Mar 11, 2014

पोटली

आते वक़्त ही माँ ने दी थी एक पोटली ... 
और कहा था अपना ख़याल रखना , 
पोटली से ज्यादा जरूरी तुम हो मेरे लिए ...

वक़्त के रास्ते मैं निकल पड़ा , 
जो भी मिला राह में ,
जैसा भी लगा ,
उस पर शब्द संज्ञाएँ चिपका ,
मैं पोटली अपनी भरता रहा ..

पोटली के अन्दर ,
रच बस गयी थी ,
एक अनोखी ही दुनिया ,
सामान जुड़ने लगे आपस में ,
और तंत्र आकार लेने लगा ,
पुराने सामान जडें जमा बैठे ,
और नए सामान जमाये जाते ,
उनकी सहूलियत अनुसार ,
जिन्हें अपनी जगह बनानी आती ,
उन्होंने संगठन बना लिए ,
वहां अक्सर चर्चाएं होती रहती ,
और सामानों पर विशेषणों की छाप भी लगने लगी ...

यूँ ही चलते चलते जब मैं थक जाता ,
या मार्ग निर्धारण करना होता ,
तो उसमें झाँक कर देख लेता ...

पहले सब कुछ उसमें आसानी से आ जाता था ,
और चलने पर चीजें उलटती पलटती रहती ,
पर बाद में चीजों की हवा बाहर निकली जाने लगी ,
पोटली के कपड़े से ,
और गतिहीनता के कारण उनमें शुद्धता नहीं रह गयी ,
फिर वो ठंडी भी होने लगी ,
क्योंकि गर्म वस्तुएं ज्यादा जगह घेरती हैं ,
और बाद में सूख कर जमने लगी ,
अब उनमें रस भी बाकी नहीं रहा ,
नए आने वाले सामान भी फिर ,
इस सिस्टम के अनुसार ढलने लगते ...

सघनता काफी बढ़ चुकी थी ,
और पोटली भारी होने लगी ,
अब वो इधर उधर से फट भी चुकी थी ,
कई चीजें राह में ही कहीं बिखर चुकी थी ,

एक दिन उदासी के घेरे में ,
मैं पीपल के के नीचे बैठ ,
अपनी पोटली निहारने लगा ,
देखा तो उसमें कुछ ही सामान साबुत बचे थे ,
जो की भीतर कहीं दबे थे ,
ऊपर के कुछ टूटे फूटे से ,
और बाकी सब सिर्फ धूल और मिट्टी ...

मुझे दिखने लगा आगे ...
एक दिन पोटली फट जानी है ,
और ये सब बिखर जाने वाला है ,
सारे अनुभव और स्मृतियाँ हो जाने हैं मिटटी ,
और तब ,
मेरी यादों की पोटली मुझे ही छोड़ देनी है ,

आगे रह जाएगा सिर्फ ये रास्ता ,
जो हर बार रह जाता है ,
पर परवाह नहीं अब ,
आखिर माँ ने कहा था मैं ज्यादा जरूरी हूँ उनके लिए !!

अ-से

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