Nov 16, 2013

बुढ़ापा


ह्रदय ठोस हो गया है ,
और उसके स्थान पर जिस्म फड़फडाता है ,

अँधेरा होते ही आँखों को एक बैचेनी खा जाती है ,
एक हलकी सी आहट पर सांस अटक जाती है ,

अब कुछ भी भूलना मुश्किल होता है ,
जबकि याद कुछ नहीं आता ,

कुछ पुराने रूमानी दृश्य अब चोट पहुंचाते हैं मस्तिष्क को ,
सख्त हथोड़ो की तरह, पास आते ही ,

बच्चों की निश्छल ध्वनि जो कभी कानों में अमृत घोलती थी ,
विषबुझे तीरों से भेदती है ह्रदय के मर्म स्थानों को ,

वो भोली हँसी और मासूम सी मुस्कान जो हवा से भी हलकी ,
कलकल करती बहती थी और खनकती थी कानो में ,
अब हजारों भुतहा चेहरों से अट्टाहास करती है ,
अंतस के हर एक कर्ण छिद्र को बहरा कर देती है ,

शर-शैया पर सोया है वर्तमान उसका ,
अतीत का हर एक झोंका देता है असहनीय तकलीफ ,

जिस बेटे को उसने तराशा था ,
एक मूर्तिकार की तरह ,
और दिया था नाम अपना ,
थोड़ी और रौशनी के लिए ,
आज वो ही देता है जब उसे  दुत्कार ,
जगह देता है बस कोनों में चार ,
निकाल देता है कभी दखल
से , कभी घर से बाहर ,
और करता है सवाल ,
की आखिर कौन सा एहसान किया था उसने ॥

.............................. अ-से अनुज ..................................

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