की उसके बच्चे भी सीखें उस परम बोध से .... कैसे प्रकाशते हैं जग को .... !!


उसके ओट में दिन ... रात हुआ ,
उसके आँचल में ... दिल सांच हुआ ,
उसकी गोद में सिमटा हुआ सा प्रेम ,
उसकी बातों से जग ज्ञात हुआ !!

..............
... < अ-से > ......................

Pic Courtsey: Google / " Debdutta Nundi "

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